अन्य :-
– राजस्थानी साहित्य के विकास में संवत् 15वीं से 17वीं सदी के समय को उत्कर्षकाल तथा सन् 17वीं से 19वीं सदी तक के समय को ‘राजस्थानी साहित्य का स्वर्णकाल’ कहा गया।
– कुवलयमाला :- उद्योतन सूरि (जालौर) की काव्य-रचना।
– गवरीबाई को ‘बागड़ की मीरां’ कहा जाता है।
– जैन साहित्य की प्रमुख रचनाएँ :-
धूर्ताख्यान :- हरिभद्र सूरी की रचना।
अष्टक प्रकरण वृत्ति व चैतन्य वंदक :- जिनेश्वर सूरि की रचना।
पंचग्रंथी व्याकरण :- बुद्धिसागर सूरि की रचना।
– राजस्थान में आड़ी, पाली, हीयाली आदि शब्द ‘पहेली’ के लिए प्रचलित है।
– राजस्थान के वागड़ क्षेत्र (डूंगरपुर-बाँसवाड़ा) में ‘गलालैग’ नामक लोक कविताओं में लोक देवी-देवताओं को देवता के रूप में प्रस्तुत कर उनके गुणों और कर्मों को चमत्कार की तरह वर्णित किया जाता है।
– गद्य साहित्य :- वात, वचनिका, ख्यात, दवावैत, वंशावली, पट्टावली, विगत आदि।
पद्य साहित्य :- दूहा, सोरठा, गीत, कुण्डलिया, छंद, रासो, रास, चर्चरी, चोढ़ालिया, वेलि, धवल, बारहमासा, बावनी, कुलक, संझाय आदि।
– अचलदास खींची री वचनिका (शिवदास गाडण) गद्य एवं पद्य दोनों में है।
– राजस्थानी साहित्य में ‘राष्ट्रीय धारा’ की स्पष्ट छाप सर्वप्रथम सूर्यमल्ल मिश्रण के ग्रंथों में दिखाई देती है। मिश्रण ने अपने ग्रंथ ‘वीर सतसई’ में अंग्रेजी दासता के विरुद्ध बिगुल बजाया।
– सूर्यमल्ल मिश्रण (बूँदी) को ‘राजस्थानी साहित्य नवजागरण के पहले कवि’ के रूप में माना जाता है।
– विजयदान देथा (विज्जी) का बातां री फुलवारी ग्रन्थ 14 खण्डों में विभाजित हैं।
– ‘राजस्थानी शब्द-कोश के रचनाकार’ :- सीताराम लालस।
– नागर-समुच्चय :- किशनगढ़ शासक सावंतसिंह (नागरीदास) रचित ग्रन्थ।
– नागरीदास (सावंतसिंह) की प्रमुख रचनाएँ :- सिंगार, सागर, गोपी प्रेम प्रकाश ब्रजसार, भाेरलीला, विहार चन्द्रिका, गोधन आगमन, गोपीबन विलास ब्रज नाममाला आदि।
– कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 1919 ई. में सुजानगढ़ (चूरू) में हुआ था। कन्हैयालाल सेठिया को उनके ‘लीलटास’ काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। वर्ष 2012 में राजस्थान रत्न पुरस्कार दिया गया था।
– कोमल कोठारी :- 1929 में कपासन गाँव में जन्म।
1952 में जोधपुर से प्रकाशित मासिक ‘ज्ञानोदय’ एवं उदयपुर से प्रकाशित साप्ताहिक ‘ज्वाला’ का संपादन किया।
1983 में पद्मश्री एवं 1984 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित।
2004 में निधन। मरणोपरान्त 2012 में इन्हें राजस्थान रत्न पुरस्कार-2012 से सम्मानित किया गया।
– बिहारी मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे।
– दुरसा आढ़ा को अकबर ने लाख पसाव दिया। दुरसा आढ़ा अकबर के दरबारी कवि थे।
– हाला-झाला री कुण्डलियाँ ईश्वरदास द्वारा रचित वीर रस प्रधान ग्रन्थ है।
– दुरसा आढ़ा ने पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा रचित ‘वेलि क्रिसन रुक्मणि री’ को ‘पाँचवे वेद’ की उपमा दी। डॉ. एल. पी. टैस्सिटोरी ने पृथ्वीराज राठौड़ (बीकानेर) को ‘डिगंल का हैरोस’ कहा है।
– राजस्थान के प्रेमाख्यान :- ढोला-मारु, जेठवा ऊजली, खीवों आभल, महेन्द्र-मूमल, जसमा-ओडण, नाग-नागमति की कथा।
– ‘एक और मुख्यमंत्री’ उपन्यास यादवेन्द्र चन्द्र ‘शर्मा’ द्वारा लिखा गया।
परीक्षाओं में पूछे गए महत्वपूर्ण तथ्य :-
- पंचतंत्र के लेखक :-विष्णु शर्मा
- एल. पी. टैसीटोरी संबंधित है :-चारण साहित्य से।
