अन्य :-
– राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी के गुर्जर अपभ्रंश से मानी जाती है।
– ‘कुवलयमाला’ ग्रन्थ 778 ई. में उद्योतन सूरी द्वारा जालौर में लिखा गया।
– 1961 की जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में 73 बोलियाँ बोली जाती हैं।
– 17वीं सदी के अंत तक राजस्थानी पूर्णत: एक स्वतंत्र भाषा का रूप ले चुकी थी।
राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति को लेकर विभिन्न मत :-
डॉ. एल. पी. टैसीटोरी के अनुसार :- शौरसेनी अपभ्रंश से
डॉ. जे. अब्राहम ग्रियर्सन एवं डाॅ. मेनारिया के अनुसार :- नागर अपभ्रंश से
डॉ. के. एम. मुंशी एवं मोतीलाल मेनारिया के अनुसार :- गुर्जरी अपभ्रंश से।
सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार :- सौराष्ट्री अपभ्रंश से।
– राजस्थान में महाजन लोग ‘मुड़िया लिपि अथवा महाजनी लिपि’ का प्रयोग करते हैं।
– उदीने (इटली) निवासी डॉ. एल. पी. टैसीटोरी की कार्यस्थली बीकानेर रही। बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने टैसीटोरी को ‘राजस्थान के चारण साहित्य’ के सर्वेक्षण एवं संग्रह का कार्य सौंपा था। टैसीटोरी ने बीकानेर के जैन आचार्य विजय धर्मसूरि से अनेक धर्मग्रन्थों का अध्ययन किया।
– ढटकी, थली, बागड़ी, खैराड़ी एवं देवड़ावटी पश्चिमी राजस्थान की बोलियाँ हैं।
– धावड़ी उदयपुर की एक बोली है।
– डॉ. ग्रियर्सन बांगड़ी बोली को ‘भीली बोली’ की संज्ञा दी है।
– पचवारी पूर्वी राजस्थान की एक बोली है जो लालसोट से सवाईमाधोपुर के मध्य बोली जाती है।
– जगरौती करौली की प्रमुख बोली है।
– वर्तनी की दृष्टि से हाड़ौती राजस्थान की सभी बोलियों में सबसे कठिन समझी जाती है।
– चन्द्रसखी एवं नटनागर की रचनाएँ मालवी भाषा में है।
– जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने अपने Linguistic Survey of India में राजस्थानी का स्वतंत्र भाषा के रूप में वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया।
– Modern Vernacluar Literature of Northern India :- जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन की पुस्तक।
– दक्षिणी राजस्थान की प्रमुख बोली :- नीमाड़ी।