महाराजा कर्णसिंह (1631-1669 ई.)
- सूरसिंह के पुत्र कर्णसिंह को औरंगजेब ने जांगलधर बादशाह की उपाधि प्रदान की।
- कर्णसिंह ने विद्वानों के सहयोग से साहित्यकल्पदुम ग्रन्थ की रचना की।
- 1644 ई. में बीकानेर के कर्णसिंह व नागौर के अमरसिंह राठौड़ के बीच ‘मतीरा री राड़‘ नामक युद्ध हुआ।
- इसके आश्रित विद्वान गंगानन्द मैथिल ने कर्णभूषण एवं काव्यडाकिनी नामक ग्रन्थों की रचना की।
महाराजा अनूपसिंह (1669-1698 ई.)
- महाराजा अनूपसिंह द्वारा दक्षिण में मराठों के विरूद्ध की गई कार्यवाहियों से प्रसन्न होकर औरंगजेब ने इन्हें ‘महाराजा‘ एवं ‘माही भरातिव‘ की उपाधि से सम्मानित किया।
- महाराज अनूपसिंह एक प्रकाण्ड विद्वान, कूटनीतिज्ञ, विद्यानुरागी एवं संगीत प्रेमी थे। इन्होंने अनेक संस्कृत ग्रन्थों – अनूपविवेक, काम-प्रबोध, अनूपोदय आदि की रचना की। इनके दरबारी विद्वानों ने अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की थी। इनमें मणिराम कृत ‘अनूप व्यवहार सागर‘ एवं ‘अनूपविलास‘, अनंन भट्ट कृत ‘तीर्थ रत्नाकर‘ तथा संगीताचार्य भावभट्ट द्वारा रचित ‘संगीत अनूपाकुंश‘, ‘अनूप संगीत विलास‘, ‘अनूप संगीत रत्नाकर‘ आदि प्रमुख हैं। उसने दक्षिण भारत से अनेकानेक ग्रन्थ लाकर अपने पुस्तकालय में सुरक्षित किये। अनूप पुस्तकालय में वर्तमान में बड़ी संख्या में ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण ग्रन्थों का संग्रह मौजूद है। दयालदास की ‘बीकानेर रा राठौड़ां री ख्यात‘ में जोधपुर व बीकानेर के राठौड़ वंश का वर्णन है।
- अनूपसिंह द्वारा दक्षिण में रहते हुए अनेक मूर्तियाँ का संग्रह किया व नष्ट होने से बचाया। यह मूर्तियों का संग्रह बीकानेर के पास ‘तैंतीस करोड़ देवताओं के मंदिर‘ में सुरक्षित है।
महाराजा सूरजसिंह
- 16 अप्रेल, 1805 को मंगलवार के दिन भाटियों को हराकर इन्होंने भटनेर को बीकानेर राज्य में मिला लिया तथा भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रख दिया (क्योंकि इन्होंने हनुमानजी के वार मंगलवार को यह जीत हासिल की थी)।
अन्य तथ्य
- 1818 ई. में बीकानेर के राजा सूरजसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से सुरक्षा संधि कर ली और बीकानेर में शांति व्यवस्था कायम करने में लग गये।
- 1834 ई. में जैसलमेर व बीकानेर की सेनाओं की बीच बासणी की लड़ाई हुई।
- राजस्थान के दो राज्यों के बीच हुई यह अंतिम लड़ाई थी।
- 1848 ई. में बीकानेर नरेश रतनसिंह ने मुल्तान के दीवान मूलराज के बागी होने पर उसके दमन में अंग्रेजों की सहायता की।
- 1857 ई. की क्रान्ति के समय बीकानेर के महाराजा सरदार सिंह थे जो अंग्रेजों के पक्ष में क्रान्तिकारियों का दमन करने के लिए राजस्थान के बाहर पंजाब तक गये।
- बीकानेर के लालसिंह ऐसे व्यक्ति हुए जो स्वयं कभी राजा नहीं बने परन्तु जिसके दो पुत्र-डूंगरसिंह व गंगासिंह राजा बने।
- बीकानेर के राजा डूंगरसिंह के समय 1886 को राजस्थान में सर्वप्रथम बीकानेर रियासत में बिजली का शुभारम्भ हुआ।
- 1927 ई. में बीकानेर के महाराज गंगासिंह (आधुनिक भारत का भगीरथ) राजस्थान में गंगनहर लेकर आये जिसका उद्घाटन वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया।
