रामगोपाल विजयवर्गीय- सवाईमाधोपुर जिले के बालेर गांव में 1905 ई. में जन्म हुआ। एकल चित्र प्रदर्शनी की परम्परा को प्रारंभ करने वाले राजस्थान के सुप्रसिद्ध चित्रकार प्रसिद्ध चित्रकार, इनके नाम पर ही विजयवर्गीय शैली का जन्म हुआ है। चित्र गीतिका इनकी अनूठी रचना है। हाल ही में इनकी 77 कविताओं के काव्य संग्रह बोधांजली का विमोचन किया गया। ये राजस्थान के प्रथम चित्रकार हैं जिन्हें यह सम्मान दिया गया है।
स्व. भूरसिंह शेखावत- धोंधलिया (बीकानेर) में 1914 में जन्में प्रसिद्ध चित्रकार। देशभक्तों एवं शहीदों का चित्रण किया।
बी.जी. शर्मा- विश्व प्रसिद्ध सहेलियों की बाड़ी के पास इन्होंने बी.जी. शर्मा चित्रालय 13 अप्रैल, 1993 को प्रारंभ किया।
देवकी नंदन शर्मा- अलवर निवासी, भित्ति व पशु-पक्षी चित्रण में विशेष ख्याति अर्जित की, ये Master Of Nature & Living Objects के नाम से प्रसिद्ध हैं।
गोवर्धन लाल ‘बाबा‘- कांकरोली (राजसमंद) में जन्में, ‘भीलों के चित्तेरे‘ के उपनाम से प्रसिद्ध, इनके द्वारा बनाया गया प्रमुख चित्र बारात है।
जगमोहन माथोड़िया- श्वान विषय पर सर्वाधिक चित्र बनाने हेतु इनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में शामिल किया गया है।
रवि वर्मा- केरल के चित्रकार, भारतीय चित्रकला के पितामह कहलाते हैं।
सौभागमल गहलोत- जयपुर के चित्रकार, इन्हें ‘नीड़ का चित्तेरा‘ कहा जाता है।
हमीदुल्ला- प्रसिद्ध रंगकर्मी, इनका जन्म जयपुर में हुआ।
– प्रसिद्ध कृतियां- हर बार, उत्तर-उर्वशी एवं उलझी आकृतियां।
अराशिया- फ्रेस्को तकनीक पर आधारित इन चित्रों को कहा जाता है।
– फ्रेस्को बुनो- ताजा प्लास्टर की हई नम भित्ति पर किया गया चित्रांकन जिसे आलागीला, आरायशा व शेखावाटी क्षेत्र में पणा के नाम से जाना जाता है। यह भित्ति चित्रकला शैली इटली सेभारत लायी गई व राजस्थान में सर्वप्रथम जयपुर में इस पद्धति का प्रारंभ हुआ।
शेखावाटी क्षेत्र- यह क्षेत्र राजस्थान की ऑपन एयर आर्ट गैलेरी के लिए विश्व विख्यात है, इस क्षेत्र की हवेलियां ‘Fresco Printings’ के लिए प्रसिद्ध है।
– शेखावाटी के भित्ति चित्रों में लोकजीवन की झांकी सर्वाधिक देखने को मिलती है।
पुष्पदत्त- आमेर शैली के प्रमुख चित्रकार।
पंडित द्वारका प्रसाद शर्मा- राजस्थान के प्रसिद्ध चित्रकार, ‘गुरुजी‘ की संज्ञा से अभिहित हैं।
फूलचंद वर्मा- राज्य के प्रसिद्ध चित्रकार, नारायना (जयपुर) के मूल निवासी। इन्होंने प्रकृति एवं राजस्थान की लघुचित्र शैली को ही अपने चित्रांकन का आधार बनाया।
– ‘बतखों की मुद्राएं‘ शीर्षक कृति पर राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा इन्हें 1972 में सम्मानित किया गया।
– टैम्परा- फूलचंद वर्मा ने चित्रकला की इस पद्धति का प्रयोग किया।
ज्योति स्वरूप शर्मा- जोधपुर निवासी, ऊंट की खाल पर चित्रांकन (उस्ता कला) करने के कुशल कारीगर। ये चमड़े पर चित्रांकन करने में मारवाड़ी और मुगल शैली दोनों में दक्ष हैं।
– इनका मुख्य चित्र ‘शृंखला‘ है। इन्होंने रेणुका आर्ट्स हस्तशिल्प शोध संस्थान की स्थापना की।
– इनके द्वारा 26 इऔच की ढ़ाल पर जो बारीक चित्रकारी की गई है वह निःसंदेह कलाकार की भावना और साधना का जीवंत साक्ष्य है। सम्पूर्ण ढाल मुगल शैली में चित्रित है। इस ढाल पर आठ मुगल बादशाहों के चित्रों के अलावा, शाहजहां की याद में लिखा कलमा है। हजरत मोहम्मद साहब की तारीफ में शेर-शायरी है एवं कुरान शरीफ की आयते हैं। इनके द्वारा सारा काम अरेबिक केलीग्राफी (हस्तलेख कला) में किया गया है।
जोतदान- चित्रों (पेंटिंग्स) का संग्रह (एलबम)। देवगढ़ ठिकाने में चोखा और बगता नामक बड़े ख्याति प्राप्त चित्रकार हुए हैं। अमेरिका में इनचित्रों पर शोधकार्य भी हुआ है तथा इन चित्रों को देवगढ़ शैली का बताया गया है।
सुरजीत कौर चोयल- ये हिन्दुस्तान की पहली चित्रकार है जिनके चित्रों को जापान की प्रतिष्ठित कला दीर्घा ‘फुकोका संग्रहालय‘ ने अपनी कला दीर्घा के लिए उपयुक्त समझा।
चित्तेरा- फड़ चित्रित करने का कार्य भीलवाड़ा व चित्तौड़गढ़ के जोशी गौत्र के छीपें करते हैं जिन्हें चित्तेरा कहा जाता है। चित्तेरा जोधपुर में स्थित चित्रकला के विकास हेतु प्रयासरत संस्था भी है।