राजस्थान सामान्य ज्ञान : जन्तुओं एवं पादपों का आर्थिक महत्व

 

आधुनिक मधुमक्खी पालन विधि

(Modern Method of Apiculture)

  • आधुनिक पद्धति में कृत्रिम छत्तों (Artificial bee hive) का प्रयोग किया जाता है। यह छत्ता बार-बार उपयोग में लाया जा सकता है।
  • इन छत्तों की देखरेख पालन कर्त्ता द्वारा की जाती है तथा विपरीत मौसम में इन्हें अन्य सुरक्षित स्थान पर रखा जा सकता है।
  • मधुमक्खी प्राप्त करना व पालन (Procurement and Rearing of Honey-bees) – मधुमक्खियों को पालने हेतु इन्हें वृन्दन के समय पकड़ा जाता है व सन्ध्या के समय इन्हें कृत्रिम छतें के शिशु खण्ड में छोड़ा जाता है। यहाँ इनकों कुछ दिनों तक 2/3 भाग चीनी व 1/3 भाग जल से निर्मित कृत्रिम भोजन दिया जाता है। किसी प्राकृतिक छत्ते से ही एक रानी मक्खी व कुछ श्रमिकों को लाकर कृत्रिम छत्ते पर छोड़ा जाता है। छत्ते की रानी मक्खी को प्रतिवर्ष बदला जाता है व पुरानी रानी मक्खी को छत्ते से बाहर निकालना आवश्यक होता है। नई रानी मक्खी की देह पर उसी छत्ते का बना थोड़ा शहद लगाकर शिशु खण्ड में रख दिया जाता है इन कृत्रिम छत्तों को खुले खेतों या बगीचों मे उचित स्थान पर छाया में रख दिया जाता है।
  • छत्ते के स्थान पर नमी व स्वच्छता रहनी चाहिये। छत्ते से लगभग 1-2 किमी. की दूरी में अच्छी गुणवत्ता वाले मकरन्द परागकणों हेतु फूलों वाले पौधे होने चाहिये। छत्ते में ड्रोन्स की संख्या अधिक होने पर कुछ नरों व रानियों को हटा देना चाहिए। छत्ते के आस-पास स्वच्छ जल स्त्रोत होना भी आवश्यक है।
  • मधुमक्खियाँ शहद एवं मोम जैसे उपयोगी पदार्थों की स्त्रोत होने अतिरिक्त कृषि, फलोद्यानों इत्यादि के लिए परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

मधुमक्खी का जीवन इतिहास (Life history of honey bee)

  • निषेचन के बाद रानी 2000 अण्डे प्रतिदिन देती है।
  • हरेक अण्डा एक चौड़े कोष्ठ (Cell) में दिया जाता है।
  • तीन दिनों में अण्डा स्फुटित हो जाता है।
  • स्फुटन के पश्चात् एक सफेद लार्वा (Grub) निकलता है जिन्हें श्रमिकों द्वारा भोजन दिया जाता है। श्रमिक लार्वा 5 दिनों में पूरी तरह परिवर्धित हो जाता है।
  • धाय मधुमक्खियाँ (Nurse bees) चौथे दिन से सभी श्रमिक मक्खियाँ शिशु मक्खियों को पराग व शब्द का भोजन कराती है। सातवें दिन से श्रमिक मक्खियों की मैक्सिलरी ग्रंथियों से शाही जैली (Royal Jelly) का स्त्राव होने लगता है। जिसे ये लारवा, प्यूपा व रानी मक्खी को खिलाती है।
  • 12वें दिन से 18वें दिन में मोम ग्रंथियों का स्त्रावण आरंभ हो जाता है।
  • मधुमक्खियाँ प्रोपोलिस (propolis) नामक गोंद जैसा पदार्थ पुराने व क्षतिग्रस्त वेश्मों की मरम्मत के लिए प्रयोग करती है।
  • जिन अण्डों से नर बनते हैं वे अनिषेचित ही रहते हैं और इन्हें श्रमिक कोष्ठ से थोड़े बड़े व्यास के कोष्ठ में रखा जाता है।
  • अण्डे जो रायल कोष्ठ में स्फुटित होते है उन्हें रॉयल जैली दी जाती है और ये रानी मक्खी में बदल जाते हैं।
  • रानी मक्खी बनने में 15-16 दिन, श्रमिक को 4 दिन और नर 24 दिन में बनते हैं।

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