वैशाख माह के त्यौहार
– आखा तीज / अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ला तृतीया) :- इस तिथि को सतुआतीज, परशुराम जयंती एवं देव-पितृतारिणी पर्व भी मनाया जाता है। आर्यसमाजी अक्षय तृतीया को दीक्षा पर्व, ज्ञानपर्व तथा ज्योतिपर्व के रूप में मनाते हैं। राजस्थान में यह पर्व नई फसल के स्वागत का अवसर होता है।
सम्पूर्ण वर्ष में यह एकमात्र अबूझ सावा है। इस दिन राज्य में हजारों विवाह विशेषत: बाल विवाह सम्पन्न होते हैं। यह दिन बीकानेर का स्थापना दिवस भी है। इस दिन से सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारम्भ माना जाता है।
– पीपल पूर्णिमा :- यह वैशाख पूर्णिमा (बुद्ध पूर्णिमा) को मनाई जाती है।
ज्येष्ठ माह के त्यौहार
– वट सावित्री व्रत या बड़मावस (ज्येष्ठ अमावस्या) :- यह सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है। इस व्रत के अंतर्गत स्त्रियाँ वट वृक्ष की पूजा करती है। इस दिन वे सत्यवान सावित्री की कथा सुनती है।
– गंगा दशहरा (ज्येष्ठ शुक्ला दशमी) :
निर्जला एकादशी (ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी) :- सम्पूर्ण एकादशियों में यह सर्वोत्तम है। इसका व्रत करने से अन्य सभी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है।
आषाढ़ माह के त्यौहार
– योगिनी एकादशी (आषाढ़ कृष्णा एकादशी) :- इस एकादशी का व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
– देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ला एकादशी) :- इस दिन से चार महीनों तक भगवान विष्णु क्षीर सागर में अन्नत शैया पर शयन करते है। इसलिए इस दिन से चार महीने तक कोई भी मांगलिक कार्य विवाहादि सम्पन्न नहीं किये जाते हैं।
– गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ पूर्णिमा) :- इस दिन गुरु-पूजन की विशेष महत्ता है। इस दिन गुरु-पूजन होता है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
मुस्लिम समाज के त्यौहार
– हिजरी सन् :- हिजरी सन् चन्द्रमा पर आधारित होता है। हिजरी सन् का पहला महीना मुहर्रम तथा अंतिम महीना जिलहिज होता है। हिजरी सन् के 12 माह है –
- मुहर्रम मुल हराम – नवम्बर
- सफी उल सफर – दिसम्बर
- रबी उल अव्वल – जनवरी
- रबी उलसानि – फरवरी
- जमादि उल अव्वल – मार्च
- जमादि उलसानि – अप्रैल
- रज्जब उल मुज्जबर – मई
- शाबान उल मुहाज्जम – जून
- रमजान उल मुबारक – जुलाई
- सव्वाल उल मुर्करम – अगस्त
- जिल्काद – सितम्बर
- जिलहिज – अक्टूबर
– मोहर्रम :- यह इस्लामी वर्ष यानि हिजरी सन् का पहला महीना है। इसे ‘अल्लाह का महीना’ कहा जाता है। इस माह में हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 अनुनायियों ने सत्य और इंसाफ के लिए यजदी की फौज से लड़ते हुए कर्बला के मैदान में शहादत पाई थी लेकिन धर्म विरोधियों के अागे सिर नहीं झुकाया था। उसी की याद में मोहर्रम माह की 10 तारीख को मनाया जाता है। इस दिन को ‘अशुरा’ कहा जाता है। इस दिन ताजिए निकाले जाते हैं। इन ताजियों को कर्बला के मैदान में दफनाया जाता है।
– इद-उल-मिलादुलनबी (बारावफात) (रबी उल-अव्वल माह की 12वीं तारीख) :- यह त्यौहार पैगम्बर हजरत मोहम्मद के जन्मदिन की याद में मनाया जाता है।
मोहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में मक्का (सउदी अरब) में हुआ था। यह दिन इबादत दान-पुण्य, भलाई और पैगम्बर साहब की नेकियों पर मनन करने और उन्हें जीवन में उतारने का दिन है।
– इद-उल-फितर (मीठी ईद) (सव्वाल माह की पहली तारीख) :- इसे ‘सिवैयों की ईद’ भी कहा जाता है। ‘ईद’ शब्द का अर्थ ‘खुशी’ या ‘हर्ष’ होता है। मुस्लिम लोग रमजान के पवित्र माह में 30 दिन तक रोजे करने के बाद शुक्रिया के तौर पर इस त्यौहार को मनाते हैं। मीठी सिवैयाँ व अन्य पकवान बनाकर खिलाये जाते हैं। यह भाईचारे का त्यौहार है।
