टर्की (Turkey -Maleagris) –
महत्वपूर्ण किस्में हैं – British white, Broad breasted bronze small white तथा narfold.
मुर्गियों के सामान्य रोग (Common diseases of poultry) – मुर्गियों में होने वाली कुछ सामान्य बीमारियाँ निम्न हैं –
विषाणु जनित रोग (Viral diseases of poultry) – इनमें चेचक (Fowlpox), संक्रामक ब्रोनकाइटिस (Infectious bronchitis), लिम्फॉइड ल्यूकोसिस (Lymphoid leukosis) तथा रानीखेत रोग (Ranikhet diseases) शामिल हैं। रानीखेत रोग मुर्गों का सर्वाधिक सामान्य रोग है जिसमें रोगी मुर्गियों को ज्वर व अतिसार होता है। रोग की उग्रता बढ़ने पर चोच से म्यूकस का स्त्राव, पंखों का लकवा तथा गोल-गोल चक्कर लगाने जैसे लक्षण प्रकट होते है।
जीवाणु जनित रोग (Bacterial diseases) – इनमें फाउल कॉलेरा (Fowl Cholera), पुलोरम (Pollorum), कोराइल (Coryza), माइकोप्लाज्मोसिस (Mycoplasmosis) स्पाइरोकीटीसिस (Spirochaetosis), साल्मोनेलोसिस शामिल हैं।
कवक जनित रोग (Fungal diseases) – ऐफ्लाटोक्सिकोसिस (Afltoxicosis), ब्रूडर न्यूमोनिया एवं एस्पर्जिल्लोसिस आदि।
परजीवी जनित रोग – आन्तरिक परजीवी – गोलकृमि, फीताकृमि और सूत्रकृमि।
बाह्य परजीवी – फाउल माइट (Fowl mite), चिकन माइट Chicken mite), जुएं (Fleas), चिंचड़ी (ticks) आदि कोई भी संक्रामक रोग अधिक अग्र हो जाये तो रोगग्रस्त प्राणियों को मार देना ही उचित निर्णय माना जाता है। पालन के प्रबन्धन में व्यवसायी को सामान्य रोगों की जानकारी होना आवश्यक है ताकि मुर्गियों एवं मनुष्य के स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जा सके।
दुग्ध उत्पादन (Dairy Industry)
- दुग्ध उत्पादन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है, यह खाद्य उत्पादन का एक प्रमुख भाग है। दूध स्तनधारी जीवों की स्तनग्रंथियों से उनके शिशुओं के पोषण के लिए स्रावित एक पूर्ण खाद्य पदार्थ है। मानव ने पशुओं को पालना व उनके दूध का उपयोग करना प्रारम्भिक काल में ही सीख लिया था। वर्तमान में वैज्ञानिक खोजों के कारण उपलब्ध आधुनिक उपकरणों के कारण यह अत्यन्त विकसित एवं लाभकारी व्यवसाय बन गया है। यह लघु व बड़े दोनों पैमानों पर व्यवसाय के रूप में अपनाया जा रहा है।
- दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से गाय, भैंस व बकरी प्रमुख रूप से तीन पशु ही पाले जाते हैं। गायों की प्रमुख नस्लों में साहीवाल, गीर, सिन्ध, देवली, हरियाणा आदि देशी तथा जर्सी, रेडडेन, हॉल्सटीन आदि विदेशी नस्लें प्रमुख है। भैंस का भी दुग्ध उत्पादन में विशेष महत्व है जिनमें मुर्रा, जाफराबादी, सूरती प्रमुख नस्लें पायी जाती हैं। बकरी की प्रमुख नस्लों में जमनापारी, बारबारी, सिरोही इत्यादि प्रमुख है।
धान्य (Cereals)
- ये ग्रेमिनी कुल के सदस्य होते हैं और अपने खाये जाने वाले बीजों की प्राप्ति के लिए उगाए जाते हैं। कैरियोप्सिस (Caryopsis) प्रकार के फल से इन्हें पहचाना जाता है जिसमें बीज की भित्ति अण्डाश्य से संयोजित होकर भूसी (Husk) बनाती है। वास्तविक धान्य निम्नलिखित है –
