राजस्थान सामान्य ज्ञान : राजस्थानी हस्तकला

 

 

चर्म उद्योग :-

मोची / रेगर / चमार :- चमड़े का काम करने वाली जातियाँ।

– चोबवाली :- विवाहोत्सवों पर वर-वधू के लिए बनने वाली जूतियाँ।

– बिनोटा :- दुल्हे की जूतियाँ।

– मोजड़ीजूतियाँ के लिए प्रसिद्ध शहर :- जोधपुर।

– बडू (नागौर) में बनने वाली कशीदायुक्त जूतियों की एक परियोजना UNO द्वारा UNDP के तहत चलाई जा रही है।

– नागरी :- जयपुर की प्रसिद्ध जूतियाँ।

– मानपुरा-मांचेड़ी (जयपुर) :- चमड़े की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध स्थान।

– सपाटा :- स्त्रियों की जूतियाँ।

उस्ता कला :- बीकानेर में ऊँट की खाल पर सुनहरी नक्काशी का चित्रण करना ही मुनव्वती कला कहलाती है। यह कला ‘उस्ता कला’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। बीकानेर के उस्ता परिवारों ने यह कार्य शुरू किया। मुनव्वती कला का उद्‌गम ईरान में हुआ। यह कला मुगल काल में भारत तथा भारत से राजस्थान आई। राजस्थान में उस्ता कला के कलाकारों को सर्वप्रथम आश्रय बीकानेर के राजा रायसिंह ने दिया। राजस्थान में सर्वप्रथम प्रसिद्धि दिलाने वाला व्यक्ति कादरबख्श था। इलाही बख्श उस्ता जर्मन चित्रकार ए. एच. मूलर का शिष्य था। इलाहीबख्श उस्ता ने स्व. गंगासिंहजी का चित्र बनाया जो वर्तमान में भी UNO मुख्यालय में लगा हुआ है। अगस्त 1975 में ‘उस्ता कैमल हाइड ट्रेनिंग सेंटर’ की स्थापना बीकानेर में की गई। इस सेंटर के प्रथम निदेशक स्व. हिसामुद्दीन उस्ता थे तथा प्रथम प्रशिक्षण प्राप्त करने वाला कारीगर मोहम्मद असगर उस्ता था। 1914 ई. में दुलमेरा (बीकानेर) में जन्मे हिसामुद्दीन उस्ता इस कला के प्रसिद्ध कलाकार थे। 1986 में हिसामुद्दीन उस्ता को राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने पद्‌मश्री से सम्मानित किया। वर्ष 1987 में हिसामुद्दीन उस्ता का निधन हो गया। वर्तमान में इस कला के प्रसिद्ध कलाकार हनीफ उस्ता है जिन्होंने अजमेर के ख्वाजा साहब की दरगाह पर स्वर्ण नक्काशी का कार्य किया। जोधपुर के ज्योति स्वरूप शर्मा ने ऊँट की खाल से ढाल व सुराही पर नक्काशी की।

– मारवाड़ में ऊँट के बच्चे को तोड़्यो कहा जाता है जिसके मुलायम बालों को सूत के साथ धागा मिलाकर कपड़ा तैयार किया जाता है। इसे बाखल कहते है।

– गेंड़े की खाल से बनी ‘ढाल’ पर सुनहरी नक्काशी के लिए जोधपुर के लालसिंह भाटी को राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान किया गया है।

मृण शिल्प :-

 कुम्हार / कुंभार :- मिट्‌टी के बर्तन, खिलौने, खेलू आदि बनाने वाला। वैदिक काल में कुम्हार के लिए कुलाल शब्द का प्रयोग होता था।

