राजस्थान सामान्य ज्ञान : त्योहार व मेले

 

 

 

राज्यस्तरीय पशु मेले :-

पशु मेलास्थानगौवंशमाह
श्री मल्लीनाथ पशु मेलातिलवाड़ा, (बाड़मेर) यह मेला लूनी नदी के किनारे भरता है।थारपारकर, कॉकरेजचैत्र कृष्णा 11 से चैत्र शुक्ला 11 (अप्रैल)
श्री बलदेव पशु मेलामेड़ता (नागौर)नागौरीचैत्र शुक्ला 1 से पूर्णिमा तक (अप्रैल)
श्री तेजाजी पशु मेलापरबतसर (नागौर)नागौरीश्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद अमावस्या (अगस्त)
श्री गोमतीसागर पशु मेलाझालरापाटन (झालावाड़)मालवीवैशाख सुदी 13 से ज्येष्ठ बुदी 5 तक (मई)
चन्द्रभागा पशु मेलाझालरापाटन (झालावाड़)मालवीकार्तिक शुक्ला 11 से मार्गशीर्ष कृष्णा 5 तक (नवम्बर)
जसवंत पशु मेलाभरतपुरहरियाणवीआश्विन शुक्ला 5 से 14 तक (अक्टूबर)
कार्तिक पशु मेलापुष्कर (अजमेर)गीरकार्तिक शुक्ला 8 से मार्गशीर्ष 2 तक (नवम्बर)
शिवरात्रि पशु मेलाकरौलीहरियाणवीफाल्गुन कृष्णा 13 से प्रारंभ (मार्च)
सेवाड़िया पशु मेलाजालौरकाँकरेज

 

कुछ अन्य मेले एवं त्यौहार

जोधपुर का धींगागवर :- जोधपुर नगर में प्रतिवर्ष होली के एक पखवाड़े बाद चैत्र शुक्ला तृतीया को गणगौर का विसर्जन करने के बाद वैशाख कृष्णा पक्ष की तृतीया तक धींगागवर की पूजा होती है। इस अवसर पर महिलाएँ बेंतमार मेला आयोजित करती हैं।

– गणगौर की सवारी, जैसलमेर :- जैसलमेर की शाही गणगौर दुनिया की निराली गणगौर है। यहाँ गणगौर की सवारी चैत्र शुक्ला तृतीया के स्थान पर चैत्र शुक्ला चतुर्थी को निकाली जाती है।

– मलूका मेला :- नृसिंह जयंती पर पाली में मलूका मेला लगता है।

– दशहरा मेला, कोटा :- कोटा का दशहरा मेला देश भर में प्रसिद्ध है। सन् 1579 में कोटा के प्रथम शासक राव माधोसिंह द्वारा स्थापित परंपरा 400 वर्षों के बाद आज भी चली आ रही है।

– सांगोद का न्हाण, कोटा :- कोटा जिले में ही ‘सांगोद का न्हाण’ भी प्रसिद्ध है। न्हाण का प्रचलन नवीं शताब्दी से माना जाता है। होली के अवसर पर मनाये जाने वाले इस उत्सव में ग्रामवासी विचित्र वेशभूषा में सज कर अखाड़े निकालते हैं। सांगोद के न्हाण का प्रचलन वीरवर सांगा गुर्जर की पुण्य स्मृति में 9वीं शताब्दी से माना जाता है।

– गौतमेश्वर का मेला, सिरोही :- सिरोही जिले में पोसालिया नदी के तट पर गौतमेश्वर में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक यह मेला लगता है। यह मीणा समाज का मेला है, जिसमें मीणा समाज अपने कुल देवता गौतमगुआ की पूजा करते हैं।

– घोटिया अम्बा मेला, बाँसवाड़ा :- यह बाँसवाड़ा जिले का सबसे बड़ा मेला है। यह प्रतिवर्ष चैत्र माह की अमावस्या को भरता है जिसमें राजस्थान, गुजरात तथा मध्यप्रदेश आदि प्रांतों से आदिवासी आते हैं।

– फूलडोल उत्सव, शाहपुरा :- भीलवाड़ा स्थित ‘शाहपुरा’ नगर अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के अनुयायियों का पीठ स्थल है। शाहपुरा में होली के दूसरे दिन प्रसिद्ध वार्षिक फूलडोल का मेला लगता है।

