राजस्थान सामान्य ज्ञान : दुर्ग, महल, बावड़ियाँ, देवल एवं छतरियाँ

 

 

  1. तारागढ़ (अजमेर)
  • अरावली पर्वतमाला के एक ऊँचे शिखर पर अवस्थित अजमेर का तारागढ़ पूर्वी राजस्थान के प्राचीन एवं प्रमुख किलों में गिना जाता है।
  • शिलालेखों एवं इतिहास ग्रन्थों में इसे तारागढ़, अजयमेरु तथा गढ़ बीठली आदि नामों से जाना जाता है।
  • यह राजस्थान का प्राचीन गिरि दुर्ग है।
  • प्राचीन दुर्गों में तारागढ़ अपनी प्राचीरों और सुदृढ़ बुर्जो के लिए प्रसिद्ध था। इसकी रचना से प्रभावित होकर बिशप हैबर ने इसे पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर कहा था।
  • इस दुर्ग का निर्माण सातवीं शताब्दी में शाकंभरी के चौहान नरेशों ने अरब खलीफाओं के आक्रमणों से बचने के लिए कराया था।
  • कर्नल टॉड ने इस दुर्ग को चौहान राजा अजयपाल द्वारा निर्मित माना है।
  • अजमेर के संस्थापक राजा अजयपाल ने इस दुर्ग को निर्मित कराया, उनके नाम पर अजयमेरु या अजयगढ़ पड़ा।
  • मुगल बादशाह शाहजहाँ के सेनाध्यक्ष विट्ठलदास ने इस दुर्ग का पुनर्निर्माण कराया, इसलिए इस दुर्ग को गढ़ बीठली कहा जाने लगा, परन्तु अब ये तारागढ़ के नाम से जाना जाता है।
  • शाहजहां का बड़ा शहजादा दारा शिकोह इसी दुर्ग में जन्मा था।
  • इस दुर्ग में हजरत मीरा सैयद हुसैन खिगसवार और ख्वाजा वज्हीउद्दीन मशहवी की दरगाह उल्लेखनीय है।
  • इस दुर्ग का मुख्य दरवाजा विजयपोल है तथा अन्य दरवाजे लक्ष्मीपोल, फूटा दरवाजा, बड़ा दरवाजा, भवानीपोल, हाथी व अरकोट आदि है।
  • दुर्ग के तारागढ़ नामकरण के बारे में डा. गोपीनाथ शर्मा की मान्यता है कि मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज (राणा सांगा के भाई) पृथ्वीराज ने इस दुर्ग के कुछ भाग बनवाये और अपनी वीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इसका तारागढ़ नाम रखा।
  • इस दुर्ग का नाम ‘गढ़ बीठली’ पड़ा यह किसी पराक्रमी योद्धा के नाम के आधार पर ही पड़ा। प्रसिद्ध दोहा –

बाँको है गढ़ बीठली, बाँको भड़ बीसल्ल।

खाग खेंचतो खेत मझ, दलभलतो अरिदल्ल।।

  • तराइन के द्वितीय युद्ध (1192 ई.) में पराक्रमी पृथ्वीराज चौहान तृतीय की पराजय के बाद तारागढ़ पर मुहम्मद गौरी ने अधिकार कर लिया।
  • मारवाड़ के राजा मालदेव का भी इस दुर्ग पर अधिकार रहा था उन्होंने इस दुर्ग का जीर्णोद्वार करवाया था। इनकी रूठी रानी (उमा दे) यही रहती थी। वह महल ‘रूठी रानी का महल कहलाता हैं।‘
  • तारागढ़ की प्राचीर में 14 विशाल बुर्जे है जिनमें प्रमुख घूंघट गूगड़ी तथा फूटी बुर्ज, नक्कारची की बुर्ज, शृंगार-चंवरी बुर्ज, आरपार का अत्ता, जानू नायक की बुर्ज, पीपली बुर्ज, इब्राहीम शहीद की बुर्ज, दोराई बुर्ज, बांदरा बुर्ज, इमली बुर्ज, खिड़की बुर्ज और फतेह बुर्ज आदि है।
  • तारागढ़ के भीतर ऊँचाई पर प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीरा साहेब की दरगाह है। तथा किले के भीतर पाँच बड़े जलाशय है, जिनमें नाना साहब का झालरा, गोल झालरा, इब्राहीम का झालरा और बड़ा झालरा उल्लेखनीय है।
  • तारागढ़ अतीत की एक अनमोल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है, जिसके बारे में एक दोहा प्रसिद्ध है –

