बप्पारावल से सम्बन्धित प्रशस्तियाँ
- रणकपुरप्रशस्ति(1439) – बप्पारावल व कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया है। (देपाक/दिपा)
- कीर्तिस्तम्भप्रशस्ति(1460) – बप्पारावल से लेकर राणा कुम्भा तक के राजाओं के विरूद्ध उपलब्धियों व युद्ध विजयों का वर्णन (अत्रि व उसके पुत्र महेश द्वारा रचित)
- कुम्भलगढ़प्रशस्ति– कान्हाव्यास द्वारा 1460 में बप्पारावल को ब्राह्मण या विप्रवंशीय बताया है।
- एकलिंगनाथकेदक्षिण द्वार की प्रशस्ति – (1488 महेश भट्ट द्वारा रचित) – बप्पारावल के संन्यास लेने का उल्लेख है।
- संग्रामसिंहद्वितीयके काल में 1719 में लिखी गयी। वैद्यनाथ प्रशस्ति में हारित ऋषि से बप्पारावल को मेवाड़ साम्राज्य मिलने का उल्लेख है। (रूपभट्ट द्वारा रचित)
- मेवाड़ के राजा एकलिंग जी को वास्तविक राजा व स्वयं इनका दीवान बनकर कार्य करते थे।
- उदयपुर के राजा राजधानी छोड़ने से पूर्व एकलिंग जी की स्वीकृति लेते थे, जिसे ‘आसकां लेना‘ कहा जाता था।
- बप्पा रावल के गुरु – हारीत ऋषि (लकुलीश शैवानुगामी परम्परा के)।
- सी.वी. वैध ने बप्पा रावल को चार्ल्स मोर्टल कहा है।
- बप्पा रावल के वंशज अल्लट (951-953) के समय मेवाड़ की बड़ी उन्नति हुई। आहड़ उस समय एक समृद्ध नगर व एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र था। अल्लट ने आहड़ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। यह भी माना जाता है कि अल्लट ने मेवाड़ में सबसे पहले नौकरशाही का गठन किया।
- मालव के परमार शासक मुझ परमार से चित्तौड़गढ़ दुर्ग हार गया।
नोट- परमारों के प्रतापी शासक भोज परमार ने 1021-1031 तक चित्तौड़ पर शासन किया तथा चित्तौड़गढ़ में त्रिभुवन नारायण देव के मन्दिर का निर्माण करवाया।
- इस मन्दिर का जीर्णोद्धार राणा मोकल ने करवाया। इसलिये इसे “मोकल का समीद्धेश्वर” मन्दिर भी कहा जाता है।
रावल जैत्रसिंह (1213-50 ई.)
- इल्तुतमिश के आक्रमण का सफल प्रतिरोध किया जिसका वर्णन जयसिंह कृत ‘हम्मीर-मान-मर्दन’ नामक नाटक में किया गया है।
- 1242-43 में जैत्रसिंह की गुजरात के त्रिभुवनपाल से लड़ाई हुई।
- जैत्रसिंह ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ को बनाई।
- तेजसिंह – 1260 ई. में मेवाड़ चित्र शैली का प्रथम ग्रन्थ ‘श्रावक प्रतिकर्मण सूत्र चुर्णि’ तेजसिंह के काल में लिखा गया।
नोट – मेवाड़ चित्रकला शैली की शुरूआत तेजसिंह के समय हुई।
रावल समरसिंह (1273-1301)
- इसने आचार्य अमित सिंह सूरी के उपदेशों से अपने राज्य में जीव हिंसा पर रोक लगाई।