- केसरीसिंह बारहठ द्वारा रचित ‘चेतावणी रा चूग्टयां’ के माध्यम से महाराणा फतेहसिंह को दिल्ली दरबार में जाने से रोका था।
- ‘ढोला मारु रा दुहा’ कवि कल्लोल की रचना है।
- अलभ्य एवं दुर्लभ साहित्य का अप्रितम खजाना ‘सरस्वती पुस्तकालय’ फतेहपुर (सीकर) में है।
- संस्कृत महाकाव्य ‘शिशुपाल वध’ के रचयिता महाकवि माघ का सम्बन्ध भीनमाल से है।
- ‘हम्मीर मर्दन’ के लेखक :-जयसिंह सूरि।
- ‘बीकानेर के राठौड़ की ख्यात’ के लेखक :-दयालदास।
- राजस्थान में पोथीघर अध्ययन केन्द्र जापान की सहायता से खोले जाएंगे।
- हम्मीर रासा पिंगल भाषा का ग्रन्थ है।
- ‘सुन्दर विलास’ के रचयिता :-सुन्दरदास।
- राव ‘जैतसी रो छन्द’ के रचयिता :-बीठू सुजाजी।
- ‘राजस्थान के गजेटियर’ की उपमा :-मारवाड़ रा परगना री विगत (मुहणौत नेणसी द्वारा रचित)।
- राजपुताना का अबुल फजल मुहणोत नैणसी को कहा जाता है।
- ‘गलालैग’ वीर काव्य की स्थापना अमरनाथ जोगी ने की।
- रुसी कथाओं के राजस्थानी अनुवाद ‘गजबण’ के लिए सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार लक्ष्मी कुमारी चूण्डावत को दिया गया।
- नेमिनाथ बारहमासा :-जैन कवि पाल्हण द्वारा रचित।
- पृथ्वीराज रासौ पिंगल में रचित वीर रस का महाकाव्य है।
- दुर्गा सप्तशती एवं रणमल छन्द श्रीधर व्यास की प्रमुख रचनाएँ हैं।
- ‘पृथ्वीराज विजय’ के लेखक :-जयानक।
- ‘विजयपाल रासौ’ के लेखक :-नल्लसिंह। (पिंगल भाषा में)
- ‘वीरमायण’ के लेखक :-बादर ढाढ़ी।
- ‘रावरिणमल रो रूपक’ एवं ‘गुण जोधायण’ गाडण पसाइत की प्रमुख रचनाएँ हैं।
- पद्मनाभ जालौर के चौहान अखैराज के आश्रित कवि थे। इन्होंने ‘कान्हड़दे प्रबन्ध’ की रचना की।
- ‘पाबूजी रा छंद’ ‘गोगाजी रा रसावला’ ‘करणी जी रा छंद’ अादि बीठू मेहाजी की रचनाएँ हैं।
- करणीदान कविया जोधपुर महाराजा अभयसिंह के आश्रित कवि थे।
- जयपुर महाराजा प्रतापसिंह ‘ब्रजनिधि’ नाम से कविता लिखते थे।
- 1857 की क्रान्ति का स्पष्ट व विस्तृत वर्णन सूर्यमल्ल मिश्रण के ‘वीर सतसई’ ग्रन्थ में मिलता है।
- कर्नल जेम्स टॉड (स्कॉटलैण्ड निवासी) को ‘राजस्थान के इतिहास लेखन का पितामह’ कहा जाता है।
- डॉ. एल. पी. टेस्सीटोरी का जन्म इटली के उदीने नगर में हुआ था। बीकानेर उनकी कर्मस्थली रहा।
- कन्हैयालाल सेठिया का प्रथम काव्य संग्रह :-वनफूल।
- पंडित झाबरमल शर्मा को ‘पत्रकारिता का भीष्म पितामह’ के रूप में जाता जाता है।
- आधुनिक राजस्थान का ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र’ :-शिवचन्द्र भरतिया।
- चारण कवियों द्वारा प्रस्तुत राजस्थानी भाषा का साहित्यिक रूप :-डिंगल।
- राजस्थानी साहित्य अकादमी :-उदयपुर में।
- ‘ललित विग्रहराज’ का रचयिता सोमदेव चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ (कवि बान्धव) का दरबारी था।
- स्वामी दयानन्द सरस्वती के ग्रन्थ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ का प्रकाशन अजमेर में हुआ।
- महाराणा कुम्भा द्वारा रचित ग्रंथ ‘संगीत राज’ 5 कोषों में विभक्त हैं।
- राजस्थानी साहित्य का वीरगाथा काल :-वि. स. 800 से 1460 तक।
- राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान :-जोधपुर में। (1951 में स्थापित)
- रास्थान राज्य अभिलेखागार :-बीकानेर में (1955 में स्थापित)।
- राजस्थानी पंजाबी भाषा अकादमी :-श्रीगंगानगर (2006 में स्थापित)।
- पण्डित झाबरमल्ल शोध संस्थान :-जयपुर (2000 ई. में स्थापित)।
- रिहाण :-राजस्थान सिंधी अकादमी (जयपुर) की वार्षिक साहित्यिक पत्रिका।
- संस्कृत दिवस :-श्रावण पूर्णिमा।