राजस्थान सामान्य ज्ञान : जन्तुओं एवं पादपों का आर्थिक महत्व

 

समुद्री या लवणीय मछलियां (Marine fishes) –

  1. हिल्सा (हिल्सा) – Coastal India
  2. एल्यूथेरोनीमा (साल्मन (salman)] – East & West coast
  3. सारडीनेला (सार्डीन) – West & South coast
  4. हार्पोडोन (बॉम्बेडक) – Coastal Maharastra.
  5. स्टोमेलस (Pomphret) – Indo Pacific Coast.
  6. एन्गुइला (Eel)
  • अच्छा लाभ प्राप्त करने के लिए तालाब जिसमें तरह तरह का आहार हो, 2-3 तरह की fishes को cultivate किया जाता है। इसे मिश्रित कल्चर (composite or mixed farming) कहते हैं।
  • मेजर कार्पस, कटला रोहू व मृगल को 3 : 3 : 4 के अनुपात में पाला जाता है।
  • संवर्धन योग्य मछलियों का चयन मत्स्य संवर्धन में एक अत्यन्त महत्वपूण्र बिन्दु है। संवर्धन में प्रयुक्त मछलियाँ उच्च खाद्य गुणवत्ता से युक्त, उच्च प्रजनन एवं वृद्धि दर दर्शाने वाली, रोग प्रतिरोधी क्षमता से युक्त, वातावरणीय परिवर्तनों के प्रति सहनशीलता, प्राकृतिक एवं कृत्रिम भोजन को आसानी से ग्रहण करने में समर्थ तथा अपने वातावरण में उपस्थित अन्य मछलियों के प्रति न्यूनतम प्रतिस्पर्धा, इत्यादि गुणों को धारण करने वाली होनी चाहिये।
  • उपर्युक्त मानदण्डों को कुछ ही मछलियाँ प्रदर्शित करती हैं जिन्हें मेजर कार्प (Major carps) कहा जाता है। अतः भारत में इनका संवर्धन ही बड़े पैमाने पर किया जाता है। लेबियो रोहिता, कतला, सिरिनस म्रिगला मछलियाँ वर्तमान में मेजर कार्प की श्रेणी में शामिल है। इन सभी मछलियों को कुछ प्रमुख विदेशी कार्प मछलियों के साथ एक उचित अनुपात में एक साथ मत्स्य सरोवर में संवर्धित किया जाता है। इस तकनीक को कम्पोजिट मत्स्य पालन (Composit fish culture) कहते हैं।

मत्स्य पालन की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण पद (Important steps of fish culture)