गौड़ पंवार सिसोदिया, चहुवाणां चितचोर।

तारागढ़ अजमेर रो, गरवीजै गढ़ जोर।।

  1. जयगढ़ दुर्ग
  • ढूंढाड़ के कच्छवाहा राजवंश की पूर्व राजधानी आम्बेर के भव्य राजप्रासाद के दक्षिणवर्ती पर्वतशिखर पर एक विशाल दुर्ग स्थित है जिसका नाम है जयगढ़।
  • इस दुर्ग की सर्वोपरि विशिष्टता यह है कि यह दुर्ग सदियों तक एक विचित्र रहस्यात्मकता से मण्डित रहा। इसमें स्वतंत्रता प्राप्ति तक सिवाय स्वयं महाराजा तथा उनके द्वारा नियुक्त दो किलेदारों के जो महाराजा के परम विश्वस्त सामन्तों में से हुआ करते थे, के अलावा कोई नहीं जा सकता था।
  • दुर्ग में जनसाधारण का प्रवेश निषिद्ध होने के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि यहाँ कच्छवाहा राजाओं का दफीना रखा हुआ था जिसके सुरक्षा प्रहरी मीणे होते है।
  • यह दुर्ग विशिष्ट राजनैतिक बंदियों के लिए कारागृह के काम में लिया जाता था जिसे लेकर प्रसिद्ध था कि जो व्यक्ति एक बार जयगढ़ दुर्ग में कैद कर डाल दिया जाता था, वह जीवित नहीं निकलता था।
  • श्रीमती इन्दिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में इस दुर्ग के गुप्त खजाने की खोज में इस किले के भीतर व्यापक खुदाई की घटना ने जयगढ़ को देश-विदेश में चर्चित कर दिया।
  • यह भारत का एकमात्र दुर्ग है जहाँ तोप ढालने का संयत्र लगा हुआ है जो आज भी देखा जा सकता है। सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित ‘जयबाण’ नामक तोप इसी संयत्र से ढली हुई है, जो विश्व की सबसे बड़ी तोप के रूप में प्रसिद्ध है।
  • कुछ इतिहासकारों की धारणा है कि इस रहस्यमय दुर्ग का निर्माण आम्बेर के यशस्वी शासक प्रख्यात सेनानायक महाराजा मानसिंह प्रथम ने करवाया था।
  • सन् 1726 ई. में सवाई जयसिंह ने इस दुर्ग को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया।
  • यह दुर्ग ‘चिल्ह का टोला’ उपनाम से भी प्रसिद्ध हे।
  • यह एक उत्कृष्ट गिरि दुर्ग है जो अपने अद्भुत शिल्प और अनूठे स्थापत्य के कारण प्रसिद्ध है।
  • जयगढ़ दुर्ग का विस्तार 4 किमी. की परिधि में है। इसके तीन प्रमुख प्रवेश द्वार है- डूंगर दरवाजा, अवनि दरवाजा, भैरू दरवाजा।
  • जयगढ़ के प्रमुख भवनों में जलेब चौक, सुभट निवास (दीवान ए आम), खिलबत निवास (दीवान ए खास), लक्ष्मी निवास ललित मंदिर, विलास मंदिर, सूर्य मंदिर, आराम मंदिर व राणावत जी का चौक है जो हिन्दू स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • इस दुर्ग में राम, हरिहर और काल भैरव के प्राचीन मंदिर भी बने है।
  • सशस्त्र किलेबंदी से युक्त इस गढ़ी में महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने प्रतिद्धन्दी छोटे भाई विजयसिंह को कैंद रखा था। वर्षों तक यहाँ कैद रहे विजयसिंह के नाम पर यह लघु गढ़ी विजयगढ़ी कहलाती है।
  • इस दुर्ग में रखी ‘जयबाण’ तोप की नाल 20 फीट लम्बी है तथा इस तोप का वजन लगभग 50 टन है। जयबाण से 50 किलोग्राम के 11 इंच व्यास के गोले दागे जा सकते है। इसको चलाने के लिए एक बार में 100 किलो बारूद भरा जाता था। इसकी मारक क्षमता लगभग 22 मील है। यह एक बार केवल परीक्षण के समय चलाई गई थी तब उसका गोला ‘चाकसू’ में जाकर गिरा था।
  • राजस्थान राज्य प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में सुरक्षित पोथीखाने के अनुसार जयगढ़ के निर्माता मिर्जा राजा जयसिंह (1627-1663) और सवाई जयसिंह (1699-1743) थे।
  • जयगढ़ को संकटमोचक दुर्ग के नाम से पुकारा जाता है।
  • सन् 1983 ई. में यह किला एक पर्यटक स्थल बन गया है, जहाँ सारे संसार के सैलानी घूमने आते है।

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