- शेरगढ़ (कोशवर्द्धन), बारां
- हाड़ौती अंचल में स्थित शेरगढ़ एक प्राचीन एवं प्रसिद्ध दुर्ग है। यह परवन नदी के किनारे स्थित है।
- शेरशाह सूरी ने अपने मालवा अभियान के समय इस दुर्ग पर अधिकार कर इसे शेरगढ़ नाम दिया। इससे पहले इस दुर्ग का नाम कोशवर्द्धन था जो एतद्नामधारी पर्वत शिखर के नाम पर रखा गया प्रतीत होता है।
- शेरशाह सूरी, हुमायूँ को परास्त कर बादशाह बना तो उसने 1542 ई. में अपने मालवा अभियान के समय कोशवर्द्धन पर अधिकार कर लिया था।
- जालिमसिंह झाला ने इस दुर्ग में एक आवासीय महल बनाया जो ‘झालाओं की हवेली‘ नाम से प्रसिद्ध है।
- इसी दुर्ग में अमीरखा पिण्डारी ने आश्रय लिया था।
- यहां के प्राचीन मंदिरों में सोमनाथ महादेव, लक्ष्मीनारायण मंदिर, चार भुजा मंदिर, अन्य भवनों में प्राचीन बावड़ी, भव्य राजप्रासाद, झालाओं की हवेली, अमीरखां के महल आदि।
- अलवर दुर्ग (बाला किला)
- पूर्वी राजस्थान के पर्वतीय दुर्ग़ों में अलवर का बाला किला प्रमुख है। इसके निर्माताओं के बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है।
- जनश्रुति के अनुसार विक्रम संवत् 1106 में आम्बेर नरेश कोकिल देव के कनिष्ठ पुत्र अलघुराय ने इस पर्वत शिखर पर एक छोटा दुर्ग बनवाकर उसके नीचे एक नगर बसाया जिसका नाम अलपुर रखा।
- इतिहासकार जनरल कनिंघम के अनुसार साल्व जाति का यहां वास होने के कारण पहले इसका नाम साल्वपुर था जो कालान्तर में बिगड़ कर अलवर हो गया।
- सन् 1527 में खानवा विजय के बाद बाबर ने अलवर दुर्ग पर अधिकार कर लिया। उसने यह दुर्ग अलवर का निकटवर्ती प्रदेश (मेवात का परगना) अपने पुत्र हिन्दाल को जागीर में दे दिया। बाबर स्वयं भी इस किले में कुछ दिनों तक रहा, यहीं रहते हुए उसने मेवात का खजाना हुमायूँ को सौंपा था।
- शेरशाह ने हुमायूँ को पराजित करने के बाद अलवर दुर्ग पर अधिकार कर लिया था।
- बादशाह औरंगजेब ने इस किले को आम्बेर के मिर्जा राजा जयसिंह को प्रदान कर दिया था।
- औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् भरतपुर के यशस्वी शासक राजा सूरजमल ने अलवर दुर्ग पर अधिकार कर लिया था।
- राजा सूरजमल ने अलवर दुर्ग पर अधिकार कर लिया था।
- राजा सूरजमल ने इस दुर्ग में एक कुण्ड बनवाया जो उनके नाम पर सूरज कुण्ड‘ कहलाता है।
- सन् 1775 ई. में अलवर के पृथक् राज्य के संस्थापक माचेड़ी के राव प्रतापसिंह ने भरतपुर की सेना को खदेड़कर इस दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया तब से लेकर भारत की स्वाधीनता तक अलवर दुर्ग पर कच्छवाहों की नरूका शाखा का अधिकार रहा।
- इसमें प्रवेश हेतु मुख्य पांच दरवाजे हैं- चाँदपोल, सूरजपोल, लक्ष्मणपोल, जयपोल तथा अन्धेरी दरवाजा।
- इस दुर्ग के भीतर प्रमुख जल स्रोत हैं- सलीमसागर तालाब, सूरजकुण्ड।
- 1832 ई. में अलवर राज्य के संस्थापक महाराजा प्रतापसिंह द्वारा निर्मित सीतारामजी का मंदिर भी विद्यमान है।
- दौसा का किला
- जिस विशाल पहाड़ी के पर्वतांचल में दौसा नगर बसा हुआ है, वह देवगिरि की पहाड़ियां कहलाती है। इसी पर्वत शिखर पर दौसा का प्राचीन और सुदृढ़ दुर्ग अवस्थित है।
- दौसा को ढूंढाड़ के कच्छवाहा राजवंश की प्रथम राजधानी होने का गौरव तब प्राप्त हुआ जब 11वीं शताब्दी के लगभग कच्छवाहा राज्य के संस्थापक दुलहराय नरवर (मध्यप्रदेश) से इधर आए।
