राजस्थान के प्रमुख त्यौहार
हिन्दू महीना
– राष्ट्रीय पंचांग :- भारत का राष्ट्रीय पंचांग शक संवत् पर आधारित है। ग्रिगेरियन कैलेण्डर का आधार भी शक संवत ही है। शक संवत् का पहला महीना चैत्र का एवं अंतिम महीना फाल्गुन का होता है।
भारतीय संविधान ने शक संवत् को राष्ट्रीय पंचांग के रूप में ’22 मार्च, 1957’ को अपनाया था।
सामान्यत: चैत्र माह का पहला दिन 22 मार्च पड़ता है, यदि अधिवर्ष है तो 21 मार्च को पड़ेगा लेकिन हमेशा ही ऐसा हो, यह आवश्यक नहीं है।
राष्ट्रीय पंचांग के माह हैं – चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन।
– शक संवत् :- शक संवत् का प्रारम्भ 78 ई. (78A.D.) में कुषाण शासक कनिष्क के काल में हुआ था। यह ग्रिगेरियन कलैण्डर वर्ष से 78 वर्ष पीछे रहता है।
– नव संवत् (विक्रम संवत्) :- भारत में हिन्दू पंचांग विक्रम संवत् पर आधारित है। विक्रम संवत् का प्रारम्भ 57 ई. पू. (B. C.) में हुआ था। इस संवत् के वर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ला एकम् से होता है एवं समाप्ति फाल्गुन अमावस्या को होती है। यह वर्ष ग्रिगोरियन कलैण्डर वर्ष से 57 वर्ष आगे रहता है।
देशी माह | अंग्रेजी माह | देशी माह | अंग्रेजी माह |
पौष-माघ | जनवरी | माघ-फाल्गुन | फरवरी |
फाल्गुन-चैत्र | मार्च | चैत्र-वैशाख | अप्रैल |
वैशाख-ज्येष्ठ | मई | ज्येष्ठ-आषाढ़ | जून |
आषाढ़-श्रावण | जुलाई | श्रावण-भाद्रपद | अगस्त |
भाद्रपद-आश्विन | सितम्बर | आश्विन-कार्तिक | अक्टूबर |
कार्तिक-मार्गशीर्ष | नवम्बर | मार्गशीर्ष-पौष | दिसम्बर |
श्रावण माह के त्यौहार
– निडरी नवमी (श्रावण कृष्णा नवमी) :- सांपों के आक्रमण से बचने के लिए श्रावण कृष्णा नवमी को नेवलों का पूजन किया जाता है।
– कामिका एकादशी (श्रावण कृष्णा एकादशी) :- इस व्रत में विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। कामिका एकादशी को विष्णु का सबसे उत्तम व्रत माना जाता है।
– हरियाली अमावस (श्रावण अमावस्या) :- यह त्यौहार सावन में प्रकृति पर आई बहार की खुशी में मनाया जाता है। हरियाली अमावस्या पर पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे लिये जाते हैं तथा मालपूए का भोग बनाकर चढ़ाये जाने की परम्परा है। इस दिन मांगलियावास (अजमेर) में कल्पवृक्ष का मेला भरता है।
– श्रावणी तीज या छोटी तीज (श्रावण शुक्ला तृतीया) :- छोटी तीज ही अधिक प्रसिद्ध है। ‘तीज त्यौहारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर’ अर्थात् तीज त्यौहारों को लेकर आती है जिनको गणगौर अपने साथ वापस ले जाती है। तीज का त्यौहार मुख्यत: बालिकाओं और नवविवाहिताओं का त्यौहार है। एक दिन पूर्व बालिकाओं का सिंजारा (शृंगार) किया जाता है। छोटी तीज ‘पार्वती’ का प्रतीक मानी जाती है। जयपुर की तीज की सवारी विश्व प्रसिद्ध है।
– नाग पंचमी (श्रावण शुक्ला पंचमी) :- इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है। उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है। इस दिन अष्ट नागों की पूजा की जाती है। जोधपुर में इस दिन नाग पंचमी का मेला लगता है।
– रक्षाबंधन :- भाई-बहन के स्नेह का त्यौहार। इस दिन घर के प्रमुख द्वार के दोनों ओर श्रवण कुमार के चित्र बनाकर पूजन करते हैं।
भारत के प्रसिद्ध तीर्थ अमरनाथ में बर्फ का शिवलिंग रक्षाबन्धन के त्यौहार पर ही अपने पूर्ण आकार को प्राप्त करता है।
भाद्रपद के त्यौहार
– बड़ी तीज / सातुड़ी तीज / कजली तीज (भाद्रपद कृष्णा तृतीया) :- यह त्यौहार अखंड सुहाग व मनोनुकूल वर की कामना से जुड़ा हुआ है। इस पर्व पर सत्तू से बने विशेष व्यंजनों का आदान-प्रदान होता है। इस दिन नीम की पूजा की जाती है। बँूदी की ‘कजली तीज की सवारी’ बड़ी प्रसिद्ध है।