– इदुलजुहा (जिल्हिज की 10वीं तारीख) :- इसे ‘बकरीद’ के नाम से भी जाना जाता है। यह कुर्बानी का त्यौहार है जो पैगम्बर हजरत इब्राहीम द्वारा अपने लड़के हजरत इस्माइल की अल्लाह को कुर्बानी देने की स्मृति में मनाया जाता है। इदुलजुहा के माह में ही मुसलमान हज करते हैं।
– शबे बारात :- यह त्यौहार शाबान माह की 14वीं तारीख की शाम को मनाया जाता है। यह माना जाता है कि इस दिन हजरत मुहम्मद साहब की आकाश में ईश्वर से मुलाकात हुई थी।
– शबे कद्र :- यह रमजान की 27वीं तारीख को मनाया जाता है। इस्लाम के मुताबिक अकीदत और ईमान के साथ कद्र की शब (रात) में इबादत करने वालों के पिछले गुनाह माफ कर दिये जाते हैं। इस दिन कुरान उतारा गया था।
– चेहल्लुम :- यह मोहर्रम के चालीस दिनों के बाद सफर मास की बीसवीं तारीख को मनाया जाता है। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में शाहदत के 40वंे दिन चहेल्लुम मनाया जाता है।
– हजरत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती का जन्मदिवस :- हिजरी सन् के जमादि उलसानि माह की 8 तारीख को मनाया जाता है।
विभिन्न उर्स (मेले)
– उर्स गरीब नवाज-अजमेर :- ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का 1256 ई. में एकांत वास में 6 दिन की प्रार्थना के पश्चात् स्वर्गवास हो गया। अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की मृत्यु की बरसी के रूप में 1 से 6 रज्जब तक ख्वाजा का उर्स मनाया जाता है। दरगाह, अजमेर के ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ने के साथ ही उर्स की अनौपचारिक शुरुआत होती है। उर्स में देश-विदेश से लाखों जायरीन आते हैं। अजमेर में उर्स के दौरान सामाजिक सद्भाव व राष्ट्रीय एकता का अनूठा संगम दिखाई देता है।
– तारकीन का उर्स-नागौर :- नागौर में सूफियों की चिश्ती शाखा के संत काजी हमीदुद्दीन नागौर की दरगाह है जहाँ अजमेर के बाद सबसे बड़ा उर्स भरता है।
– गलियाकोट का उर्स-डूँगरपुर :- माही नदी के निकट स्थित गलियाकोट दाऊदी बोहरों का प्रमुख तीर्थ स्थान है। यहाँ फखरुद्दीन पीर की मजार है। यहाँ प्रतिवर्ष उर्स आयोजित किया जाता है।
– नरहड़ की दरगाह का मेला-झुंझुृनूं :- झुंझुनूं जिले के नरहड़ गाँव में ‘हजरत हाजिब शक्कर बादशाह’ की दरगाह है जो शक्कर पीर बाबा की दरगाह के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विशाल मेला लगता है। जायरीन दरगाह में स्थित जाल वृक्ष पर अपनी मिन्नतों के डोरे बाँधते हैं।
जैन धर्म के पर्व
– दशलक्षण पर्व :- प्रतिवर्ष चैत्र, भाद्रपद व माघ माह की शुक्ला पंचमी से पूर्णिमा तक दिसम्बर जैनों में दशलक्षण पर्व मनाया जाता है। यह पर्व किसी व्यक्ति से संबंधित न होकर आत्मा के गुणों से संबंधित है।
– पर्युषण पर्व :- जैन धर्म में पर्युषण पर्व महापर्व कहलाता है। पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है निकट बसना। दिगम्बर परम्परा में इस पर्व का नाम दशलक्षण के साथ जुड़ा हुआ है। जिसका प्रारंभ भाद्रपद सुदी पंचमी से होता है और समापन चतुर्दशी को। श्वेताम्बर परम्परा में इस पर्व का प्रारम्भ भाद्रपद कृष्णा बारस से होता है व समापन भाद्रपद शुक्ला पंचमी को होता है। इसके दूसरे दिन अर्थात आश्विन कृष्णा एकम को क्षमापणी पर्व मनाया जाता है तथा जैन समाज के सभी लोग आपस में अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करते हैं।
– सोलह कारण :- भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा से प्रारंभ होकर आश्विन कृष्णा तक सोलह कारण का उत्सव मनाया जाता है।