गेहूँ (Triticum aestivum) – गेहूँ मुख्य धान्य है, जिसका उपयोग भोजन के रूप में मानव द्वारा आदिकाल से होता आ रहा है। यह एकवर्षी घास है और इसका पुष्पक्रम शीर्षस्थ शूकी (Spike) होता है जिसमें 15-20 शूकिकाएँ (Spikelets) होती है। भारत में यह उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में उगाया जाता है। भारत में उगायी जाने वाली गेहूँ की महत्वपूर्ण किस्मों में सोनालिका, शरबती, सोनारा, लर्मा रोजा, सोनरा – 64 इत्यादि है। ट्रिटिकेल हेक्साइप्लौइड्स (Triticale hexaploides) नामक मानव-निर्मित किस्म भी उगायी जाती है। गेहूँ का अधिकांश उपभोग मनुष्य द्वारा होता है।
मक्का (Zea Mays) – यह द्वितीय महत्वपूर्ण अनाज वाली फसल है। मक्का एक लम्बा वार्षिक घास पादप है जो 4 से 10 फीट ऊँचाई वाला होता है, पौधे उभयलिंगाश्रयी (Monecious) होते हैं। भारत में उगने वाली सामान्य किस्में सोना, विजय, जवाहर, अम्बर इत्यादि है। मक्का के दाने बहुत पोषक होते है। इनमें सरलतापूर्वक पच जाने वाले कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन्स एवं वसाओं की उच्च प्रतिशत मात्रा होती है। इन दानों का उपयोग कौर्न माँडी, ग्लूकोज एवं एल्कोहाल निर्माण में होता है। पशुधन के लिए मुख्य भोजन के रूप में प्रयुक्त होता है।
चावल (Oryza Sativa) – संसार में सहस्रों लोगों का प्रमुख भोजन चावल की फसल से मिलता है। चावल का पौधा 2-4 फीट लम्बा वार्षिक पादप है जो पेनीकल (Panicle) नामक पुष्पक्रम उत्पन्न करता है जिसमें अनेक पतली शाखाएँ होती है, यह पानी वाली नम भूमि में भली-भाँति उगता है। चावल के दानों को पकाने के पश्चात खाया जाता है, तना तथा भूसी इत्यादि का उपयोग चारे में होता है। इसके दानों से एल्कोहलीय पेय भी बनाए जाते हैं।
ज्वार (Sorghum Vulgare) – एशिया तथा अफ्रीका के अधिकतर लोग ज्वार को भोजन के रूप में ग्रहण करते है। यह एक लम्बा एकवर्षी पौधा है जिसकी ऊँचाई 6 से 12 फीट तक होती है। तना, लम्बा मजबूत तथा पैनीकल अधिक शाखित होता है। दानों से आटा बनाया जाता है, प्रायः पोषक भोजन के निर्माण के लिए गेहूँ के साथ मिलाया जाता है। पौधों का उपयोग चारे, ब्रुश बनाने सीरप बनाने व कागज उद्योग में भी होता है।
जौ (Hordeum Vulgare) – जौ एक वार्षिक पौधा है जिसकी लम्बाई 3 फीट होती है। पुष्पक्रम स्पाइक होता है। दाने सफेद, लाल या गुलाबी हो सकते हैं, ये भूसी से ढ़के होते हैं। गेहूँ के आटे के साथ मिलाकर जौ का प्रयोग रोटी, केक्स के निर्माण में होता है। भूसे का प्रयोग पशुधन को खिलाने में होता है। जौ का प्रयोग माल्ट के स्त्रोत के रूप में भी होता है। यह बीयर, विस्की, एल्कोहाल इत्यादि के निर्माण में प्रयुक्त होता है।
बाजरा (Pennisetum Typhoides) – यह प्रायः पूरे भारतवर्ष में उगाया जाता है। पौधों की ऊचाँई 6-12 फीट तक होती है और 15-25 cm लम्बे, गहरे, भूरे स्पाइक्स गुच्छे में होते है। हमारे देश में यह गरीब लोगों का महत्वपूर्ण भोजन है। इसका आटा चपाती बनाने के काम आता है और पौधे चारे के रूप में पशुओं को भी खिलाए जाते हैं।