– हल षष्ठी (भाद्रपद कृष्णा षष्ठी) : यह त्यौहार भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हल की पूजा की जाती है व गाय के दूध ओर दही का प्रयोग वर्जित होता है। इस व्रत को पुत्रवती माताएँ ही करती हैं।
– ऊब छठ (भाद्रपद कृष्णा षष्ठी) :- ऊब छठ का व्रत और पूजा विवाहित स्त्रियां पति की लम्बी आयु व कुंवारी लड़कियां अच्छे पति की कामना के लिए करती हैं। इस व्रत को ‘चंदन षष्ठी व्रत’ भी कहा जाता है।
– कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्णा अष्टमी) :- यह भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव है। इस दिन मंदिरों में श्रीकृष्ण के जीवन से संबंधित झाँकियाँ सजाई जाती हैं। पूरे दिन उपवास के बाद रात के बारह बजे श्रीकृष्ण का जन्म होने पर श्रीकृष्ण की आरती व विशेष पूजा-अर्चना करके भोजन ग्रहण किया जाता है।
– गोगा नवमी (भाद्रपद कृष्णा नवमी) :- इस दिन लोकदेवता गोगाजी की पूजा की जाती है। हनुमानगढ़ जिले में ‘गोगामेड़ी’ नामक स्थान पर मेला भरता है।
– बछबारस (भाद्रपद कृष्णा द्वादशी) :- इसे वत्स द्वादशी भी कहते है। यह व्रत संतान की लम्बी आयु व उसके उज्जवल भविष्य के लिए किया जाता है। इस दिन गाय व बछड़े का पूजन किया जाता है तथा महिलाएँ चाकू से कटी भोजन सामग्री का उपयोग नहीं करती। इस दिन गाय के दूध, दही ओर इससे निर्मित पदार्थों तथा गेहूँ का सेवन वर्जित है।
– हरतालिका तीज (भाद्रपद शुक्ला तृतीया) :- इस दिन रेत के शंकर-पार्वती बनाकर उन्हें फूलों से सजाया जाता है। यह निर्जल, निराहार व्रत है जो सुहागिनों द्वारा उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। यह व्रत अखंड सौभाग्य का वर देता है।
– शिवा चतुर्थी (भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी) :- इस दिन स्त्रियाँ उपवास करती हैं तथा अपने सास-ससुर को घी, गुड़, लवण आदि से बना भोजन कराती हैं।
– ‘चतड़ा/चतरा चौथ’, गणेश चतुर्थी (भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी) :- भगवान गणेश के जन्मदिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश-चतुर्थी का उत्सव 10 दिन के बाद अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है। यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार ‘चतरा चाैथ’ के नाम से भी जाना जाता है। चतरा चौथ के दिन नवविवाहित युवकों को सिंजारा भेजा जाता है। यह बालकों का विशेष त्यौहार हैं। गणेश चतुर्थी से दो दिन पूर्व बच्चों का सिंजारा दिया जाता है।
– ऋषि पंचमी (भाद्रपद शुक्ला पंचमी) :- इस दिन गंगा स्नान का विशेष महात्म्य है। इस दिन विशेष रूप से सप्त ऋषियों का पूजन किया जाता है। माहेश्वरी समाज में राखी इसी दिन मनाई जाती है।
– राधाष्टमी (भाद्रपद शुक्ला अष्टमी) :- कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधाजी के जन्म के रूप में मनाया जाता है। इस दिन अजमेर की निम्बार्क पीठ ‘सलेमाबाद’ में मेला भरता है।
– डोलग्यारस एकादशी/जलझूलनी/देवझूलनी एकादशी (भाद्रपद शुक्ला एकादशी) :- आज के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार का व्रत व पूजन किया जाता है।
– अनंत चतुर्दशी (भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी) :- इसे ‘अनंत व्रत’ भी कहते है जिसका अनुष्ठान स्त्री-पुरुष दोनों ही करते हैं। अनंत देव भगवान विष्णु का एक विशेषण है। अनंत व्रत के प्रभाव से ही पांडव महाभारत युद्ध में विजयी हुए।
– श्राद्धपक्ष (भाद्रपद पूर्णिमा) :- भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक सनातन धर्मियों में पितरों के दिन माने जाते हैं।
– साँझी :- इस त्यौहार में 15 दिन (भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या) तक कुँवारी कन्याएँ भाँति-भाँति की संझ्याएं बनाती है व पूजा करती हैं।