– ऋषभ जयन्ती :- प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण नवमी को ऋषभ जयन्ती पर्व मनाया जाता है। इस दिन जैन समाज के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) का जन्म हुआ था।
– महावीर जयन्ती :- जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मदिन चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को महावीर जयन्ती के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान महावीर के जीवन से संबंधित झाँकियाँ निकाली जाती हैं। श्री महावीर जी (करौली) में इस दिन विशाल मेला भरता है।
– सुगंध दशमी पर्व (भाद्रपद शुक्ल की दशमी) :- सुगंध दशमी के अलावा इसे धूप दशमी भी कहा जाता है।
– रोट तीज :- भाद्रपद शुक्ला तृतीया को जैन मतानुयायी रोट तीज का पर्व मनाते हैं जिसमें खीर व रोटी (मोटी मिस्सी रोटियाँ) बनाई जाती है।
– रत्नत्रय :- भाद्रपद शुक्ला त्रयोदशी से पूर्णमासी तक रत्नत्रय का त्यौहार मनाया जाता है। इन तीन दिनों में सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र के स्वरूप पर प्रकाश डाला जाता है।
– अष्टाह्रिका :- जैनी लोग प्रति चौथे माह आषाढ़, कार्तिक एवं फाल्गुन शुक्ल पक्ष में अष्टमी से पूर्णमासी तक अष्टाह्रिका का त्यौहार मनाते हैं। इस अवसर पर 52 जिन चैत्यालयों की उपासना भी की जाती हैं।
– पड़वा ढोक :- यह दिगम्बर जैन समाज का क्षमायाचना पर्व है जो आश्विन कृष्णा प्रतिपदा (एकम) को मनाया जाता है।
सिंधी समाज के पर्व
– थदड़ी या बड़ी सातम (भाद्रपद कृष्णा सप्तमी) :- इस दिन सिंधी समाज के लोग बासोड़ा मनाते हैं व पूरे दिन गर्म खाना नहीं खाते।
– चालीहा महोत्सव :- सिंध प्रांत के बादशाह मृखशाह के जुल्मों से परेशान होकर सिन्धी समाज के लोगों ने 40 दिन तक व्रत किया तथा चालीसवें दिन झूलेलाल का अवतार हुआ। इसी की स्मृति में प्रतिवर्ष सूर्य के कर्क राशि में आ जाने पर 16 जुलाई से 24 अगस्त तक की अवधि में चालीहा महोत्सव मनाया जाता है।
– चेटीचण्ड या झूलेलाल जयन्ती :- सिंध प्राप्त के थट्टा नगर में झूलेलाल जी का चैत्र माह में जन्म हुआ। झूलेलाल वरुण के अवतार माने जाते हैं। सिंधी समाज द्वारा उनका जन्मदिवस ‘चेटीचण्ड’ के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
– असूचंड पर्व :- फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी के दिन भगवान झूलेलाल के अंतर्धान होने पर यह पर्व मनाया जाता है।
सिक्ख समाज के पर्व
– लोहड़ी :- लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या पर 13 जनवरी के दिन मनाया जाता है।
– वैशाखी :- सिक्खों के 10वें गुरु गोविन्द सिंह द्वारा आनन्दपुर साहिब, रोपड़ (पंजाब) में खालसा पंथ की स्थापना 13 अप्रैल, 1699 ई. को की गई थी। तभी से 13 अप्रैल को यह त्यौहार मनाया जाता है।
– गुरुनानक जयन्ती :- सिक्ख धर्म के प्रवर्तक।
– गुरु गोविन्द सिंह जयन्ती :- गुरु गोविन्द सिंह सिक्खों के 10वें व अंतिम गुरु थे। पौष शुक्ला सप्तमी को इसका जन्म दिवस मनाया जाता है।
ईसाई धर्म के त्यौहार
– क्रिसमस :- 25 दिसम्बर को ईसा मसीह का जन्मदिन क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है।
– नववर्ष दिवस :- ईस्वी सन् की पहली जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है।
– ईस्टर :- ईसाईयों की मान्यता है कि इस दिन ईसा मसीह पुनर्जीवित हुए थे।
– गुड फ्राइडे :- ईस्टर के रविवार के पूर्व वाले शुक्रवार को यह त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन ईसा मसीह को सूली पर लटकाया गया था।
– असेन्सन डे :- ईस्टर के 40 दिन बाद ईसा मसीह के स्वेच्छा से पुन: स्वर्ग लौट जाने के उपलक्ष्य में ईसाई समाज द्वारा हर्षोल्लास के साथ यह दिन मनाया जाता है।
– नवरोज :- पारसियों के नववर्ष का प्रारम्भ नवरोज से होता है।