राजस्थान सामान्य ज्ञान : जैव प्रौद्योगिकी सामान्य जानकारी

 

ट्रांसजेनिक पादप एवं जन्तु

ट्रांसजेनिक पादप (Transgenic Plant) – ट्रांसजेनिक पौधों का निर्माण उनमें प्रतिरोधकता उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए बी.टी कॉटन (B.T. Cotton), जिसमें मृदा में पाए जाने वाले जीवाणु बेसीलस थूरिनजियेन्सिस (इसे बी.टी. के नाम से जाना जाता है) से प्राप्त B.T. जीन को कपास की जीनीय संगठन में निवेशित कराके प्राप्त किया जाता है। B.T. जीव एक अत्यन्त शक्तिशाली प्रोटीन विष का निर्माण करता है। यह आविष (Toxin) कपास पर पाए जाने वाले प्रमुख कीट पिंक बॉल वार्म (Pink Ball worm) की आंत्र की आंतरिक झिल्ली को क्षतिग्रस्त कर देता है फलतः कीट भोजन का अवशोषण नहीं कर पाता एवं भूखा मर जाता है।

  • BT जीन पिंक बॉल वॉर्म के विरूद्ध सामान्य कीट नाशकों (Organo Phosphate) की तुलना में 80,000 गुना अधिक प्रभावी है।
  • जीन अभियांत्रिकी के उपयोग से खरपतवार रोधक फसलों की किस्में भी तैयार की गई हैं। इसी प्रकार सब्जियों, फलों एवं फुलों की उपयोगी एवं नई प्रजातियों का विकास किया गया है। ‘गोल्डन राइस’ इसका एक अच्छा उदाहरण है। यह चावल की ऐसी ट्रांसजेनिक किस्म है जिसमें विटामिन ए के संश्लेषण के लिए उत्तरदायी जीन का सामान्य चावल में निवेषण करवाया गया है। गोल्डन राइस विटामिन-ए युक्त चावल की किस्म है।
  • 1995 में अमेरिका में फ्लेवर सेवर नामक टमाटर की ऐसी ट्रांसजेनिक किस्म का विकास किया गया जो धीरे-धीरे व नियंत्रित रूप से पकती है एवं इस कारण इसे दूरस्थ स्थानों तक आसानी से भेजा जा सकता है।

ट्रांसजेनिक जन्तु (Transgenic Animal) – मानव के लिए उपयोगी जन्तु उत्पादों की गुणवत्ता एवं उत्पादन बढ़ाने के लिए एवं कुछ नए प्रकार के पदार्थ देने वाले जन्तुओं का, जीन अभियांत्रिकी के द्वारा विकास किया गया है। इस क्षेत्र में निरन्तर अनुसंधान जारी है। जन्तुओं की ऐसी नई किस्में ‘ट्रांसजेनिक जन्तु’ कहलाते हैं। मवेशियों के दूध से वांछित प्रोटीन एवं औषधियाँ प्राप्त करने के लिए ट्रांसजेनिक जन्तु बनाए जाते हैं। ऐसे प्रोटीन बहुत दुर्लभ एवं मँहगे होते है एवं फैक्ट्रियों में इनका निर्माण इनकी प्रकृत्ति को परिवर्तित कर देता है। उदाहरण के लिए मानव रूधिर में पाया जाने वाला प्रोटीन AAT (Anti Trypsine) को औषध निर्माता कंपनी PPT ने ट्रेसी (Tracy) नामक ट्रांसजेनिक भेड़ से प्राप्त किया। इसी प्रकार ट्रांसजेनिक जन्तुओं से वृद्धि हार्मोन एवं एकल क्लोनी प्रतिरक्षी (Mono Clonal Anti Bodies) प्राप्त किए जा रहे हैं।

जैव पेटेन्ट

  • पेटेन्ट कानून, 1970 – पेटेन्ट संबंधी यह कानून देश में 20 अप्रेल, 1972 से प्रभावी। भारत में पेटेन्ट वैधता 20 वर्ष के लिए है।
  • बौद्धिक सम्पत्ति की रक्षा एवं उसे व्यक्तिगत मान्यता देने हेतु सरकार द्वारा प्रदत्त कानूनी संरक्षण पेटेन्ट कहलाता है।
  • जीवों एवं उनसे संबंधित अवयवों संबंधी पेटेन्ट जैव पेटेन्ट (Biopatent) कहलाते हैं। इस तरह के पेटेन्ट मुख्यतः (1) सूक्ष्मजीवों के विभेद, (2) कोशिका क्रम, (3) आनुवांशिकतः रूपान्तरित पादप जन्तु, (4) डी एन ए क्षर क्रम, (5) डी एन ए क्षार क्रम, (5) डी एन ए क्षार क्रमों द्वारा कोडित प्रोटीनों, (6) जैवप्रौद्योगिकी प्रक्रियाएँ, (7) उत्पादन प्रक्रियाएँ, (8) उत्पादन, (9) उत्पादों के अनुप्रयोग के लिए दिये जाते हैं।

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