आश्विन माह के त्यौहार
– नवरात्रा :- हिंदू धर्म में दो नवरात्र क्रमश: बासंतीय नवरात्र एवं शारदीय नवरात्र के नाम से प्रचलित है। प्रथम नवरात्र चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से और द्वितीय नवरात्र आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होते है। शक्ति उपासना के लिए नवरात्र सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है।
– अहोई अष्टमी :- कार्तिक कृष्णा अष्टमी। इस दिन पुत्रवती स्त्रियाँ निर्जल व्रत रखती है।
– दुर्गाष्टमी (आश्विन शुक्ला अष्टमी) :- अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन करवाया जाता है। दुर्गाष्टमी का त्यौहार बंगालियों के लिए बहुत बड़ा पर्व समझा जाता है।
– दशहरा (आश्विन शुक्ला दशमी) :- दशहरा (विजय दशमी या आयुध पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। दशहरे के दिन जगह-जगह रावण, कुंभकर्ण व मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं। भारत में मैसूर तथा कुल्लू का दशहरा प्रसिद्ध है। राजस्थान में कोटा का दशहरा मशहूर है। दशहरे पर शमी वृक्ष (खेजड़ी) की पूजा की जाती है और लीलटास पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है।
– शरद पूर्णिमा (आश्विन पूर्णिमा) :- इसे ‘कोजागरी पूर्णिमा’ या ‘रास पूर्णिमा’ भी कहते है।
कार्तिक माह के त्यौहार
– करवा चौथ (कार्तिक कृष्णा चतुर्थी) :- करवा चौथ को कर्क चतुर्थी भी कहा जाता है। सधवा महिलाएं अपने पति के सौभाग्य के लिए यह त्यौहार मनाती है। इस दिन करक चतुर्थी के व्रत का विधान है जो रात्रि को चंद्र दर्शन व चंद्र अर्घ्य के बाद ही खोला जाता है।
– तुलसी एकादशी (कार्तिक कृष्णा एकादशी) :- तुलसी एकादशी को रमा एकादशी भी कहते है। इस दिन तुलसी का व्रत व पूजन किया जाता है। तुलसी को विष्णु प्रिया भी माना जाता है।
– धनतेरस (कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी) :- प्रचलित कथा के अनुसार कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। अत: इस दिन को भगवान धनवंतरी के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
– रूप चतुर्दशी (कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी) :- इसे ‘नरक चतुर्दशी’ भी कहते है क्योंकि यह माना जाता है कि आज जो व्यक्ति स्नान-ध्यान व दीपदान करता है उसे नरक नहीं जाना पड़ता है। विष्णु पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने नरकासुर का वध किया।
– दीपावली (कार्तिक अमावस्या) :- यह हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है। हिंदू मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लंका पर विजय प्राप्त करके अयोध्या आये तो घर-घर घी के दीप जलाये गये। सिक्खों की मान्यता है कि जहांगीर ने गुरु हरगोविंद को इसी दिन कैद से मुक्त िकया। इस पर्व को दीपोत्सव के रूप में मनाया जाता है। सुंदर नयनाभिराम पटाखें छोड़ना इसी का एक भाग है। इस दिन आर्य समाज संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती एवं भगवान महावीर का निर्वाण दिवस भी मनाया जाता है।
– गोवर्धन पूजा व अन्नकूट (कार्तिक शुक्ला प्रतिप्रदा) :- दीपावली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा होती है। इस दिन गायों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि गाय देवी लक्ष्मी का स्वरूप है। राजस्थान में नाथद्वारा का अन्नकूट प्रसिद्ध है।
– भैयादूज (कार्तिक शुक्ला द्वितीया) :- यह पर्व दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता है। यह भाई-बहन के प्यार का प्रतीक है। इसे यम द्वितीया के रूप में भी मनाया जाता है।