- दुलहराय ने देवती तथा भाँडारेज के बड़गूजरों को तथा मांच, खोह, गेटोर आदि स्थानों के मीणा शासकों को जीतकर ढूंढाड़ में कच्छवाहा राज्य की स्थापना की।
- जनवरी, 1562 ई. में जब बादशाह अकबर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की जियारत करने अजमेर गया तब इस दुर्ग में ठहरा था। यहां पर अकबर की भेंट भारमल के भाई रूपसी से हुई थी।
- महान दादूपंथी महात्मा संत सुन्दरदास का जन्म भी दौसा में ही हुआ था।
- 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम के समय प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे दौसा आये थे। यहां पर ब्रिग्रेडियर राबर्ट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना से वे 14 जनवरी, 1859 को परास्त हो गये तथा उसके 11 हाथी अंग्रेजों ने छीन लिये।
- अनियमित आकार का यह दुर्ग प्राचीन और जीर्णशीर्ण प्राचीर से ढका है तथा सूप (छाजले) की आकृति लिए हुए हैं। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण समझे जाने वाले दौसा के इस किले को संभवतः बड़गूजरों ने बनवाया था।
- इस दुर्ग में प्रवेश हेतु दो मुख्य दरवाजे हैं- हाथी पोल 2. मोरी दरवाजा, इसमें मोरी दरवाजा बहुत छोटा और संकरा है। यहां स्थित जलाशय ‘सागर‘ के नाम से प्रसिद्ध है।
- किले के परकोटे के भीतर दो प्राचीन विशाल कुएं हैं जिनमें से मोरी दरवाजे के निकट वाला कुआं ‘राजाजी का कुआं‘ कहलाता है।
- इस दुर्ग में बावड़ी के निकट बैजनाथ महादेव का भव्य एवं प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर प्रांगण में गणेशजी की एक प्राचीन प्रतिमा प्रतिष्ठापित है।
- किले के सबसे ऊंची पहाड़ी की चोटी पर एक गढ़ी के भीतर नीलकंठ महादेव का मंदिर अवस्थित है।
- नाहरगढ़ (जयपुर)
- आम्बेर और जयपुर के मध्य उत्तर से दक्षिण की ओर विस्तृत अरावली पर्वतमाला के एक छोर पर जयगढ़ व दूसरे पर नाहरगढ़ (सुदर्शनगढ़) दुर्ग अवस्थित है।
- जयपुर के यशस्वी संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित यह भव्य और सुदृढ़ दुर्ग जयपुर के मुकुट के समान है। तथा शहर की ओर झांकता हुआ सा प्रतीत होता है।
- इस दुर्ग का पूर्व नाम सुदरर्शनगढ़ है जिसका परिचायक सुदर्शन कृष्ण का मंदिर किले के भीतर विद्यमान है।
- यह दुर्ग ‘नाहरगढ़‘ नाम से भी अधिक प्रसिद्ध है, जो संभवतः नाहरसिंह भोमिया के नाम पर पड़ा है जिनका स्थान किले की प्राचीर में प्रवेश द्वार के निकट बना हुआ है।
- एक मान्यता यह भी है कि महाराजा सवाई जयसिंह ने 1734 ई. में इस किले का निर्माण (मराठों के विरूद्ध) अपनी राजधानी की सुरक्षा की दृष्टि से करवाया था।
- दुर्ग तक जाने के लिए जयपुर शहर से एक पक्का घुमावदार मार्ग बना है जो नाहरगढ़ का रास्ता कहलाता है।
- नाहरगढ़ अपने शिल्प और सौन्दर्य से परिपूर्ण भव्यमहलों के लिए प्रसिद्ध है। चतुष्कोणीय चौक, झुके हुए अलंकृत छज्जे तथा उनमें सजीव चित्रांकन इन राजमहलों की प्रमुख विशेषता है।
- नाहरगढ़ के अधिकांश भव्य राजप्रसादों का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह (द्वितीय) तथा उसके बाद सवाई माधोसिंह ने अपनी नौ पासवानों (प्रेयसियों) के नाम पर यहां नौ इकमंजिले और दुमंजिले महलों का निर्माण करवाया जिनके नाम सूरज प्रकाश, खुशमहल प्रकाश, जवाहर प्रकाश, ललित प्रकाश, आनन्द प्रकाश, लक्ष्मी प्रकाश, चाँद प्रकाश, फूल प्रकाश और बसन्त प्रकाश है, जो कदाचित् इन्हीं पासवानों के नाम पर है।
