प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion)
- प्रकाश का प्रिज्म से गुजरने पर सातों रंगों में विभक्त होने की घटना वर्ण-विक्षेपण कहलाता है।
- सातों रंग की रूप रेखा – वर्णक्रम (Spectrum) कहलाता है। ‘VIBGYOR’
- इस घटना में लाल रंग का विचलन न्यूनतम तथा बैंगनी रंग विचलन सर्वाधिक होता है क्योंकि रंगों का तरंगदैर्घ्य न्यूनतम अर्थात् आवृत्ति ज्यादा होती है अतः कणों से ज्यादा टकराहट होने से वेग में कमी अधिक होती है अतः सर्वाधिक विचलित होता है।
- द्वितीयक इन्द्रधनुष -प्राथमिक की अपेक्षा धुंधला दिखाई देता है।
- सबसे बाहरी रंग = बैंगनी (54º5′), सबसे भीतरी रंग = लाल (50º.8′)।
- प्राथमिक इन्द्रधनुष –
- सबसे बाहरी – लाल (42º.8′), सबसे भीतरी – बैंगनी (40º.8′)।
- प्राथमिक इन्द्र धनुष में – दो बार अपवर्तन एवं एक बार परावर्तन होता है।
- द्वितीयक इन्द्र धनुष में – दो बार अपवर्तन एवं दो बार परावर्तन होता है।
लेंस (Lens)
लेन्स मुख्यतः कांच के बने होते हैं। ये प्रकाश किरणों को मोड़ देते हैं। अतः ये ‘अपवर्तन के सिद्धान्त‘ पर कार्य करते हैं। लेन्स मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
लेंस के प्रकार –
- उत्तल लेंस/अभिसारी लेंस (Convex/Convercent lens) –इनकी फोकस दूरी धनात्मक होती है। ये बीच से मोटे एवं किनारों पर पत्तले होते हैं।
उपयोग :
(i) दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia) के निवारण हेतु, (ii) साधारण, संयुक्त एवं खगोलीय दूरदर्शी (Telescope) सूक्ष्मदर्शी में, (iii) मानव नेत्र में, छोटी वस्तुओं को बड़ा देखने में, (iv) घड़ी पुर्जे, विज्ञान के छात्रों द्वारा Specimen देखने में। (v) हवा में जल का बुलबुला भी इस लेंस की भांति व्यवहार करता है।
- अवतल लेंस/अपसारी लेंस (Concave/Divergent Lens)-इनकी फोकस दूरी ऋणात्मक होती है। ये बीच में पतले तथा किनारों से मोटे होते हैं।
उपयोग : (i) निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) में। (ii) हवा का बुलबुला जल में अवतल लेंस की भांति कार्य करता है।
लैंस की क्षमता या शक्ति – फोक्स दूरी के व्युत्क्रम को लैंस की क्षमता कहते हैं। इसका मात्रक डायोप्टर होता है। उत्तल लैंस की क्षमता धनात्मक व अवतल लैंस की क्षमता ऋणात्मक होती है।
दृष्टि दोष तथा उसका निवारण
निकट दृष्टि दोष (Myopia) – इसमें लेंस की वक्रता त्रिज्या घट जाती है अर्थात/ लेंस की अवत्तलता बढ़ जाती है जिससे निकट की वस्तु तो साफ परन्तु दूर की अस्पष्ट दिखाई देती है। दूर की वस्तु अस्पष्ट दिखाई देने का कारण दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब का रेटिना से आगे बनना है अर्थात/ रेटिना से पूर्व ही प्रतिबिम्ब बन जाता है।
निवारण – अपसारी लेंस द्वारा (– ve No. के लेंस)।
दूर दृष्टि दोष (हाइपरमेट्रोपिया) – (i) लेंस की वक्रता त्रिज्या बढ़ जाना। (ii) अवतलता का घटना। (iii) दूर की वस्तु साफ तथा पास की वस्तु अस्पष्ट दिखाई देती है क्योंकि पास रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना के पीछे बनता है।
निवारण – अभिसारी लेंस (+ ve lens) का प्रयोग।
जरा दृष्टि दोष (प्रेस बायोपिया) – इसमें रोगी को न पास की और न ही दूर की वस्तु साफ दिखाई देती है। यह सामान्यतः वृद्ध व्यक्तियों को होता है।
निवारण – द्विफोकसी (Bifocal lens) का प्रयोग किया जाता है।
अबिन्दुकता/दृष्टि वैषम्य (Astigmatism) – इसमें कार्निया की सतह की अनियमितता के कारण वस्तु की आकृति साफ नहीं दिखाई देती है।
निवारण – बेलनाकार (सिलिन्ड्रीकल) लेंस का प्रयोग।