राजस्थान सामान्य ज्ञान : राजस्थान के प्रमुख राजवंश एंव उनकी उपलब्धियां

 

 

महाराणा अमरसिंह प्रथम (1597-1620 .)

  • अमरसिंह प्रथम महाराणा प्रताप के पुत्र थे।
  • अमरसिंह का राज्याभिषेक चांवड़ में हुआ था।
  • सन् 1615 ई. में जहाँगीर की अनुमति से खुर्रम व अमरसिंह के बीच सन्धि हुई जिसे मुगल-मेवाड़ सधि के नाम से जाना जाता है। इसके द्वारा मेवाड़ ने भी मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।
  • अमरसिंह का पुत्र कर्णसिंह जहाँगीर के दरबार में उपस्थित हुआ था।
  • आहड़ में महासतियों के पास गंगो गाँव मे अमरसिंह की छतरी बनी हुई है।
  • बादशाह जहांगीर महाराणा को अधीन करने के इरादे से 8 नवम्बर, 1613 को अजमेर पहुंचा और शाहजादा खुर्रम को सेना लेकर मेवाड़ भेजा। अंतः युद्धों से जर्जर मेवाड़ की अर्थव्यवस्था के मध्यनजर सभी सरदारों एवं युवराज कर्णसिंह के निवेदन पर महाराणा अमरसिंह ने 5 फरवरी, 1615 को निम्न शर्त़ों पर शहजादा खुर्रम से संधि की।

(1) महाराणा बादशाह के दरबार में कभी उपस्थित न होगा।

(2) महाराणा का ज्येष्ठ कुँवर शाही दरबार में उपस्थित होगा।

(3) शाही सेना में महाराणा 1000 सवार रखेगा।

(4) चित्तौड़ के किले की मरम्मत न की जाएगी।

महाराणा कर्णसिंह (1620-1628 .)

  • महाराणा कर्णसिंह का जन्म 7 जनवरी, 1584 को और राज्याभिषेक 26 जनवरी, 1620 को हुआ।
  • 1622 ई. में शाहजादा खुर्रम ने अपने पिता जहाँगीर से विद्रोह किया। उस समय शाहजादा उदयपुर में महाराणा के पास भी आया। माना जाता है कि वह पहले कुछ दिन देलवाड़ा की हवेली में ठहरा, फिर जगमंदिर में। महाराणा कर्णसिंह ने जगमंदिर महलों को बनवाना शुरू किया, जिसे उनके पुत्र महाराणा जगतसिंह प्रथम ने समाप्त किया। इसी से ये महल जगमंदिर कहलाते हैं।

महाराणा जगतसिंह प्रथम (1628-1652 .)

  • कर्णसिंह के बाद उसका पुत्र जगतसिंह प्रथम महाराणा बना।
  • जगतसिंह बहुत ही दानी व्यक्ति था। उसने जगन्नाथ राय (जगदीश) का भव्य विष्णु का पंचायतन मंदिर बनवाया। यह मंदिर अर्जुन की निगरानी और सूत्रधार (सुथार) भाणा और उसके पुत्र मुकुन्द की अध्यक्षता में बना। उक्त मंदिर की प्रतिष्ठा 13 मई, 1652 को हुई इस मंदिर की विशाल प्रशस्ति जगन्नाथ राय प्रशस्ति की रचना कृष्णभ़ट्ट ने की।
  • महाराणा ने पिछोला में मोहनमंदिर और रूपसागर तालाब का निर्माण कराया। जगमंदिर में जनाना महल आदि बनवाकर उसका नाम अपने नाम पर जगमंदिर रखा।
  • जगदीश मंदिर के पास वाला धाय का मंदिर महाराणा की धाय नौजूबाई द्वारा बनवाया गया। महाराणा जगतसिंह के समय ही प्रतापगढ़ की जागीर मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा मेवाड़ से स्वतंत्र करा दी गई।

महाराणा राजसिंह (1652-80 .)

  • महाराणा जगतसिंह के पुत्र राजसिंह का राज्याभिषेक 10 अक्टूबर, 1652 ई. को हुआ।
  • इन्होंने गोमती नदी के पानी को रोककर राजसंमद झील का निर्माण करवाया। इसी झील के उत्तर में नौ चौकी पर 25 शिलालेखों पर संस्कृत का सबसे बड़ा शिलालेख ‘राज-प्रशस्ति’ अंकित है, जिसके लेखक  रणछोड़ भट्ट तैलंग है।
  • राजसिंह ने किशनगढ़ की राजकुमारी चारूमति से विवाह किया जिससे औरगंजेब स्वयं विवाह करना चाहता था। अतः दोनों मे कटुता उत्पन्न हुई।
  • महाराणा राजसिंह ने 1664 ई. में उदयपुर में अम्बा माता का तथा कांकरोली में द्वारिकाधीश मंदिर बनवाया।
  • महाराणा राजसिंह रणकुशल, साहसी, वीर, निर्भीक, सच्चा क्षत्रिय, बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ और दानी राजा था। उसने महाराणा जगतसिंह द्वारा प्रारंभ की गई चित्तौड़ के किले की मरम्मत का कार्य जारी रखा और बादशाह औरंगजेब के 2 अप्रेल, 1679 को हिन्दुओं पर जजिया लगाने, मूर्तियाँ तुड़वाने आदि अत्याचारों का प्रबल विरोध किया।
  • जोधपुर के अजीतसिंह को अपने यहाँ आश्रय दिया और जजिया कर देना स्वीकार नहीं किया।

महाराणा जयसिंह (1680-1698 .)

