- आहड़ (उदयपुर शहर के पास) –आहड़नदी के तट पर (जो बनास की सहायक नदी है।)
- प्राचीन नाम – ताम्रवती नगरी/तांबावली।
- 10-11वीं सदी में नाम – आघाटपुर या आघाट दुर्ग।
- स्थानीय नाम – धूलकोट।
- लगभग 2000 ई. पू. से 1200 ई.पू. की ताम्रयुगीन सभ्यता।
- उत्खनन – सर्वप्रथम 1953 ई. – अक्षय कीर्ति व्यास।
- 1956 ई.-रतनचन्द्र अग्रवाल, 1961 ई.- एच.डी. सांकलिया द्वारा।
- यहाँ का प्रमुख उद्योग ताँबा गलाना एवं उसके उपकरण बनाना था, जिसका प्रमाण यहाँ प्राप्त हुए ताम्र कुल्हाड़े व अस्त्र तथा एक घर में तांबा गलाने की भट्टी है। यहाँ पास में ही ताँबे की खदानें थी।
- आहड़ की खुदाई में 6 तांबे की मुद्राएं और 3 मुहरें मिली हैं।
- मुद्रा पर एक ओर त्रिशुल तथा दूसरी ओर अपोलो है।
- यहाँ पर ताम्बे के बर्तन, कुल्हाड़ी तथा उपकरण भी मिले हैं।
- आहड़ में माप-तौल के बाट मिले हैं जिससे इनके व्यापार वाणिज्य के बारे में पता चलता है।
- आहड़ में मकान पक्की ईंटों के मिले हैं।
- आहड़ सभ्यता के लोग मृतकों के साथ आभुषण भी दफनाते थे।
- यह लाल व काले मृद्भाण्ड वाली संस्कृति का प्रमुख केन्द्र था। ये मृद्भाण्ड उल्टी तिपाई विधि से पकाए जाते थे।
- अनाज रखने के बड़े मृद्भाण्ड मिले हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में गोरे व कोट कहा जाता था।
- यहाँ से प्राप्त एक मुद्रा पर अपोलो खड़ा दिखाया गया है व इस पर यूनानी भाषा में लेख भी है।
- शरीर से मेल छुड़ाने का झावा भी मिला है।
- गिलुण्ड (राजसमंद) –आहड़ नदी के तट पर ताम्रयुगीन एवं बाद की सभ्यता के अवशेष मिले।
- बागोर (भीलवाड़ा) –कोठारी नदी के तट पर, उत्तर पाषाणकालीन सभ्यता के अवशेष, 3000 ई.पू. तक।
- उत्खनन – 1967-69 ई. – वी.एन.मिश्रा व डा.एल.एस. लैशनि द्वारा।
- यहाँ पर सभ्यता के तीन स्तरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- बालाथल (वल्लभनगर, उदयपुर) –
- ताम्र-पाषाणयुगीन सभ्यता, (3000 ई.पू..2500 ई.पू.)
- उत्खनन- 1993 ई.- वी.एस.शिंदे, वी.एन.मिश्रा, आर के मोहन्ते।
- हड़प्पा की तरह के मृदभाण्ड प्राप्त ।
- कपड़े के अवशेष मिले।
- यहाँ खुदाई में 11 कमरों के बड़े भवन की रचना प्राप्त हुई।
- बैल व कुत्ते की मृणमूर्तियाँ भी प्राप्त हुई।
- गणेश्वर (नीम का थाना, सीकर) –कांतली नदी का टीला।
- भारत की ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी।
- 99% उपकरण व औजार ताम्र निर्मित मिले।
- पूर्व हड़प्पा कालीन ताम्रयुगीन सभ्यता – 2800 ई.पू.
- यहाँ से मछली पकड़ने के कांटे, केशपीन व अंजन स्लाकाएँ प्राप्त हुई है।
- मकान पत्थर के बनाए जो थे।
- रंगमहल (हनुमानगढ़) – सरस्वती (घग्घर) नदी के पास।
- उत्खनन-1952-54 ई. में डाॅ. हन्नारिड के निर्देशन मे एक स्वीडिश दल द्वारा।
- यहाँ पर कुषाण शासकों के सिक्के व मिट्टी की मुहरें भी मिली। अतः इसे कुषाणकालीन सभ्यता के समान माना जाता है।
- यहाँ पर लाल रंग के पात्रों पर काले रंग के डिजाइन प्राप्त हुए हैं।
- बैराठ (जयपुर) –प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी।
- आधुनिक नाम बैराठ, जो पहले विराटनगर कहलाता था।
- यहाँ खुदाई का कार्य सर्वप्रथम दयाराम साहनी ने किया।
- यहाँ मौर्यकालीन एवं पूर्व की सभ्यताओं के अवशेष, मौर्य सम्राट अशोक के अभिलेख (भाब्रु शिलालेख) यहीं से प्राप्त, एक गोल बौद्ध मंदिर के अवशेष।
- भाब्रु शिलालेख में अशोक का धर्म अंकित है।
- भाब्रु शिलालेख एक मात्र लेख है, जो अशोक को बौद्ध धर्म का अनुयायी बताता है।
- कपड़े के अवशेष मिले।
- प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर (वर्तमान बैराठ) में बीजक की पहाड़ी भीमजी को डूंगरी तथा महादेवजी की डूंगरी आदि स्थानों पर उत्खनन कार्य प्रथम बार दयाराम साहनी द्वारा 1936-37 में तथा पुनः 1962-63 में नीलरत्न बनर्जी तथा कैलाशनाथ दीक्षित द्वारा किया गया।