– गोपाष्टमी (कार्तिक शुक्ला अष्टमी) :- यह हमारी कृषि संस्कृति की देन है। गायें सामाजिक प्रतिष्ठा एवं धन सम्पत्ति की मापदंड मानी जाती थी। अत: गायों के आदर सत्कार व शृंगार हेतु यह पर्व मनाया जाता है।
– आँवला नवमी/अक्षय नवमी (कार्तिक शुक्ला नवमी) :- इसे ‘धात्री नवमी’ या ‘कूष्माण्ड नवमी’ भी कहते हैं। इस दिन आँवले के वृक्ष का पूजन कर उसकी परिक्रमा की जाती है।
– देवउठनी ग्यारस (कार्तिक शुक्ला एकादशी) :- इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते है। कहा जाता है इस दिन भगवान विष्णु चार माह उपरांत जागे थे। अत: इस दिन से ही समस्त मांगलिक कार्य/शादी-विवाह शुरू किये जाते हैं। महिलाएँ इस दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह का आयोजन भी करती हैं। इसे ‘तुलसी एकादशी’ भी कहा जाता है।
– देव दीपावली (कार्तिक पूर्णिमा) :- इस दिन भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किये जाने के कारण इसे ‘त्रिपुरा पूर्णिमा’ भी कहते हैं। इस दिन पुष्कर (अजमेर) में मेला भरता है। इस दिन भगवान का मत्स्य अवतार हुआ था।
– मकर संक्रांति :- यह पर्व माघ मास में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को जब सूर्य मकर राशि में प्रविष्ट होता है उस दिन मनाया जाता है। सामान्यत: त्यौहार 14 जनवरी को मनाया जाता है। संक्रांति के एक दिन पूर्व तिल के लड्डू, पपड़ी, बरफी, फीनी इत्यादि बनाये जाते हैं। इस दिन दान पुण्य का विशेष महत्व होता है। इस दिन सधवा स्त्रियाँ सुहाग की तेरह वस्तुएँ कलप कर सुहागिन स्त्रियों को देती हैं। इस दिन रूठी सास को मनाए जाने की भी प्रथा है।
माघ माह के त्यौहार
– तिल चाैथ (माघ कृष्णा चतुर्थी) :- इसे संकट चौथ, वक्रतुण्डी चतुर्थी तथा तिलकुटा चौथ भी कहते हैं। इस दिन सवाईमाधोपुर में चौथ माता का भव्य मेला भरता है।
– षट्तिला एकादशी (माघ कृष्णा एकादशी) :- इस दिन 6 प्रकार के तिलों का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण इसका नामकरण षट्तिला एकादशी है। यह व्रत दरिद्र विनाश, धन वैभव व सौभाग्य प्राप्ति हेतु किया जाता है। इसके अधिष्ठाता देव भगवान विष्णु है।
– मौनी अमावस्या (माघ अमावस्या) :- इस दिन मौन व्रत रखा जाता है। यह दिन मनु के ‘जन्म दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदी खासतौर पर गंगा का जल अमृत बन जाता है। अत: माघ स्नान के लिए मौनी अमावस्या को बहुत ही खास बताया गया है।
– बसंत पंचमी (माघ शुक्ला पंचमी) :- बसंत पंचमी को ज्ञान की देवी सरस्वती और प्रेम के देवता रतिदेव (कामदेव) का पूजन करने की परम्परा रही है। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। यह दिन ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिवस माना जाता है।
– अचला सप्तमी / सौर सप्तमी / भानु सप्तमी / बसंत सप्तमी (माघ शुक्ला सप्तमी) :- भगवान सूर्य नारायण को प्रसन्न करने के लिए अचला सप्तमी का व्रत किया जाता है। जयपुर का सूर्य सप्तमी का मेला सारे राजस्थान में प्रसिद्ध था।
– माघ पूर्णिमा :- स्नान पर्वों का यह अंतिम पर्व है। इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर विष्णु पूजन, पितृ श्राद्ध कर्म तथा गरीबों को दान देने का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन बेणेश्वर धाम में विशाल मेला भरता है।
फाल्गुन माह के त्यौहार
– महाशिवरात्रि (फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी) : इसी दिन भगवान शिव का ब्रह्मा से रूद्र रूप में अवतरण हुआ था। महाशिवरात्रि शिव के लिंग रूप में उद्भव का भी दिन माना जाता है। समुद्र मंथन से निकले कालकूट नामक विष को सृष्टि को बचाने के लिए इसी दिन अपने कंठ में रखा। इस दिन शिव की दुग्ध व बिल पत्रों से पूजा-अर्चना की जाती है।