  • मत्य पालन में अपनाये जाने वाले प्रमुख पदों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है –
  • मत्स्य पालन हेतु उपयुक्त स्थान का चयन कर वहाँ मत्स्य फार्म स्थापित करने हेतु कई प्रकार के मत्स्य ताल (Fishery ponds) तैयार किया जाते है। मत्स्य तालों में पानी की सुनिश्चित आपूर्ति की व्यवस्था की जाती है। मत्स्य फार्म में सामान्यतः प्रजनन ताल (Breeding ponds) तथा संग्रह ताल (stocking ponds) होते हैं। इनका आकार व गहराई भिन्न-भिन्न होती है।
  • मत्स्य तालों में उपयुक्त pH हेतु उन्हें चूने से उपचारित किया जाता है व तालों में प्राकृतिक भोजन के विकास हेतु उनमें कार्बनिक अकार्बनिक खाद व उर्वरक डाले जाते है। इसे fertization of pond कहा जाता है। नर्सरी तालो में मत्स्य बीजों (Fish-seeds) को डालने से पूर्व उनमें उपस्थित जलीय खरपतवारों, परभक्षी मछलियों तथा हानिकारक कीटों को हटाना आवश्यक होता है।
  • मत्स्य बीज या तो मछलियों के प्राकृतिक प्रजनन स्थानों या मानसून काल में नदियों से एकत्रित किया जाता है।
  • शुद्ध व इच्छित मछली के बीज प्राप्त करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली मत्सय प्रजाति के नर व मादा चुनकर उन्हें पीयूष ग्रन्थि के सार (FSH व LH युक्त) के इंजेक्शन अथवा संश्लेषी हॉर्मोन जैसे ह्ययूमन कोरियोनिक गोनेडोट्रीपिन्स (hCG) के इंजेक्शन द्वारा उपचारित कर अण्ड निक्षेपण (Spawning) हेतु प्रेरित किया जाता है। इसे Hypophysation तकनीक या Induced breeding कहते है। उत्तेजित नर अपने शुक्राणुओं से इन्हें निषेचित कर देते है।
  • निषेचित अण्डों को संग्रहित कर इन्हें प्रस्फुटन ताल में डालते हैं जहाँ ये प्रस्फुटित होकर हैचलिंग या सैकफ्राई में विकसित होते है।
  • इन नन्हीं सैकफ्राई को अब नर्सरी ताल में स्थानान्तरित कर देते हैं जहाँ ये मुख्यतः जन्तु प्लवकों (Zooplanktons) एवं पादप प्लवकों (Phytoplanktons) को खाते हुए वृद्धि कर फिंगरलिंग्स (Fingerlings) में बदल जाती है। इन्हें कृत्रिम आहार भी दिया जाता है।
  • इन फिंगरलिंग्स को आकार बढ़ने पर पालन ताल में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया को Thinning कहते हैं। इनको प्राकृतिक व कृत्रिम दोनों आकार का मत्स्य आहार भी दिया जाता है। जब ये लगभग 15-20 से.मी. लम्बी हो जाती है तो इनको संचय ताल (Stocking ponds) में स्थानान्तरित कर देते है।
  • संचय ताल में लगभग 6-9 माह में ये मछलियाँ खाने योग्य आकार (Table size) की हो जाती है। इनको इस अवधि में पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराया जाता है तथा मत्स्य बीमारियों तथा संक्रामकों से सुरक्षा के लिए सावधानियाँ बरती जाती है।
  • पर्याप्त आकार प्राप्त होने पर मछलियों को हुक्स एवं लाइन, ड्रेग जाल, गिल जाल, घाघरिया जाल इत्यादि मत्स्य गियर्स के द्वारा निकाला जाता है, इसे हार्वेस्टिंग (Harvesting) कहते हैं। इन्हे सुविधानुसार मानव उपयोग हेतु बाजार में बेचा जाता है।
  • हमारे देश में पर्याप्त जल संसाधन मौजूद हैं तथा हजारों तालाब ग्रामीण क्षेत्र में पाये जाते है जिनका उपयोग मत्स्य पालन के साथ-साथ सूअर पालन, बतख पालन, व बकरी पालन से जोड़ते हुए समन्वित मत्स्य पालन (Integrated fish culture) में किया जा सकता है जो कि रोजगार के साथ-साथ अतिरिक्त आय का स्त्रोत बन सकता है।
  • भारत में सेन्ट्रल इनलेंड कैप्चर फिशरीज रिसर्च इन्स्टीट्यूट (Central Inland Capture Fisheries Research Intitute, बैरकपुर (प.बंगाल), सेन्ट्रल मैरीन फिशरीज रिसर्च इन्स्टीट्यूट (Central Marine Fisheries Research Institue, CMFRI) कोच्चि (केरल), सेन्ट्रल इन्स्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवॉटर, एक्वाकल्चर (Central Institute of Fresh water Aquaculture, CIFA) भुवनेश्वर (उड़ीसा) एवं कई अन्य संस्थान मत्स्य पालन के क्षेत्र में निरन्तर अनुसंधान एवं अध्ययन कर इसे अधिक उन्नत व लाभप्रद बनाने की दिशा में कार्यरत है।

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