- कंजर –
– कंजर नाम संस्कृत शब्द ‘काननचार’ अथवा ‘कनकचार’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है – जंगलों में विचरण करने वाला।
– जनसंख्या – 53818 (हाड़ौती क्षेत्र में सर्वाधिक)
– विस्तार – कोटा, बूँदी, बारां, झालावाड़, भीलवाड़ा, अलवर, उदयपुर आदि जिलें।
सामाजिक जीवन –
– कंजर जनजाति के परिवारों में पटेल परिवार का मुखिया होता हैं।
– किसी विवाद की स्थिति में ये लोग हाकम राजा का प्याला पीकर एवं ऋषभदेवजी की कसम खाकर विवाद का निर्णय करते हैं।
– आराध्य देव – हनुमानजी।
– आराध्य देवी – चौथ माता।
– कुलदेवी – जोगणिया माता।
आर्थिक जीवन –
– पाती मांगना – चोरी डकैती से पूर्व ईश्वर से प्राप्त किया जाने वाला आशीर्वाद।
– वर्तमान समय में कंजर जनजाति अन्य व्यवसायों में भी संलग्न हुई हैं।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
कंजर :-
– मृतक को गाड़ने की प्रथा।
– कंजरों के मकान के दरवाजे नहीं होते हैं।
– कंजर को पैदल चलने में महारत हासिल है।
– कंजर महिलाएँ नाचने-गाने में प्रवीण होती हैं।
– इस जनजाति में मरते समय व्यक्ति के मुँह में शराब की बूँदें डाली जाती हैं।
– राष्ट्रीय पक्षी “मोर’ का माँस इन्हें सर्वाधिक प्रिय होता हैं।
– यह जनजाति घुमंतू (खानाबदोश) जनजाति है।
– अपराध प्रवृत्ति के लिए प्रसिद्ध जनजाति।
– पटेल :- कंजर जाति का मुखिया।
– कंजर जाति की सबसे बड़ी विशेषता इनकी सामाजिक एकता होती है।
– कंजर जाति मोर का माँस अत्यधिक पसंद करते हैं।
– कंजर जाति के नृत्य :- चकरी नृत्य एवं धाकड़ नृत्य।
– खूसनी :- कंजर महिलाओं द्वारा कमर में पहना जाने वाला वस्त्र।
– मुख्य पेशा :- गायन एवं नृत्य।
– कंजर महिलाएं नृत्य में प्रवीण होती हैं।
– मुख्य वाद्य – ढोलक एवं मंजीरा।
– प्रमुख मंदिर – 1. चौथ माता का मंदिर – चौथ का बरवाड़ा (सवाईमाधोपुर)। 2. रक्तदँजी का मंदिर – संतूर (बूँदी)।
– कंजर जाति अपने घर के पीछे खिड़की एवं दरवाजे अवश्य रखती है।
- कथौड़ी –
– यह जनजाति मूलत: महाराष्ट्र की है।
– विस्तार – उदयपुर जिले की कोटड़ा, झाड़ोल एवं सराड़ा पंचायत समिति।
– जनसंख्या – 4833
– ये राज्य में बिखरी हुई अवस्था में निवास करती हैं।
– मुख्य व्यवसाय – खेर के जंगलों के पेड़ों से कत्था तैयार करना।
– कथौड़ी जनजाति एकमात्र ऐसी जनजाति है जिसे मनरेगा में 200 दिवस का रोजगार प्रदान किया जाता है।
– खोलरा – कथौड़ी जनजाति की घास-फूस से बनी झोंपड़ियाँ।
– नायक – कथौड़ी जनजाति का मुखिया।
– नृत्य – लावणी नृत्य, मावलिया नृत्य (नवरात्रा) एवं होली नृत्य।
– आराध्य देवी – कंसारी देवी एवं भारी माता।
– आराध्य देव – डूंगरदेव एवं वांध देव।
– इस जनजाति की भाषा में गुजराती एवं बागड़ी का मिश्रण है।
– इस जनजाति में स्त्रियाँ पुरुषों के साथ शराब का सेवन करती हैं।
– यह जनजाति पेय पदार्थों में दूध का प्रयोग बिल्कुल नहीं करती है।
– स्त्री एवं पुरुष में गोदने गुदवाने का रिवाज है।
– इस जनजाति में आभूषण पहनने का रिवाज नहीं है।
– कथौड़ी जनजाति का बंदर का माँस अत्यधिक प्रिय है।
– यह जनजाति प्रकृति पर आश्रित है।
– यह जनजाति पुनर्जन्म में विश्वास करती है।
– इस जनजाति में दापा प्रथा एवं विधवा पुनर्विवाह का प्रचलन है।
– इस जनजाति में मृत्यु भोज प्रथा का प्रचलन भी है।
– कथौड़ी स्त्रियाँ मराठी अंदाज में साड़ी पहनती हैं जिसे ‘फड़का’ कहते हैं।
– जनजाति के प्रमुख वाद्य – तारणी, घोरिया, पावरी, टापरा एवं थालीसर।