  • इन्होंने 1687 ई. में गोमती, झामरी, रूपारेल एवं बगार नामक नदियों के पानी को रोककर ढेबर नामक नाके पर संगमरमर की जयसमंद झील बनवाना प्रारंभ किया गया जो 1691 ई. में बनकर तैयार हुई।
  • इसे ढेबर झील भी कहते हैं।

महाराणा अमरसिंह द्वितीय (1698-1710 .)

  • वागड़ व प्रतापगढ़ को पुनः अपने अधीन किया एवं जोधपुर व आमेर को मुगलों से मुक्त कराकर क्रमशः अजीतसिंह एवं सवाई जयसिंह को वापस वहाँ का शासक बनने में सहायता की।
  • इन्होंने अपनी पुत्री का विवाह जयपुर महाराजा सवाई जयसिंह से किया।
  1. अन्यसिसोदियाराज्य
  • मेवाड़ के राजवंश से निकले वीरों ने चार अन्य रिसायतें यथा-प्रतापगढ़, डूंगरपुर, शाहपुरा एवं बाँसवाड़ा स्थापित की। मेवाड़ के गुहिल शासक सामंतसिंह ने 1177 ई. में जालौर के शासक कीर्तिपाल (कीतू) से हारने के बाद वागड़ में परमारों को हराकर गुहिल वंश का शासन स्थापित किया। इसके वंशज डूंगरसिंह ने 1358 ई. में डूंगरपुर नगर बसाकर अपनी राजधानी बड़ौदा से डूंगरपुर स्थानान्तरित की। 1527 ई. में वागड़ का शासक महारावल उदयसिंह खानवा के युद्ध में राणा सांगा की ओर से युद्ध करते हुए शहीद हो गया। इसके बाद उसके दो पुत्रों ने वागड़ राज्य को दो हिस्सों में बांट लिया। बड़े पुत्र पृथ्वीराज ने डूंगरपुर तथा छोटे जगमाल ने बांसवाड़ा का शासन संभाला।
  • डूंगरपुर राज्य : 1527 के बाद वागड़ के डूंगरपुर क्षेत्र पर महारावल उदयसिंह के पुत्र पृथ्वीराज ने अपना शासन स्थापित किया। 1573 ई. में अकबर ने आक्रमण कर इसे जीत लिया। 1577 ई. में महारावल आसकरण ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। आसकरण के समय जोधपुर नरेश राव चन्द्रसेन ने अकबर से पराजित होकर डूंगरपुर में शरण ली थी। आसकरण की पटरानी प्रेमल देवी ने डूंगरपुर में सन् 1586 में भव्य नौलखा बावड़ी का निर्माण करवाया। यहां के शासक शिवसिंह (1730-1785 ई.) ने कपड़ा नापने का नया गज बनाया।
  • 1818 ई. में यहां के शासक महारावल जसवंतसिंह द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि कर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। सन् 1845 ई. में इनके शासन प्रबंध से असंतुष्ट होकर अंग्रेज सरकार ने इन्हें अपदस्थ कर वृन्दावन भेज दिया था।
  • बांसवाड़ा : 1527 ई. में वागड़ के गुहिल शासक महारावल उदयसिंह की मृत्यु के बाद राज्य का माही नदी के दक्षिण का हिस्सा उसके पुत्र जगमाल के हिस्से में आया। इसने बांसवाड़ा में भीलेश्वर महादेव मंदिर, फूलमहल एवं बाई का तालाब बनवाये। इसके वंशज उम्मेदसिंह ने 1818 ई. में अंग्रेजों से संधि कर ली और बांसवाड़ा राज्य की सुरक्षा का भार ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर आ गया।
  • प्रतापगढ़ (देवलिया) : इस राज्य की स्थापना मेवाड़ घराने के राव बीका ने 1561 ई. में की थी। यहां के शासकों ने 1663 ई. में मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। फलतः मेवाड़ राज्य ने प्रतापगढ़ पर बार-बार आक्रमण किये। अंत में 1818 ई. में इस रियासत ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि कर मराठों एवं मेवाड़ के आतंक से छुटकारा पा लिया परन्तु यह अंग्रेजों के चंगुल में फँस गई।
  • शाहपुरा : इस छोटे से राज्य की स्थापना मेवाड़ शासक महाराणा अमरसिंह प्रथम के पौत्र सुजानसिंह ने 1631 ई. में की थी। प्रारम्भ में यहां का शासन मेवाड़ एवं मुगलों के नियंत्रण में रहा। 18वीं सदी के बाद यहां के शासकों ने अंग्रेजों से संधि कर ली।

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