मेवाड़
- राजस्थान में सर्वाधिक प्रतिष्ठित राज्य मेवाड़ का था। यहाँ जन जागरण की पृष्ठभूमि किसान आन्दोलन व जनजातीय आन्दोलन से बनी।
- कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के पश्चात माणिक्यलाल वर्मा व बलवंत सिंह मेहता ने 24 अप्रेल, 1938 ई. को मेवाड़ प्रजा मण्डल की स्थापना की। इसे 11 मई, 1938 ई. को गैर कानूनी घोषित कर दिया एवं वर्मा जी को निष्कासित कर दिया गया।
- मेवाड़ प्रजामण्डल का विधान बलवन्त सिंह मेहता व प्रेम नारायण माथुर द्वारा तैयार।
- अजमेर जाकर वर्मा जी ने अपनी गतिविधियाँ जारी रखी व मेवाड़ का वर्तमान शासन नामक पुस्तक प्रकाशित करके शासन की कटु आलोचना की।
- फरवरी, 1939 ई. में जब वे उदयपुर आये तो उन्हें बंदी बनाकर पिटाई की गई। इस घटना की गांधी जी ने 18 फरवरी 1939 ई. के हरिजन अंक में कड़ी भर्त्सना की। माणिक्यलाल वर्मा को दो वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई।
- 1941 ई. में मेवाड़ प्रजामण्डल पर लगी पाबन्दी हटा ली। परिणामस्वरूप राज्य भर में इसकी शाखायें स्थापित कर दी गई।
- 25-26 नवम्बर, 1941 ई. को इसका पहला अधिवेशन वर्मा जी की अध्यक्षता में किया गया, जिसमें भाग लेने के लिये आचार्य कृपलानी व विजयलक्ष्मी पंडित उदयपुर आये। अधिवेशन में मेवाड़ में उत्तरदायी शासन की मांग की गई।
- इस अधिवेशन में ‘मेवाड़ हरिजन सेवक संघ‘ भी स्थापित व इसका कार्य मोहनलाल सुखाड़िया को दिया गया। भील, मीणों व आदिवासियों की सेवा का कार्य बलवन्त सिंह मेहता को।
- वर्मा जी भारत छोड़ो आन्दोलन से पूर्व होने वाली रियासती कार्यकर्ताओं की बैठक में भाग लेकर बम्बई से आये। उदयपुर आकर उन्होंने महाराणा को ब्रिटिश सरकार से संबंध विच्छेद करने के लिये पत्र भेजा। ऐसा न करने पर आन्दोलन की धमकी दी।
- 21 अगस्त, 1942 ई. में वर्माजी को गिरफ्तार किया गया, जिसके विरोध में उदयपुर में पूर्ण हड़ताल व गिरफ्तारियां हुई। इस आन्दोलन में विद्यार्थी भी कूद पड़े और आन्दोलन नाथद्वारा, भीलवाड़ा और चित्तौड़ तक फैल गया।
- 1942 ई. का यह आन्दोलन राजस्थान के अन्य भागों में चल रहे आन्दोलनों से भिन्न था। यहाँ के नेता इस आन्दोलन को अखिल भारतीय स्तर पर चल रहे आन्दोलन का भाग मानते थे।
- भारतीय राजनीति का परिदृश्य बदलने पर प्रजामण्डल नेताओं को छोड़ दिया गया व 1945 ई. में प्रजामंडल पर प्रतिबंध हटा लिया गया। राजनीतिक चेतना को विस्तारित करने के लिये प्रभात फेरियां व राष्ट्रीय नेताओं की जयन्ती मनायी जाने लगी।
- वर्मा जी ने 31 दिसम्बर से 2 जनवरी, 1946 ई. को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् का सातवां अधिवेशन उदयपुर में बुलाया। इसकी अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू ने की।
- 1946 ई. में महाराणा ने संविधान निर्मात्री सभा का गठन किया, जिसमें प्रजामण्डल द्वारा मनोनीत सदस्य भी सम्मिलित हुए। इसकी रिपोर्ट प्रजामण्डल ने अस्वीकार कर दी।
- 2 मार्च, 1947 ई. को घोषित नये संविधान को भी प्रजा मण्डल ने अस्वीकार कर दिया। श्री के. एम. मुंशी द्वारा तैयार किया गया नये संविधान का प्रारूप मई, 1947 ई. में अस्वीकार कर दिया गया। इस प्रकार महाराणा के अप्रगतिशील सुधारों का विरोध चलता रहा।
- अन्ततः उदयपुर ने भारतीय संघ में सम्मिलित होना स्वीकार किया और जनतंत्रात्मक प्रक्रिया से जुड़ गया।