- गरासिया –
– यह मीणा और भील जनजाति के बाद राज्य की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति हैं।
– इसका प्रमुख निवास क्षेत्र दक्षिणी राजस्थान हैं।
– राज्य में सर्वाधिक गरासिया जनजाति सिरोही जिले में पाई जाती हैं।
– ये चौहान राजपूतों के वंशज हैं।
– गरासिया जनजाति का बाहुल्य सिरोही जिले की आबूरोड एवं पिण्डवाड़ा तहसील, पाली जिले की बाली तहसील एवं उदयपुर जिले की गोगुन्दा एवं कोटडा तहसील में है।
– गरासियों का मूल प्रदेश :- आबूरोड का भाखर क्षेत्र।
– कर्नल जेम्स टॉड ने गरासियों की उत्पत्ति ‘गवास’ से मानी है जिसका अभिप्राय सर्वेन्ट/नौकर होता है।
– सामाजिक और पारिवारिक जीवन –
– दो प्रकार के गरासिया
- भील गरासिया:- यदि कोई गरासिया पुरुष किसी भील स्त्री से विवाह कर लेता है तो उसका परिवार भील गरासिया कहलाता है।
- गमेती गरासिया :- यदि कोई भील पुरुष किसी गरासिया स्त्री से विवाह कर लेता है तो उसका परिवार गमेती गरासिया कहलाता है।
– सामाजिक परिवेश की दृष्टि से गरासिया तीन वर्गों में विभाजित हैं :-
- मोटी नियात 2. नेनकी नियात 3. निचली नियात
– एकाकी परिवार का प्रचलन।
– सहलोत/पालवी :- गरासिया जनजाति की पंचायत का मुखिया।
– घेर :- गरासियों के घर।
– सौन्दर्य वृद्धि के लिए गोदने गुदवाने की प्रथा है। गरासिया स्त्रियाँ अत्यधिक श्रृंगार प्रिय होती हैं।
– इस जनजाति में पितृसत्तात्मक परिवार पाए जाते हैं।
– इनमें विवाह को एक संविदा माना जाता हैं उसका आधार वधू-मूल्य होता हैं।
– मोर बंधिया – गरासिया जनजाति का एक विवाह प्रकार जो हिन्दुओं के ब्रह्म विवाह के अनुरूप होता हैं।
– पहरावना विवाह – इसमें नाम-मात्र के फेरे होते हैं।
– ताणना विवाह – इसमें कन्या का मूल्य वैवाहिक भेंट के रूप में दिया जाता हैं। इसमें सगाई, फेरे आदि रस्में नहीं होती हैं।
– गरासिया जनजाति में प्रेम विवाह का अधिक प्रचलन हैं।
– अट्टा-सट्टा/विनिमय विवाह :- गरासिया में प्रचलित विवाह जिसमें लड़की के बदले उसी घर की लड़की को बहु के रूप में लेते हैं।
– खेवणा :- विवाहित स्त्री द्वारा अपने प्रेमी के साथ भागकर विवाह करना।
– मेलबो विवाह :- गरासियों में प्रचलित इस विवाह में विवाह खर्च बचाने के उद्देश्य से वधू को वर के घर छोड़ देते हैं।
– इनमें विधवा विवाह का भी प्रचलन हैं।
– यह जनजाति शिव-भैरव और दुर्गा देवी की पूजा करते हैं।
– प्रमुख त्योंहार – होली और गणगौर।
– गरासिया जनजाति में त्यौहारों का प्रारम्भ आखातीज (वैशाख शुक्ला तृतीया) से माना जाता है।
– स्थानीय, संभागीय और मनखारों या आम-आदिवासी इत्यादि तीन प्रकार के मेलों का आयोजन किया जाता हैं।
– गरासिया के प्रमुख मेले :- कोटेश्वर का मेला, चेतर विचितर मेला, गणगौर मेला, मनखारो मेला, नेवटी मेला, देवला मेला आदि।
– मनखारो मेला :- गरासिया समुदाय का सबसे बड़ा मेला जो सियावा (सिरोही) में भरता है।
– गरासियों का पवित्र स्थान :- नक्की झील (माउंट आबू)
– फालिया – गाँवों में सबसे छोटी इकाई अर्थात् एक ही गोत्र के लोगों की एक छोटी इकाई।
– मांड :- अतिथि गृह।
– ओसरा – घर के बाहर का बरामदा।
– घेण्टी :- गरासिया घरों में प्रयुक्त हाथ चक्की।
– आणा करना / नातरा प्रथा :- गरासिया जनजाति में विधवा पुनर्विवाह प्रथा।
– अनाला भोर भू प्रथा :- गरासिया जनजाति में नवजात शिशु की नाल काटने की प्रथा।
– हुरे :- गरासिया समुदाय में मृतक की याद में बनाया जाने वाला स्मारक।
– कोंधिया / मेक :- गरासिया समुदाय में प्रचलित मृत्युभोज।
– प्रमुख नृत्य :- वालर, लूर, कूद, मादल, रायण, मोरिया आदि।
– गरासिया जनजाति वालर नृत्य के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध है जिसमें किसी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं होता है।
– हेलरू :- गरासिया समाज की एक सहकारी संस्था।
अर्थव्यवस्था –
– इनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन व कृषि हैं।
– 85 प्रतिशत गरासिया कृषि कार्य से जुड़े हुए हैं।
– ये लोग कृषि श्रमिकों का कार्य करते हैं।
– हारी-भावरी कृषि :- गरासिया समुदाय में सामूहिक रूप से की जाने वाली कृषि।
– सोहरी :- गरासिया समुदाय में अनाज भण्डारण की कोठियाँ।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
– गरासिया जनजाति की जनसंख्या समग्र आदिवासी जनसंख्या का 6.70% हैं।
– गरासिया अत्यन्त अंधविश्वासी होते हैं।
– गरासिया जनजाति में शव जलाने की प्रथा है।
– गरासिया सफेद रंग के पशुओं को शुभ (पवित्र) मानते हैं।
– हेलमों – गरासिया जनजाति में किसी व्यक्ति द्वारा कार्य करने के लिए रिश्तेदारों, सगे-संबंधियों को आमंत्रित करने एवं बदले में भोज देने की प्रथा।