राजस्थान सामान्य ज्ञान : रक्त का संगठन

 

श्वेत रूधिर कणिकाएं मुख्यत 2 प्रकार की होती हैं-

(a) ग्रेन्यूलोसाइट या कणिकामय – न्यूट्रोफिल्स (50-70%), इआसिनोफिल्स (3-5%), बेसोफिल्स (1-3%) होता है।

(b) अग्रेन्यूलोसाइट व कणिका रहित – लिम्फोसाइट्स (28-35%) तथा मोनोसाइट्स (5%)।

(i) न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils) – W.B.C. में इनकी संख्या सबसे अधिक होती है। इनका मुख्य कार्य जीवाणुओं का भक्षण करना है। इन्हें Microphases (माइक्रोफेजेज) कहते हैं।

(ii) इआसिनोफिल्स (Eosinophills) – Allergy (एलर्जी), अस्थमा एवं कृमि के इन्फैक्शन होने से रूधिर में इनकी संख्या बढ़ जाती है।

(iii) बेसोफिल्स – ये सबसे छोटी (10 \muμm) W.B.C. है तथा Mast cells द्वारा स्त्रावित पदार्थ हिंपैरीन, हिस्टामीन का वहन करती है।

(iv) लिम्फोसाइटस – ये जीवनकाल वर्षों तक एन्टीबॉडीज (प्रतिरक्षी) का निर्माण करती है। जो बाह्य पदार्थें (एन्टीजन) से क्रिया करके उन्हें नष्ट करते हैं।

(v) मोनोसाइटस – ये सबसे बड़ी (16 \muμm) W.B.C. है। ये भी जीवाणु आदि बाह्य पदार्थों का भक्षण करती है। इन्हें मेक्रोफेजेज (Macrophages) भी कहते हैं।

  • B.C. की संख्या 4000 से 11,000 / ml of Blood होती है।
  • Blood Cancer में श्वेत रूधिर कणिकाओं की संख्या अत्यधिक बढ़ जाती है। (5 लाख/mm3तक)।
  • कोई इन्फेक्शन बीमारी (जीवाणु) का आक्रमण होने पर भी इनकी संख्या बढ़ जाती है। परन्तु 5 से कम।

(iii)  रूधिर पट्टिकाएं (Blood Platelets) : इन्हें थ्रोम्बोसाइट भी कहते हैं।

  • ये वास्तविक कोशिकाएं ना होकर एक बड़ी कोशिका के टुकड़े हैं।
  • इनका आकार B.C. एवं W.B.C. से छोटा (2-3 \muμm) होता है।
  • इनका निर्माण भी अस्थि मज्जा में ही होता है।
  • इनका जीवनकाल 1 सप्ताह तक होता है।
  • इनका मुख्य कार्य रूधिर के थक्के बनाना होता है।

सीरम : रूधिर स्कन्दन के बाद कुछ पीला सा पदार्थ शेष रह जाता है जिसे सीरम कहते हैं। इसमें फाइब्रिनोजन प्रोटीन नहीं पाया जाता क्योंकि यह स्कन्दन के समय फ्राइब्रिन में बदल जता है। सिरम में एन्टीबॉडीज भी नहीं पायी जाती है।

रूधिर = प्लाज्मा + रक्त कोशिकाएँ (R.B.C. W.B.C., Platelets)।

प्लाज्मा = रूधिर – रक्त कोशिकाए।

सीरम = प्लाज्मा – फाइब्रिनोजन + एन्टीबॉडीज।

रक्त का थक्का जमना

रूधिर स्कन्दन (Blood Clotting) : इसे रूधिर का थक्का बनना कहते हैं। यह एक जटिल प्रक्रिया है जब किसी शरीर के भाग से करने पर रूधिर निकलता है। तब रूधिर में उपस्थित प्लेटलेटस से स्त्रावित रासायनिक पदार्थ रूधिर के प्रोटीन से क्रिया करके प्रोथ्रोम्बोप्लास्टीन नामक पदार्थ में बदल जाती है।

(i) प्रोथ्रोम्बोप्लास्टीन + रूधिर का Ca++ \rightarrow→ थ्रोम्बोप्लास्टीन बनता है।

(ii) निष्क्रिय प्रोथ्रोम्बीन (प्लाज्मा में प्रोटीन)सक्रिय थ्रोम्बीन

(iii) फाइब्रिनोजन (प्लाज्मा प्रोटीन)फाइब्रिन \rightarrow→ बारीक व कोमल तन्तुओं का जाल बनाता है (अघुलनशील प्रोटीन)

(iv) फाइब्रिन + R.B.C. \rightarrow→ रूधिर का थक्का

  • इस प्रोथ्रोम्बोप्लास्टीन से थ्रोम्बोप्लास्टीन बनता है।
  • यह थ्रोम्बोप्लास्टीन प्रोथ्रोम्बीन को सक्रिय थ्रोम्बीन में बदलता है।
  • यह थ्रोम्बीन फाइब्रिनोजन में अघुलनशील फाइब्रिन में बदल देता है।
  • यह अघुलनशील फाइब्रिन बारीक जालनुमा संरचना बनाते हैं जिससे प्लेटलेट्स उलझ जाती है एवं रक्त का बहना रूक जाता है एवं रूधिर का थक्का बन जाता है।
  • मानव रक्त में पाया जाने वाला हिपैरीन (एन्टीप्रोथ्रोम्बीन) रक्त को रक्त वाहिनियों में जमने से रोकता है अर्थात् तरल दशा में बनाये रखता है।
  • रक्त बैंक में मानव रक्त को 30 दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • बैंक में मानव रक्त को सोडियम नाइट्रेट व डेक्सट्रेट (घुलनशील कार्बोहाइड्रेट) के साथ मिलाकर 4ºC पर रखते हैं।
  • रूधिर शरीर के ताप को एक सा (समान) बनाये रखता है।
  • सर्वप्रथम विलियम हार्वे और मारसैली मैलपीधी ने यह सिद्ध किया था कि मनुष्य में रक्त का परिसंचरण बन्द नलिकाओं में होता है।

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