- ये नौ महल आपस में एक छोटी सूरंग के कारण आपस में जुड़े हुए हैं। इस सूरंग के कारण राजा किस समय कौन से महल में है इसका किसी को पता नहीं चलता था।
- इसी दुर्ग में जयपुर के विलासी महाराजा जगतसिंह की प्रेयसी रसकपूर भी कुछ अरसे तक कैद रही थी।
- भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़)
- यह दुर्ग अरावली पर्वतमाला की एक विशाल घाटी या पर्वतीय खोह के मध्य पर्वत शिखर के अन्तिम छोर पर भैंसरोड़गढ़ में स्थित है।
- यह दुर्ग चम्बल एवं बामनी नदियों के संगम स्थल पर बना हुआ है। इस कारण यह जल दुर्ग की श्रेणी में गिना जाता है।
- इस दुर्ग के निर्माण के बारे में जनश्रुति है कि यह विक्रम की द्वितीय शती में बना। इतिहासकार कर्नल टॉड ने इस संबंध में जनश्रुति के आधार पर लिखा है कि इस दुर्ग का निर्माण भैंसाशाह नामक व्यापारी ने तथा रोड़ा चारण ने पर्वतीय लुटेरों से अपने व्यापारिक काफिले की रक्षार्थ करवाया था ताकि वर्षाकाल में जब उनकी ‘बालद‘ यहां पड़ाव ले तो यह दुर्ग उनका आश्रयस्थल बन सके।
- कर्नल टॉड के अनुसार भैंसरोड़गढ़ पर अलाउद्दीन खिलजी ने भी जोरदार आक्रमण किया तथा इस दुर्ग को तहस-नहस कर दिया था।
- भैंसरोड़गढ़ का किला अपने ढंग का एक निराला दुर्ग है जिसे राजस्थान का वेल्लोर कहा जाता है।
- मांडलगढ़
- मेवाड़ के प्रमुख गिरि दुर्ग़ों में से एक जो अरावली पर्वतमाला की एक विशाल उपत्यका पर स्थित है।
- यह दुर्ग बनास, बेड़च और मेनाल नदियों के त्रिवेणी संगम के समीप स्थित होने से कौटिल्य द्वारा निर्देशित आदर्श दुर्ग की परिभाषा को चरितार्थ करता है जिसके अनुसार दुर्ग नदियों के संगम के बीच अवस्थित होने चाहिए।
- कटोरेनुमा अथवा मंडलाकृति का होने के कारण ही सम्भवतः इनका नाम मांडलगढ़ पड़ा। जैसे-
भग्नो विधुत मंडलाकृति गढ़ो जित्वा समस्तानरीन।
- मांडलगढ़ की सुरक्षा व्यवस्था का कमजोर बिन्दु किले के उत्तर में लगभग आधा मील पर स्थित वह पहाड़ है जो नकट्या चौड़ अथवा बीजासण का पहाड़ कहलाता है। दुर्ग पर तोपों के गोले बरसाने हेतु आक्रान्ता के लिए यह वरदान स्वरूप था।
- मांडलगढ़ दुर्ग कब बना और इसका निर्माता कौन था इसके बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है।
- प्रसिद्ध ग्रंथ वीर विनोद में इस किले के बारे में जनश्रुति “मांडिया नामक भील को बकरियाँ चराते वक्त एक पत्थर (पारस) मिला जिस पर उसने अपना तीर घिसा और वह तीर सुवर्ण हो गया। यह देखकर उस पारस को चानणा नामक गूजर के पास ले गया जो वहां अपने मवेशी चरा रहा था। गूजर समझदार था, उसने भील से वह पत्थर ले लिया और यह किला बनवाकर उसी मांडिया भील के नाम पर इसका नाम मांडलगढ़ रखा और बहुत कुछ फय्याजी (उदारता) करके अपना नाम मशहूर किया। उसने वहां सागर और सागरी पानी के दो निवाण (तालाब) भी बनवाये।“
- मुगल बादशाह अकबर ने 1567 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण करने से पहले अपने सेनानायकों आसफखां और वजीरखां के नेतृत्व में एक विशाल सेना मांडलगढ़ पर भेजी जिसने वहां के दुर्गाधिपति बालनोत सोलंकी सरदार को परास्त कर किले पर अधिकार कर लिया।
- 1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध से पहले लगभग एक माह तक कुंवर मानसिंह इस दुर्ग में रहे।