दालें (Pulses)
- ये लेग्युमिनोसी के सदस्य है जो शिम्ब (Legume) प्रकार के फल द्वारा पहचाने जाते हैं। शिम्ब अथवा दालें अधिक प्रोटीन युक्त होती है, इनसे बड़ी मात्रा में हरी खाद बनती है, क्योंकि इनमें उपस्थित मूल-ग्रंथिकाओं (Root Nodules) में नाइट्रोजन स्थिरीकरण होता है। कुछ महत्वपूर्ण दालें निम्नवत् है।
मटर (Pisum sativum) – यह सर्दी के महीनों में पूरे भारत में उगायी जाती है। पौधा एकवर्ष शाक (herb) होटा है जो प्रतानों (tendrils) द्वारा आरोहण करता है, बीज पकाने के पश्चात सब्जी के रूप में खाए जाते है, पौधों का उपयोग महत्वपूर्ण चारे में होता है।
चना (Cicer arietinum) – यह सम्पूर्ण भारत में महत्वपूर्ण दाल के रूप में उगाया जाता है। पौधा झाड़ीदार एकवर्षी होता है और लगभग 3 माह में परिपक्व हो जाता है। बीज दाल के रूप में खाए जाते हैं और सामान्य रूप से बेसन कहलाने वाला आटा मिठाइयों तथा अन्य खाद्य पदार्थों के निर्माण के काम आता है, पौधे तथा बीज पशुओं को भी खिलाये जाते है।
अरहर (Cajanus cajan) – भारत में व्यापक स्तर पर इसकी खेती होती है और यह शुद्ध अथवा मिश्रित फसल के रूप में उगायी जाती है। इसका पौधा बहुवर्षी झाड़ी होता है। शुष्क बीजों का प्रयोग दाल की तरह होता है, पत्तियों से बढ़िया चारा बनता है, टहनियों से टोकरियाँ बनायी जाती है।
मूँगफली (Arachis hypogea) – पौधा भूमिगत फलों वाला एकवर्षी झाड़ीदार होता है। मूँगफलिया बहुत ही पोषक होती है क्योंकि इनमें प्रचुर मात्रा मे प्रोटीन्स होते है। भूनने के पश्चात बीजों का उपयोग पीनट मक्खन बनाने में किया जाता है, मूँगफली का तेल रसोई-तेल के रूप में बहुत प्रयुक्त होता है।
उड़द (Phaseolus Mungo) – भारतवर्ष में उगायी जाने वाली यह सबसे अच्छी दाल है। इसका पौधों वल्लरित एकवर्षी होता है। इसके बीज दाल की तरह काम में आते है। आटे का प्रयोग पापड़ तथा बिस्कुट के निर्माण में होता है। बीजों तथा भूसे से पशुओं का अच्छे प्रकार का चारा बनता है।
सोयाबीन (Glycine Max) – प्राकृतिक ज्ञात सब्जी वाले भोजन में इस पौधे के बीज सर्वाधिक प्रोटीन वाले होते है। यह पूरे भारत वर्ष में उगाया जाता है। पौधा छोटा झाडीदार, सीधा या भूशायी (Prostrate) वार्षिक होता है। इनमें 30 से 60% प्रोटीन अवयव होते हैं। बीज हरे या सुखे रूप में प्रयुक्त होते हैं। सोया पनीर इत्यादि बीजों से तैयार किए जाते हैं। सोयाबीन का आटा बैकरी, आइस्क्रीम इत्यादि में काम आता है।
मूंग (Green gram – Phaseols aureus) – यह उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार एवं बंगाल में उगायी जाने वाली एक महत्वपूर्ण दाल वाली फसल है। हरी फलियां सब्जी की तरह खायी जाती है तथा बीजों का प्रयोग दाल के रूप में होता है। संपूर्ण पौधा पशुओं के खिलाने में काम आता है।