- गंगासिंह अपनी विख्यात गंगा रिसाला सेना के साथ द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों के पक्ष में युद्ध लड़ने के लिये ब्रिटेन गये।
- बीकानेर रियासत के अंतिम राजा सार्दूलसिंह थे।
किशनगढ़ के राठौड़
- राजस्थान में राठौड़ वंश का तीसरा राज्य किशनगढ़ था, जिसकी स्थापना सन् 1609 में जोधपुर के शासक मोटा राजा उदयसिंह के पुत्र श्री किशन सिंह ने की थी। सम्राट जहाँगीर ने यहाँ के शासक ‘महाराजा’ का खिताब दिया। यहाँ महाराजा सांवत सिंह प्रसिद्ध राजा हुए, जो कृष्ण भक्ति में राजपाठ छोड़कर वृंदावन चले गए एवं ‘नागरीदास’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
कच्छवाह वंश
- ‘कच्छवाह‘ अपने आपको भगवान श्री राम के पुत्र ‘कुश‘ की संतान मानते हैं।
- संस्थापक – दुलहराय (तेजकरण), मूलतः ग्वालियर निवासी था।
- 1137 ई. में उसने बड़गुजरों को हराकर नवीन ढूँढाड़ राज्य की स्थापना की।
- दुलहराय के वंशज कोकिलदेव ने 1207 ई. में मीणाओं से आमेर जीतकर अपनी राजधानी बनाया, जो 1727 ई. तक कच्छवाह वंश की राजधानी रहा।
- इसी वंश के शेखा ने शेखावटी मे अपना अलग राज्य बनाया।
भारमल (1547-1574 ई.) या बिहारीमल
- 1547 ई. में भारमल आमेर का शासक बना।
- भारमल प्रथम राजस्थानी शासक था, जिसने अकबर की अधीनता स्वीकार की व 1562 ई. में अपनी पुत्री हरखाबाई उर्फ मानमति या शाही बाई (मरियम उज्जमानी) का विवाह अकबर से किया।
- मुगल बादशाह जहाँगीर हरखाबाई का ही पुत्र था।
भगवन्त दास (1574-1589 ई.)
- भगवन्त दास या भगवान दास भारमल का पुत्र था।
- उसने अपनी पुत्री मानबाई (मनभावनी) का विवाह शहजादे सलीम (जहाँगीर) से किया। मानबाई को ‘सुल्तान निस्सा‘ की उपाधि प्राप्त थी।
- खुसरो इसी का पुत्र था।
मानसिंह (1589-1614 ई.)
- मानसिंह भगवन्त दास का पुत्र था।
- मानसिंह आमेर के कच्छवाह शासकों में सर्वाधिक प्रतापी एवं महान् राजा था।
- मानसिंह ने 52 वर्ष तक मुगलों की सेवा की।
- मानसिंह 1573 में अकबर के दूत के रूप में राणा प्रताप से मिला था।
- 1576 ई. में हल्दीघाटी युद्ध में उसने शाही सेना का नेतृत्व किया था।
- अकबर ने उसे फर्जन्द (पुत्र) एवं राजा की उपाधि प्रदान की। वह अकबर के नवरत्नों में शामिल था।
- मानसिंह ने बंगाल में ‘अकबर नगर‘ तथा बिहार में ‘मानपुर नगर‘ को बसाया।
- मानसिंह स्वयं कवि, विद्वान, साहित्य प्रेमी व विद्वानों का आश्रयदाता था।
- शिलादेवी (आमेर), जगत शिरोमणी (आमेर) गोविन्द देवजी (वृंदावन) मंदिर उसी ने बनवाये थे।
जयसिंह प्रथम या मिर्जा राजा जयसिंह (1621-1667 ई.)
- इसने तीन मुगल बादशाहों जहाँगीर, शाहजहां व औरंगजेब को अपनी सेवाएँ दी।
- उसने औरंगजेब की तरफ से शिवाजी को सन्धि के लिए बाध्य किया। यह सन्धि इतिहास में पुरन्दर की सन्धि (जून 1665 ई.) के नाम से प्रसिद्ध है।
- उसकी योग्यता एवं सेवाओं से प्रसन्न होकर शाहजहाँ ने उसे ‘मिर्जा राजा‘ की उपाधि प्रदान की।
- बिहारी सतसई के रचयिता कवि बिहारी उसके दरबारी कवि थे।
- बिहारी का भांजा कुलपति मिश्र भी बड़ा विद्वान था, जिसने 52 ग्रन्थों की रचना की इनका दरबारी था।
- इनकी मृत्यु बुरहानपुर के पास हुई थी।