राजस्थान सामान्य ज्ञान : विभिन्न रियासतों में जन-आन्दोलन व प्रजामण्डल

 

 

भरतपुर

  • भरतपुर में स्वतंत्रता आन्दोलन का श्रीगणेश जगन्नाथ दास अधिकारी व गंगा प्रसाद शास्त्री ने किया। 1912 ई. में हिन्दी साहित्य समिति की स्थापना हुई। सौभाग्य से भरतपुर के महाराजा किशनसिंह अधिक प्रगतिशील शासक थे। इन्होंने हिन्दी को प्रोत्साहित किया व उत्तरदायी शासन की मांग को स्वीकार किया व 15 सितम्बर, 1927 ई. को ऐसी घोषणा भी की।
  • भरतपुर में 1927 में गौरीशंकर हीराचन्द ओझा की अध्यक्षता में हिन्दी साहित्य का 17वाँ अधिवेशन आयोजित हुआ।
  • ब्रिटिश सरकार ने महाराजा की इन गतिविधियों को गम्भीरता से लेते हुए उन्हें गद्दी छोड़ने पर विवश किया। उनके स्थान पर अल्प वयस्क बृजेन्द्र सिंह गद्दी पर बैठे।
  • प्रशासन के लिये एक अंग्रेज अधिकारी की नियुक्ति की गई, जिसमें जगन्नाथ दास अधिकारी को निर्वासित कर दिया व सार्वजनिक सभाओं व प्रकाशनों पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • 1928 में भरतपुर राज्य प्रजा संघ की स्थापना।
  • 1938 में गोपीलाल यादव की अध्यक्षता में प्रजामण्डल की स्थापना।
  • हरिपुरा अधिवेशन के पश्चात् भरतपुर के नेताओं ने रेवाड़ी (हरियाणा) में दिसम्बर, 1938 ई. को प्रजामंडल का गठन किया।
  • दिसम्बर, 1940 ई. में प्रजामंडल से समझौता किया जिसके तहत प्रजा परिषद नाम से संस्था का पंजीकरण किया गया व सभी नेता रिहा किये गये।
  • प्रजा परिषद् का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक समस्याओं को प्रस्तुत करना, प्रशासनिक सुधारों पर बल देना व शिक्षा का प्रसार करना था।
  • परिषद् ने  27 अगस्त से 2 सितम्बर, 1940 ई. तक राष्ट्रीय सप्ताह मनाया।
  • परिषद् ने भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। सरकार ने परिषद् की संतुष्टि के लिये बृज जय प्रतिनिधि सभा का गठन किया किन्तु राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकी। प्रतिनिधि सभा का बहिष्कार किया गया।
  • 1945 ई. में सत्याग्रह की घोषणा की गई किन्तु प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के कारण वह सफल नहीं हो पाया। दिसम्बर, 1946 ई. के कामां सम्मेलनों में बेगार समाप्त करने व उत्तरदायी शासन की मांग रखी गई। दुर्भाग्यवश राज्य के उपद्रव साम्प्रदायिक झगड़ों में बदल गये।
  • 1947 में प्रजा परिषद ने किसान सभा के साथ मिल राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ा।
  • 18 मार्च, 1947 ई. को भरतपुर के मत्स्य संघ में विलीन होने के बाद ही समस्यायें समाप्त हो पाई।

धौलपुर

  • आर्य समाज के प्रमुख स्वामी श्रद्धानन्द ने 1918 ई. से ही धौलपुर के निरंकुश शासन व्यवस्था के विरूद्ध आवाज उठानी आरंभ की। स्वामी जी की मृत्यु के बाद आन्दोलन शिथिल हो गया।
  • 1936 ई. में धौलपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापना कृष्ण दत्त पालीवाल ने की। यहाँ भी प्रजामंडल उत्तरदायी शासन व्यवस्था व नागरिक अधिकारों की मांग को लेकर आन्दोलन चलता रहा। शासक का रवैया सदैव की भांति दमनात्मक ही रहा।
  • मार्च, 1946 ई. में तासीमो गाँव में अधिवेशन में पुलिस द्वारा गोलीबारी की। जनता के दबाव में आकर तासीमो कांड की जाँच के आदेश दिये।
  • नवम्बर, 1947 में प्रजामण्डल ने महाराज की अनुमति नहीं मिलने पर भी अधिवेशन किया व इसका उद्घाटन कांग्रेस महासचिव शंकर राव देव ने किया।
  • 4 मार्च, 1948 ई. में उत्तरदायी शासन स्थापित करना स्वीकार किया। शीघ्र ही धौलपुर मत्स्य संघ में विलीन हो गया।

अन्य राज्य

  • 1939 ई. में करौली में प्रजामंडल स्थापित हुआ।
  • उत्तरदायी शासन व नागरिक अधिकारों को लेकर त्रिलोक चंद माथुर, चिंरजीलाल शर्मा आदि ने संघर्ष जारी रखा।
  • बाँसवाड़ा में 1943 ई. में भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी ने प्रजामंडल की स्थापना की।
  • डुंगरपुर में भोगीलाल पांड्या ने 1944 में सेवा संघ स्थापित किया। डूंगरपुर प्रजामंडल की स्थापना भोगीलाल पांड्या ने 1944 ई. में की।
  • रास्तापाल कांड डूंगरपुर में जून, 1947 में हुआ। जिसमें रियासती सैनिकों ने रास्तापाल गांव की पाठशाला के संरक्षक नानाभाई खांट को मौत के घाट उतारा व अध्यापक सेंगाभाई को ट्रक से बांधकर घसीटने लगे। तब 13 वर्षीय भील बालिका कालीबाई की अपने अध्यापक को रस्सी काटकर मुक्त करने के कारण गोली मारकर हत्या कर दी गई।
  • प्रतापगढ़ में ठक्कर बापा की प्रेरणा से अमृतलाल, चुन्नीलाल प्रभाकर ने प्रजामंडल की स्थापना 1945 ई. में की।
  • सिरोही में 1939 ई. में गोकुल भाई भट्ट ने प्रजामंडल की बागडोर संभाली किन्तु वह अधिक सक्रिय नहीं हो पाया।
  • झालावाड़ में प्रजामण्डल की स्थापना मांगीलाल जी द्वारा की गई।
  • किशनगढ़ प्रजामंडल की स्थापना 1939 ई. में हुई।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page