राजस्थान सामान्य ज्ञान : दुर्ग, महल, बावड़ियाँ, देवल एवं छतरियाँ

 

 

  1. भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़)
  • भाटियों की वीरता और पराक्रम का साक्षी भटनेर का दुर्ग हनुमानगढ़ जिले में अवस्थित है।
  • घग्घर नदी के मुहाने पर बसे इस प्राचीन दुर्ग को उत्तरी सीमा का प्रहरी कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
  • मध्य एशिया, सिन्ध व काबुल के व्यापारी मुल्तान से भटनेर होते हुए दिल्ली व आगरा आते-जाते थे।
  • दिल्ली-मुल्तान मार्ग पर स्थित होने के कारण भटनेर का बड़ा सामरिक महत्व था।
  • मरुस्थल से घिरा होने के कारण भटनेर के किले को शास्त्रों में वर्णित धान्वनदुर्ग की कोटि में रख सकते हैं।
  • इस प्राचीन किले का निर्माण भाटी राजा भूपत ने करवाया था, जो गजनी के सुल्तान से हारकर जंगलों में भाग गये थे।
  • महमूद गजनवी ने विक्रम संवत् 1058 (1001 ई.) में भटनेर पर अधिकार कर लिया था।
  • बलबन के चचरे भाई शेरखां ने इस दुर्ग की मरम्मत करवाई थी जिसकी मृत्यु भी यहां हुई। उसकी कब्र आज भी किले के भीतर विद्यमान है।
  • बीकानेर के चौथे राजा जैतसिंह ने 1527 ई. में भटनेर पर आक्रमण कर वहां के अधिपति नादा चायल को पराजित कर भटनेर पर पहली बार राठौड़ों का आधिपत्य स्थापित हुआ। उसने राव कांधल के पुत्र खेतसी को वहां का दुर्गाध्यक्ष नियुक्त किया।
  • दयालदास री ख्यात में भटनेर के किले से सम्बंधित एक घटना का उल्लेख है। 1597 ई. में एक बार अकबर का ससुर नसीर खाँ भटनेर में आकर ठहरा। उसने वहां किसी महिला सेविका के साथ छेड़छाड़ की तो रायसिंह के इशारे पर उसके सेवक तेजा ने नसीर खाँ की पिटाई कर दी। नसीर खाँ ने इसकी शिकायत अकबर से की। तब अकबर ने नाराज होकर रायसिंह को भला-बुरा कहा।
  • बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह के शासनकाल में 1805 ई. में पांच महीने के घेरे के बाद राठौड़ों ने जाब्ता खाँ भट्टी से भटनेर ले लिया और इस प्राचीन दुर्ग पर बीकानेर का अधिकार हो गया। महाराजा सूरतसिंह द्वारा मंगलवार के दिन दुर्ग हस्तगत किये जाने के कारण भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रख दिया गया तथा इस उपलक्ष्य में किले में हनुमान जी के मंदिर का भी निर्माण करवाया गया।
  • इस किले के प्रवेश द्वार पर एक राजा के साथ छः स्त्री आकृतियाँ बनी हैं। यह राजा दलपतसिंह एवं उनकी रानियों की है।
  • ठाकुरसी के पुत्र बाघा ने भटनेर में गोरखनाथ मंदिर का निर्माण कराया।
  1. जालौर दुर्ग
  • जालौर का किला पश्चिमी राजस्थान के सबसे प्राचीन और सुदृढ़ दुर्ग़ों में से गिना जाता है। जो सूकड़ी नदी के दाहिने किनारे स्थित है।
  • प्राचीन साहित्य शिलालेखों में इस दुर्ग को जाबालिपुर, जालहुर आदि नामों से अभिहित किया गया है।
  • जिस विशाल पर्वत शिखर पर यह किला बना है उसे सोन गिरी (स्वर्णगिरी) व कनकाचल तथा किले को सोनगढ़ या सोनलगढ़ कहा गया है। यहीं से प्रादुर्भूत होने के कारण ही चौहानों की एक शाखा ‘सोनगरा‘ उपनाम से प्रसिद्ध हुई।
  • प्रतिहार नरेश वत्सराज के शासनकाल में 778 ई. में जैन आचार्य उद्योतन सूरी ने जालौर में अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ कुवलयमाला की रचना की।
  • नाड़ौल के चौहानवंशीय युवराज कीर्तिपाल ने जालौर पर अधिकार कर परमारों का वर्चस्व सदा के लिए समाप्त कर दिया। इस प्रकार कीर्तिपाल चौहानों की जालौर शाखा का संस्थापक था।
  • सूंधा पर्वत अभिलेख (वि.सं. 1319) में कीर्तिपाल के लिए ‘राजेश्वर‘ शब्द का प्रयोग हुआ है।
  • जालौर के किले की दुर्जेय स्थिति को देखकर ‘ताज उल मासिर‘ के लेखक हसन निजामी उस पर मुग्ध हो गया। उसने लिखा है- ‘जालौर बहुत ही शक्तिशाली और अजेय दुर्ग है, जिसके द्वार कभी भी किसी विजेता के द्वारा नहीं खोले गये चाहे वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो।‘
  • समरसिंह का उत्तराधिकारी उदयसिंह जालौर की सोनगरा चौहान शाखा का सबसे प्रतापी और यशस्वी शासक हुआ।
  • दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1307-08 में जालौर पर आक्रमण कर दिया उस समय यहां के राजा कान्हड़देव सोनगरा थे जिन्होंने आक्रमण कासामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध में इनका पुत्र वीरमदेव सोनगरा भी लड़ता हुआ मारा गया जिसका वर्णन कवि पद्मनाभ ने अपनी कृति ‘कान्हड़दे प्रबन्ध‘ तथा ‘वीरमदेव सोनगरा री बात‘ में किया है।
  • अलाउद्दीन ने जालौर को जीतकर उसका नाम ‘जलालाबाद‘ रखा।
  • जोधपुर के महाराजा मानसिंह और उनके भाई भीमसिंह के मध्य उत्तराधिकार का संघर्ष चला तब अपने संकटकाल में महाराजा मानसिंह इसी दुर्ग में ठहरे थे। जब भीमसिंह ने उन्हें वापस जोधपुर बुलाया तब उन्होंने वीरोचित उत्तर दिया-

आभ फटै, घर ऊलटै, कटै बगतराँ कोर।

सीस पड़ै, धड़ तड़फड़े, जद छूटै जालौर।।

  • इस दुर्ग में प्रवेश हेतु प्रथम द्वार सूरजपोल है। इस दुर्ग में प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में महाराजा मानसिंह का महल, रानी महल, चामुण्डा माता और जोगमाया के मंदिर, दहियों की पोल, संत मल्लिकशाह की दरगाह प्रमुख और उल्लेखनीय हैं
  • जालौर के किले का तोपखाना बहुत सुन्दर है जो पहले परमार राजा भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page