- 1837 में आबु पहाड़ी से सम्राट अशोक के ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण दो प्रस्तर लेख भी प्राप्त हुए हैं।
- जिनसे अशोक की बुद्ध थम्म और संघ में अगाध निष्ठा लक्षित होती है।
- विराट नगर के मध्य में अकबर ने एक टकसाल खोली थी। इस टकसाल में अकबर, जहाँगीर तथा शाहजहाँ के काल में ताँबे के सिक्के ढाले जाते थे।
- ओझियाना (भीलवाड़ा) –यहाँ उत्खनन कार्य 1993 में प्रारम्भ हुआ।
- ताम्र पाषाणयुगीन संस्कृति के अवशेष मिले।
- नगरी (चित्तौड़गढ़) –प्राचीन मध्यमिका (शिवि की राजधानी), चित्तौड़ के पास, 1904 ई. में भण्डारकर द्वारा सर्वप्रथम खुदाई।
- यहाँ 1962 में केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के के.बी. सौन्दरराजन द्वारा कराई गई खुदाई में शिवि जनपद के सिक्के, गुप्तकालीन कला के अवशेष मिले।
- जोधपुरा (जयपुर) –शुंग व कुषाण कालीन सभ्यता के अवशेष। लगभग 2500 ई.पू. से 200 ई. तक।
- यहाँ पर अयस्क से लोहा प्राप्त करने की प्राचीनतम भट्टी मिली है।
- सुनारी (खेतड़ी, झुन्झुनुँ) –लोहा बनाने की प्राचीनतम भट्टियाँ प्राप्त हुई।
- तिलवाड़ा (बाड़मेर) – लूनी नदी के तट पर 500 ई.पू. से 200 ई. तक के अवशेष
- रेड/रेढ़ (टोंक) –निवाई तहसील स्थित रेड में पूर्व गुप्तकालीन सभ्यता के अवशेष, लोह सामग्री के विशाल भण्डार। इसे ‘प्राचीन भारत का टाटानगर’कहते हैं।
- यहाँ से एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार मिला है।
- नगर (टोंक) – उणियारा कस्बे में स्थित, प्राचीन नाम ‘मालव नगर’था। गुप्तकालीन अवशेष मिले।
- यहाँ छः हजार मालव सिक्के भी मिले हैं।
- भीनमाल (जालौर) –गुप्तकालीन अवशेष, चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा इस नगर की यात्रा। विद्वान ब्रह्मगुप्त, मण्डन, माघ, माहुक, धाइल्ल इसी नगर से सम्बन्धित।
- दर (भरतपुर) –इस स्थान पर पाषाणकालीन सभ्यता के अवशेष मिले है।
- सोंथी (बीकानेर) – कालीबंगा प्रथम के नाम से विख्यात, अमलानंद घोष के नेतृत्व में 1953 में इस सभ्यता की खुदाई की गई।
- ईसवाल (उदयपुर) –इस स्थान पर खुदाई के दौरान लौहकालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं (वर्ष 2003)।
- डडीकर (अलवर) –पाँच से सात हजार वर्ष पुराने शैल चित्र मिले हैं (वर्ष 2003)।
- गरड़दा (बूँदी) –छाजा नदी के किनारे स्थित इस स्थान पर पहली बर्ड राइडर राॅक पेन्टिंग (शैल चित्र) मिली है।
- यह देश में प्रथम पुरातत्व महत्त्व की पेन्टिंग है (वर्ष 2003)।
- कोटड़ा (झालावाड़) –इस स्थान पर स्थित दीपक शोध संस्थान द्वारा सातवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य के पुरा अवशेषों की खोज की गयी है (वर्ष 2003)।
- नलियासर (सांभर, जयपुर) –सांभर झील के निकट इस स्थान पर खुदाई से चैहान युग से पूर्व की सभ्यता का ज्ञान प्राप्त हुआ है।
- तिपटिया (कोटा) – यह स्थल दर्रा वन्य जीव अभ्यारण्य में स्थित है। जहाँ से प्रागैतिहासिक काल के शैल चित्र मिले हैं।
- डाडाथोरा (बीकानेर) –शिव बाड़ी के निकट स्थित इस गाँव से पाषाणकालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- कुण्डा व ओला (जैसलमेर) –जैसलमेर के इन गांवों में पुरानी सभ्यता व मध्यपाषाण युगीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- मल्लाह (भरतपुर) –यह स्थल भरतपुर जिले के ‘घना पक्षी अभ्यारण्य‘ क्षेत्र के मध्य स्थित है। यहां से अत्यधिक मात्रा में ‘ताम्र हारपून‘ तथा ‘तलवारें‘ प्राप्त हुई हैं। यह ताम्रयुगीन सभ्यता स्थल है।
- नैंनवा (बूँदी) –बूँदी जिले के इस नगर में श्री कृष्ण देव ने खुदाई करायी। यहाँ से लगभग 2000 वर्ष प्राचीन महिषासुर-मर्दिनी की मृण मूर्ति प्राप्त हुई है।
- कणसव (कोटा) –यहाँ से मौर्य शासक धवल का 738 ई. से सम्बन्धित लेख मिला है।