राजस्थान सामान्य ज्ञान : राजस्थान की जनजातियाँ

 

 

धर्म

– भील जनजाति अधिकतर हिन्दू धर्म का ही पालन करती हैं तथा ये हिन्दूओं के त्योंहारों को मनाते हैं। इनमें होली का विशेष महत्त्व हैं।

– टोटम :- भीलों के कुलदेवता।

– भीलों में प्राकृतिक एवं दैनिक प्रकोपों से बचाव हेतु ‘होवण माता’ की पूजा एवं अपंग एवं विकलांग भील अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु ‘खोड़ियाल माता’ की पूजा करते हैं।

– भीलों में ‘उन्दरिया पंथ’ की मान्यता है।

मेला

– बेणेश्वर मेला :- डूँगरपुर में माही, सोम एवं जाखम नदियों के संगम पर बेणेश्वर धाम में माघ पूर्णिमा को आयोजित मेला। इसे आदिवासियों का कुंभ भी कहा जाता है।

– घोटिया अम्बा मेला :- बाँसवाड़ा में घोटिया अम्बा नामक स्थान पर भरने वाला भीलों का प्रसिद्ध मेला।

अर्थव्यवस्था

– भीलों में आजीविका के मुख्य साधन शिकार, वनोपज विक्रय एवं कृषि आदि है।

चिमाता – भील जनजाति द्वारा पहाड़ी ढ़ालों के वनों को जलाकर बनाई गई कृषि योग्य भूमि जिसमें वर्षा काल के दौरान अनाज, दाले, सब्जियाँ बोई जाती हैं।

दजिया – भीलों द्वारा मैदानी भागों में वनों को काटकर चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहुँ, चना, आदि बोये जाते हैं। इस प्रकार की खेती को दजिया कहते हैं।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

– भील द्रविड़ भाषा का शब्द है।

– भील जनजाति को प्राचीन समय में किरात कहा जाता था।

भोजन :- मक्के की रोटी व कांदे की भात मुख्य खाद्य पदार्थ हैं। माँसाहारी जाति लेकिन गाय का माँस खाना वर्जित है।

– भील स्त्री-पुरुषों को गोदने-गुदाने का बड़ा शौक होता है।

– गोलड़ :- भीलों में नातरा लाई हुई स्त्रियों के साथ आए हुए बच्चों को “गोलड़’ कहा जाता है जो पारिवारिक सदस्य की तरह माने जाते हैं।

– मोकड़ी :- महुआ से बनी शराब।

– ये महुआ से बनी शराब बड़े चाव से पीते हैं।

– नृत्य :- हाथीमन्ना नृत्य, गैर, नेजा, गवरी, भगोरिया, लाढ़ी नृत्य, युद्ध नृत्य, द्विचक्री नृत्य, घूमरा नृत्य आदि।

– गैर नृत्य :- फाल्गुन मास में होली के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।

– भील पुरुष व स्त्रियाँ दोनों शराब पीने के बहुत शौकीन।

– भील केसरियानाथ (ऋषभदेव) के चढ़ी केसर का पानी पीकर यह कभी झूठ नहीं बोलते।

– भील जनजाति में सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना बहुत प्रबल होती हैं।

पाखरिया :- यदि कोई भील किसी सैनिक के घोड़े को मार देता है तो वह पाखरिया कहलाता है।

– भील जनजाति अत्यन्त निर्धन जनजाति है जिसमें स्थानांतरित कृषि का प्रचलन है।

छेड़ा फाड़ना :- तलाक की प्रथा।

– गवरी (राई) :- भीलों का प्रसिद्ध नाट्य जो रक्षाबन्धन के दूसरे दिन से प्रारम्भ होकर 40 दिन तक चलता है। यह राज्य का सबसे प्राचीन लोक नाट्य है।

– मेलनी :- आदिवासियों में जब किसी व्यक्ति की शादी होती है तब उनके परिवारजन 10-10 किलो मक्का देते हैं जिसे मेलनी कहा जाता है।

– मेवाड़ राजचिह्न में एक तरफ राजपूत शासक का तथा दूसरी तरफ भील सरदार का चित्र होता है।

– भील जनजाति जादू-टोने में विश्वास एवं अंधविश्वासी होती है।

– भीलों में विवाह की सह-पलायन प्रथा विद्यामान है जिसमें लड़के-लड़की भाग कर 2-3 दिन बाद वापस आते हैं तब गाँवों के लोग एकत्रित होकर उनके विवाह को मान्यता प्रदान कर देते हैं।

– डाम देना :- भीलों में रोगोपचार विधि।

– हाथीमन्ना नृत्य :- विवाह के अवसर पर भील पुरुषों द्वारा घुटनों के बल बैठकर तलवार घुमाते हुए किया जाने वाला नृत्य।

– हाथीवैण्डो प्रथा :- भील समाज में प्रचलित अनूठी वैवाहिक परम्परा जिसमें पवित्र वृक्ष पीपल, बाँस एवं सागवान के पेड़ों को साक्षी मानकर हरज व लाडी (दूल्हा-दुल्हन) जीवन-साथी बन जाते हैं।

– बोलवा :- मार्गदर्शक का कार्य करने वाला भील।

– भील जनजाति में प्रचलित विवाह :- देवर विवाह, विनिमय विवाह, सेवा विवाह, क्रय विवाह, सहपलायन विवाह, परविक्षा विवाह, बहुपत्नी विवाह, हरण विवाह, हठ विवाह, विधवा विवाह, गोल गधेड़ा विवाह आदि।

– भंगोरिया नामक त्यौहार भीलों में मनाया जाता है।

– नोतरा :- भील जनजाति में शादी के समय वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष को दी जाने वाली रकम।

– जी. एस. थॉमसन :- भीली व्याकरण’ नामक ग्रंथ के लेखक।

– प्रसिद्ध लेखक रोने ने अपनी पुस्तक ‘Wild Tribes of India’ में भीलों का मूल निवास मारवाड़ बताया है।

– भगत :- भील जनजाति में धार्मिक संस्कार सम्पन्न कराने वाला व्यक्ति।

– कोदरा :- भीलों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला जंगली अनाज।

– बांगड़ी (भीली) :- भीलों की बोली।

– महुआ :- भीलों का पवित्र वृक्ष।

– भराड़ी :- भीलों की विवाह की देवी।

– विला :- भीलों के मंदिर व थान का पुजारी।

– कायटा या काट्‌टा :- भील जनजाति में मृत्युभोज।

– भील ‘कांडी’ शब्द को गाली एवं ‘पाडा’ शब्द को शुभ मानते हैं।

– डी. एन. मजूमदार ने भीलों का संबंध नेग्रिटो प्रजाति से बताया है।

– गोविन्द गुरु ने भीलों में सामाजिक जागृति के लिए भगत पंथ की स्थापना की।

– गोविन्द गुरु ने आदिवासियों के उत्थान हेतु 1883 ई. में सिरोही में सम्प सभा की स्थापना की।

– भीलों में जनचेतना जागृत करने के लिए सन् 1920-21 में मोतीलाल तेजावत द्वारा मातृकुंडिया (चित्तौड़) नामक स्थान पर एकी आंदोलन चलाया।

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