टेराकोटा :- मृण-शिल्प अर्थात् मिट्‌टी से मूर्तियां बनाने की कला। मोलेला गाँव (राजसमन्द) मृण शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। मोलेला व हरजी के कुम्हार मिट्टी में गधे की लीद मिलाकर मूर्तियाँ बनाते हैं एवं उन्हें उच्च ताप पर पकाते हैं। प्रसिद्ध शिल्पकार :- मोहनलाल प्रजापत। मोलेला गाँव के कुम्हार मूर्तियाँ बनाने के लिए सोलानाड़ा तालाब की काली चिकनी मिट्‌टी काम में लेते हैं।

– हरजी गाँव (जालौर) के कुम्हार मामाजी के घोड़े बनाते हैं।

– बू-नरावता गाँव मिट्‌टी के खिलौने, गुलदस्ते, गमले, पक्षियों की कलाकृतियों के काम के लिए प्रसिद्ध है। बू-नरावतां गाँव नागौर जिले में स्थित है।

– मेहटोली (भरतपुर) :- मृत्तिका शिल्प के लिए प्रसिद्ध गाँव।

– श्यामोता (सवाईमाधोपुर) :- यहाँ के कुम्हारों द्वारा बनाये जाने वाले मिट्‌टी के खिलौने एवं बर्तन पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है।

– सुनहरी टेराकोटा :- बीकानेर।

पॉटरी :- मिट्‌टी के बर्तन बनाने की कला को पॉटरी कहते है। यह राजस्थान का सर्वाधिक प्राचीन और परम्परागत हस्तशिल्प है। पॉटरी को 800° C तक ताप में पकाया जाता है। पॉटरी कला के तीन प्रकार प्रचलित हैं –

(A) ब्ल्यू पॉटरी :- चीनी मिट्‌टी के आकर्षक बर्तनों पर चित्रकारी।

– पर्शिया / दमिश्क :- विश्व में ब्ल्यू पॉटरी का जन्म स्थल।

– भारत में इस कला का प्रचलन दिल्ली व मुल्तान में अकबर के शासन काल में हुआ।

– राजस्थान में इस कला को सबसे पहले लाने का श्रेय आमेर के राजा मानसिंह प्रथम को जाता है। मानसिंह इस कला को लाहौर से जयपुर लेकर आए।

– राजस्थान में ब्ल्यू पॉटरी का सर्वाधिक विकास महाराजा रामसिंह के समय हुआ था। राजस्थान में इस कला काे लाने का वास्तविक श्रेय महाराजा रामसिंह को ही जाता है।

– पूरे देश में इस कला को प्रसिद्ध करने का श्रेय पद्‌मश्री प्राप्त कृपालसिंह शेखावत को जाता है। कृपालसिंह शेखावत को 1974 ई. में पद्‌मश्री से सम्मानित किया गया है। इन्होंने ब्लू पॉटरी में 25 रंगों का प्रयोग कर नई शैली (कृपाल शैली) का विकास किया। कृपालसिंह शेखावत का जन्म मऊ (सीकर) में हुआ था। इनका 2009 में निधन हो गया था।

– ब्ल्यू पॉटरी में नीला, हरा, मटियाला तथा तांबाई रंग विशेष रूप से काम में लेते हैं।

– ब्ल्यू पॉटरी के कलाकार :- प्रभुदयाल यादव, मीनाक्षी राठौड़, गोपाल सैनी।

– स्व. नाथी बाई ब्ल्यू पॉटरी की सिद्ध हस्तकला महिला थी।

– ब्लैक पॉटरी के लिए प्रसिद्ध :- कोटा।

– कागजी पॉटरी के लिए प्रसिद्ध :- अलवर। कागजी पॉटरी को पतली, कागदी परतदार या डबलकोर्ट पॉटरी भी कहा जाता है।

– खुर्जा गाँव (UP) की सुप्रसिद्ध ब्ल्यू पॉटरी मशीन से बनती है।

– सुनहरी पेंटिंग वाली पॉटरी के लिए प्रसिद्ध :- बीकानेर।

– मूण :- पश्चिमी राजस्थान में बनाये जाने वाले बड़े मटके।

– कुंजबिहारी सोनी :- मिट्‌टी की ज्वैलरी बनाने में सिद्धहस्त।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page