– भर्तृहरि :- भर्तृहरि के स्थान पर वर्ष में दो बार लक्खी मेला आयोजित होता है।

– रानी सती का मेला, झुंझुनूं :- झुंझुनूं में रानी सती के प्रसिद्ध मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास में मेला भरता है। 1988 के बाद से सती निषेध कानून के तहत इस पर रोक लगा दी है।

– मारगपालीकी सवारी :- जयपुर में अन्नकूट यानी कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन यह सवारी निकलती थी।

– सिंजारा :- गणगौर यानी चैत्र शुक्ला तृतीय के एक दिन पहले, चैत्र शुक्ला द्वितीया को सिंजारा होता है। उस दिन नववधुओं तथा बहन-बेटियों के लिए सुन्दर परिधान (विशेषत: लहरिया) तथा घेवर आदि मिष्ठान उपहारस्वरूप भेजे जाते हैं।

– धींगा गणगौर :- वैशाख कृष्णा तृतीया को उदयपुर में ‘धींगा गणगौर’ का त्यौहार मनाया जाता है। उदयपुर के महाराणा राजसिंह ने (सन् 1629-1680) अपनी छोटी महारानी के प्रीत्यर्थ यह त्यौहार प्रचलित किया था।

– वरकाणा का मेला :- पाली जिले में रानी के पास वरकाणा जैन तीर्थस्थल पर प्रतिवर्ष पौष शुक्ला दशमी को यह मेला भरता है।

– गोरिया गणगौर का मेला :- आदिवासियों का यह गणगौर मेला बाली तहसील के गोरिया ग्राम में प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ला सप्तमी को भरता है।

– चमत्कारजी का मेला :- आलनपुर (सवाईमाधोपुर) में श्री चमत्कारजी (ऋषभदेवजी) जैन मंदिर में प्रतिवर्ष शरद पूर्णिमा को यह प्रसिद्ध मेला लगता है।

– हुरंगा :- भरतपुर जिले के डांग व आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में होली के बाद चैत्र कृष्णा पंचमी से अष्टमी तक ‘हुरंगा’ आयोजित होता है जिसमें पुरुष एवं महिलाएँ बम ढोल तथा मांट की ताल पर सामूहिक रूप से विभिन्न प्रकार के स्वांग भरकर नृत्य करते हैं।

– डिग्गी श्री कल्याणजी का मेला :- डिग्गी (टोंक) कस्बे में श्रावणी अमावस्या, भाद्रपद शुक्ला एकादशी व वैशाख पूर्णिमा को लगता है।

– बाराँ जिले की सहरिया जनजाति का कुंभ कहा जाने वाला सीताबाड़ी मेला केलवाड़ा के निकट सीताबाड़ी में भरता है।

– खेजड़ली मेला :- विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला है।

– मातृकुण्डियाँ मेला :- चित्तौड़गढ़ जिले के राश्मी पंचायत समिति क्षेत्र में स्थित हरनाथपुरा गाँव में प्रतिवर्ष बैसाख पूर्णिमा को यह मेला भरता है।

– हेड़े की (छठ की) परिक्रमा :- जयपुर में प्रतिवर्ष भाद्रमास में परिक्रमाएँ आयोजित होती हैं। हेड़े की छह कोसी परिक्रमा पुराने घाट से प्रारम्भ होकर गोपाल जी के रास्ते में गोपाल जी के मंदिर में विसर्जित होती है।

– सलक :- दशहरे के अगले दिन जयपुर में होने वाला विशिष्ट समारोह।

– खंग स्थापन :- आश्विन शुक्ला प्रतिपदा को मेवाड़ में मनाया जाने वाला सामरिक समारोह।

– चूरू जिले में साहब का गुरुद्वारा है जिसके साथ सिक्ख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव एवं अंतिम गुरु गुरु गोविन्द सिंह’ के आने एवं रहने की स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं।

– राज्य की सबसे ऊँची पर्वत चोटी गुरु शिखर (माउण्ट आबू-सिरोही) पर भगवान विष्णु के अवतार गुरु दत्तात्रेय का मंदिर स्थित है एवं यहाँ प्रसिद्ध धर्म सुधारक रामानन्द के चरण चिह्न भी स्थापित है।

– छीछ माता का मेला :- बाँसवाड़ा में।

– डोल मेला :- बारां में।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page