– ढूँढ (फाल्गुन शुक्ला एकादशी) :- बच्चा होने पर ढूँढ होली से पहले वाली ग्यारस को पूजते हैं।
– आंवल / आमलकी एकादशी (फाल्गुन शुक्ला एकादशी) : आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु के निवास के कारण इसकी एकादशी को पूजा की जाती है।
– होली (फाल्गुन पूर्णिमा) :- रंगों का त्यौहार होली दो दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन हिरण्यकश्यप की आज्ञा पर उसकी बहन होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हुई थी लेकिन प्रहलाद बच जाता है व होलिका जल जाती है। फाल्गुन मास में मनाये जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते है।
चैत्र माह के त्यौहार
– धुलंडी (चैत्र कृष्णा प्रतिप्रदा) :- होली के दूसरे दिन धुलंडी मनायी जाती है। इसी दिन गणगौर पूजन प्रारम्भ, बसन्तोत्सव, बादशाह मेला (ब्यावर) व फूलडोल मेला (शाहपुरा) मनाये जाते हैं।
भिनाय की कौड़ामार होली, केकड़ी की अंगारों की होली, ब्यावर की देवर-भाभी होली, श्री महावीर जी की लट्ठमार होली, बाड़मेर की पत्थरमार होली एवं ईलोजी की सवारी, मेवाड़ के आदिवासी लोगों की भगोरिया होली, कोटा के आवां का न्हान एवं शेखावाटी का गींदड़ नृत्य आदि प्रसिद्ध है।
– घुड़ला का त्यौहार (चैत्र कृष्णा अष्टमी) :- यह त्यौहार राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में चैत्र कृष्णा अष्टमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक मनाया जाता है। इस त्यौहार पर चैत्र सुदी तीज को मेला भरता है।
– शीतलाष्टमी (चैत्र कृष्णा अष्टमी) :- इस दिन शीतला माता का व्रत व पूजन किया जाता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भाेग लगाने के लिए बासी खाने का भोग यानि बसौड़ा तैयार किया जाता है। शीतलाष्टमी के दिन चाकसू (जयपुर) में शीतला माता का विशाल मेला भरता है।
– नवसंवत्सर (चैत्र शुक्ला प्रतिप्रदा) :- नया विक्रम संवत् का पहला दिन। हिन्दुओं का नववर्ष इसी दिन से प्रारम्भ होता है। महाराष्ट्र में इस दिन ‘गुडी पड़वा’, आंध्र प्रदेश में उगादि (युगादि), कश्मीर में ‘नवरेह’ के नाम से नववर्ष मनाया जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इसी दिन शकों पर विजय प्राप्त की थी।
– अरुन्धती व्रत (चैत्र शुक्ला प्रतिप्रदा) :- यह व्रत चैत्र शुक्ला की प्रतिपदा से आरम्भ होता है और चैत्र शुक्ला तृतीया को समाप्त होता है।
– सिंजारा (चैत्र शुक्ला द्वितीया) :- यह त्यौहार पुत्री और पुत्रवधु के प्रति प्रेम का प्रतीक है। गणगौर व तीज के एक दिन पूर्व सिंजारा भेजा जाता है जिसमें साड़ी, शृंगार की सामग्री, चूड़ी, मेहंदी, रोली, मिठाई आदि पुत्री तथा पुत्रवधू के लिए भेजी जाती है।
– गणगौर (चैत्र शुक्ला तृतीया) :- यह ‘सौभाग्य तृतीया’ के रूप में भी प्रसिद्ध है। यह सुहागिन स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय त्यौहार है। यह शिव व पार्वती के अखंड प्रेम का प्रतीक पर्व है। गणगौर में ‘गण’ महादेव का व ‘गौर’ पार्वती का प्रतीक है।
इस दिन गणगौर माता की सवारी निकाली जाती है। जयपुर व उदयपुर की गणगौर प्रसिद्ध हैं। गणगौर के मेले में ऊँटों व घोड़ों की दौड़ मुख्य रूप से होती हैं।
गणगौर का त्यौहार राजस्थानी त्यौहारों में सबसे अधिक गीतों वाला त्यौहार हैं।
– अशोकाष्टमी (चैत्र शुक्ला अष्टमी) :- इस दिन अशोक के वृक्ष का पूजन किया जाता है।
– रामनवमी (चैत्र शुक्ला नवमी) :- भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है। महाकवि तुलसीदास ने भी इसी दिन रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की।
– हनुमान जयंती (चैत्र पूर्णिमा) :- इस दिन हनुमानजी का जन्म हुआ माना जाता है। सभी मंदिरों में इस दिन रामचरित मानस एवं हनुमान चालिसा का पाठ होता है।