राजस्थान सामान्य ज्ञान : राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति

राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति

    साहित्य में प्रथम-

राजस्थानी की प्राचीनतम रचनाभरतेश्वर बाहुबलिघोर

(लेखक वज्रसेन सूरि 1168 ई. के लगभग)।

भाषा मारू गुर्जर विवरण – भरत और

बाहुबलि के बीच हुए युद्ध का वर्णन है।

संवतोल्लेख वाली प्रथम

राजस्थानी रचना

भरत बाहुबलि रास (1184 ई.) में

शालिभद्र सूरि द्वारा रचित ग्रंथ भारू

गुर्जर भाषा में रचित रास परम्परा

में सर्वप्रथम और सर्वाधिक

पाठ वाला खण्ड काव्य।

वचनिका शैली की

प्रथम सशक्त रचना

अचलदास खींची री वचनिका

(शिवदास गाडण)।

राजस्थानी भाषा का

पहला उपन्यास

कनक सुन्दर (1903 में

शिवचन्द भरतिया द्वारा लिखित।

श्री नारायण अग्रवाल का ‘चाचा’

राजस्थानी का दूसरा उपन्यास है।)

राजस्थानी का प्रथम नाटककेसर विलास (1900 शिवचन्द्र भरतिया)
राजस्थानी में प्रथम कहानीविश्रांत प्रवासी (1904 शिवचन्द्र भरतिया

राजस्थानी उपन्यास नाटक और कहानी

के प्रथम लेखक माने जाते हैं।)

स्वातंत्र्योत्तर काल का प्रथम

राजस्थानी उपन्यास

आभैपटकी (1956 श्रीलाल नथमल जोशी)
आधुनिक राजस्थानी की

प्रथम काव्यकृति

बादली (चन्द्रसिंह बिरकाली)।

यह स्वतंत्र प्रकृति चित्रण की

प्रथम महत्वपूर्ण कृति है।

 

राजस्थानी साहित्य की प्रमुख रचनाएँ

ग्रन्थ      एवं               लेखक              वर्णन

  1. पृथ्वीराज रासौ(कवि चंदबरदाई) –इसमें अजमेर के अन्तिम चौहान सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय के जीवन चरित्र एवं युद्धों का वर्णन है। यह पिंगल में रचित वीर रस का महाकाव्य है। माना जाता है कि चन्दबरदाई पृथ्वीराज चौहान का दरबारी कवि एवं मित्र था।
  2. खुमाण रासौ(दलपत विजय) –  पिंगल भाषा के इस ग्रन्थ में मेवाड़ के बप्पा रावल से लेकर महाराजा राजसिंह तक के मेवाड़ शासकों का वर्णन है।
  3. विरुद छतहरीकिरतार बावनौ(कवि दुरसा आढ़ा) –विरुद छतहरी महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा है और किरतार बावनौ में उस समय की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को बतलाया गया है। दुरसा आढ़ा अकबर के दरबारी कवि थे। इनकी पीतल की बनी मूर्ति अचलगढ़ के अचलेश्वर मंदिर में विद्यमान है।
  4. बीकानेर रां राठौड़ारी ख्यात(दयालदास सिंढायच) – दो खंडो के इस ग्रन्थ में जोधपुर एवं बीकानेर के राठौड़ों के प्रारंभ से लेकर बीकानेर के महाराजा सरदारसिंह के राज्याभिषेक तक की घटनाओं का वर्णन है।
  5. सगत रासौ(गिरधर आसिया) –इस डिंगल ग्रन्थ में महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्तिसिंह का वर्णन है। यह 943 छंदों का प्रबंध काव्य है। कुछ पुस्तकों में इसका नाम सगतसिंह रासौ भी मिलता है।
  6. हम्मीर रासौ(जोधराज)– इस काव्य ग्रन्थ में रणथम्भौर शासक राणा हम्मीर चौहान की वंशावली व अलाउद्दीन खिलजी से युद्ध एवं उनकी वीरता आदि का विस्तृत वर्णन है।
  7. पृथ्वीराज विजय(जयानक)– संस्कृत भाषा के इस काव्य ग्रन्थ में पृथ्वीराज चौहान के वंशक्रम एवं उनकी उपलब्धियों का वर्णन किया गया है। इसमें अजमेर के विकास एवं परिवेश की प्रामाणिक जानकारी है।
  8. अजीतोदय(जगजीवन भट्ट)– इसमें मारवाड़ की ऐतिहासिक घटनाओं, विशेषतः महाराजा जसवंतसिंह एवं अजीतसिंह के मुगल संबंधों का विस्तृत वर्णन है। यह संस्कृत भाषा में है।
  9. ढोला मारु रा दूहा(कवि कल्लोल) डिंगल भाषा के शृंगार रस से परिपूर्ण इस ग्रन्थ में ढोला एवं मारवणी के प्रेमाख्यान का वर्णन है।
  10. गजगुणरूपक(केशवदास गाडण) –इसमें जोधपुर के महाराजा गजराजसिंह के राज्य वैभव, तीर्थयात्रा एवं युद्धों का वर्णन है। गाडण जोधपुर महाराजा गजराजसिंह के प्रिय कवि थे।
  11. सूरज प्रकास(कविया करणीदान)–  इसमें जोधपुर के राठौड़ वंश के प्रारंभ से लेकर महाराजा अभयसिंह के समय तक की घटनाओं का वर्णन है। साथ ही अभयसिंह एवं गुजरात के सूबेदार सरबुलंद खाँ के मध्य युद्ध एवं अभयसिंह की विजय का वर्णन है।
  12. एकलिंग महात्म्य(कान्हा व्यास) –यह गुहिल शासकों की वंशावली एवं मेवाड़ के राजनैतिक व सामाजिक संगठन की जानकारी प्रदान करता है।
  13. मुहणोत नैणसी री ख्यातमारवाड़ रा परगना रीविगत (मुहणौत नैणसी) –जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह-प्रथम की दीवान नैणसी की इस कृति में राजस्थान के विभिन्न राज्यों के इतिहास के साथ-साथ समीपवर्ती रियासतों (गुजरात, काठियावाड़, बघेलखंड आदि) के इतिहास पर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है। नैणसी को राजपूताने का ‘अबुल फजल’ भी कहा गया है। मारवाड़ रा परगना री विगत को राजस्थान का गजेटियर कह सकते हैं।

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