बूंदी शैली
बूंदी शैली राजस्थानी चित्रकला की विचारधारा का आरंभिक केन्द्र था।
राव उम्मेदसिंह- बूंदी शैली का सर्वाधिक विकास किया। बूंदी शैली का राव उम्मेदसिंह का जंगली सूअर का शिकार करते हुए चित्र सन् 1750 ई. का है।
बूंदी शैली में शिकार के चित्र हरे रंग में बनाये गये हैं।
चित्रशाला (रंगविलास/रंगीन चित्र)– महाराव उम्मेदसिंह के शासनकाल में निर्मित (1749-73 ई.), बूदी चित्रकला शैली का उत्कृष्ट रूप प्रस्तुत करती है। बूंदी चित्र शैली के भित्ति चित्रों में हाड़ा शासकों के शौर्य, पराक्रम तथा विलासिता का प्रभाव प्रतिबिम्बित होता है। चटकीले रंगों का प्रयोग इन चित्रों की मुख्य विशेषता है।
– कोटा-बूंदी क्षेत्र- राजस्थान की विभिन्न रियासतों में भित्ति चित्रांकन की दृष्टि से सर्वाधिक विकसित क्षेत्र रहा।
प्रमुख चित्र- पशु-पक्षी, रागमाला (सर्वप्रमुख चित्र), फल-फूल, दरबार, घुड़दौड़, राग-रंग, बसंत रागिनी, बारहमासा, वासुकसज्जा नायिका, कृष्णलीलाक।
– रागमाला- बूंदी चित्र शैली का विश्व प्रसिद्ध चित्र। इन ऐतिहासिक चित्रों का चित्रण बूंदी के हाड़ा शासक राव रतनसिंह के समय में 1626 ई. के आस-पास हुआ।
प्रमुख चित्रकार- सुर्जन, रामलाल और अहमद अली।
प्रमुख विशेषताएं- बारीक वस्त्र, मोटे गाल, आम के पत्तों जैसी आंखें, गुम्बज, नुकीला नाक और छोटा कद। बूंदी शैली में लाल व पीले रंगों का प्रयोग किया गया है।
बूंदी शैली में प्रमुखतः खजूर के वृक्ष को चित्रित किया गया है। वर्षा में नाचता हुआ मोर राजस्थान की एक विशेषता है। इस क्षेत्र में बूंदी की शैली बेमिसाल है।
राजा रामसिंह, राव गोपीनाथ, छत्रसाल और बिशनसिंह आदि ने बूंदी में कला को विशेष प्रोत्साहन दिया। बूंदी शैली में मुख्यतः बत्तख, हिरण व शेर जैसे पशुओं को चित्रित किया गया है।
बूंदी चित्रकला शैली मेवाड़ चित्रकला शैली से प्रभावित रही।
कोटा शैली (हाड़ौती शैली)
महारावल रामसिंह एवं राजा उम्मेदसिंह- कोटा चित्रशैली के आश्रयदात्ता। रामसिंह ने कोटा शैली को स्वतंत्र अस्तित्व प्रदान किया।
कोटा शैली में प्रमुखतः पशु-पक्षियों में शेर व बत्तख का चित्रण मिलता है।
कोटा शैली का सर्वश्रेष्ठट उदाहरण ‘आखेट दृश्य‘ है।
कोटा शैली के चित्रों में प्रमुखतः नीले रंग का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
कोटा शैली में मुख्यतः खजूर के वृक्ष को चित्रित किया गया है।
प्रमुख चित्र- कृष्ण लीला, राग-रागिनियां, बारहमासा एवं दरबारी दृश्य।
प्रमुख चित्रकार- गाविंद, लालचंद, रघुनाथदास व लक्ष्मी नारायण।
वल्लभ सम्प्रदाय- कोटा शैली पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है।
जयपुर (ढूंढाड़) शैली
प्रमुख विशेषताएं- मछली के समान व मादक नेत्रों युक्त स्त्री चित्र, कमर तक फैले केश।
– जयपुर शैली में प्रमुखतः हरे रंग की प्रधानता है।
प्रमुख चित्रकार- साहिबराम, सालिगराम एवं लक्ष्मणराम।
साहिबराम- जयपुर शैली के प्रसिद्ध चित्रकार, महाराजा ईश्वर सिंह का आदमकद चित्र बनाया।
श्री वेदुपाल बन्नू- प्रसिद्ध चित्रकार, इन्होंने हाथी दांत की पटरियों पर अनेक सुन्दर चित्र बनाये। ‘बारहमासा‘ को नये अंदाज में प्रस्तुत किया। इन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार प्रापत हो चुके हैं।
रामचन्द्र मुसव्विर- इन्होंने तवायफों के चित्र बनाये।
शिवनारायणजी- तैलचित्र बनाने वाले प्रसिद्ध कलाकार।
राजस्थान में व्यक्ति शैली के चित्र अधिकतर जयपुर शैली में पाये जाते हैं। जयपुर शैली पर मुगल शैली का प्रभाव देखा जा सकता है।
इस शैली के चित्र अपनी सजावट व उज्ज्वलता के लिए प्रसिद्ध है।
प्रमुख चित्र- बिहारी सतसई, गोवर्द्धन धारण, टोडी रागिनी, कृष्ण लीला, साधारण जन-जीवन, रास मंडल, महाभारत व रामायण महाराजा सवाई जगतसिंह एवं पुण्डरिक जी की हवेली के भित्तिचित्र।
जयपुर शैली में पीपल के वृक्ष को प्रमुख रूप से दर्शाया गया है एवं पशु-पक्षियों में मोर के चित्रों की प्रधानता है।
अलवर शैली
राजा प्रतापसिंह- अलवर शैली को प्रारंभ किया।
राव राजा बख्तावरसिंह- अलवर शैली को मौलिक स्वरूप प्रदान किया। ये चन्द्रसखी एवं बख्तेश के नाम से काव्य रचना करते थे। दानलीला इनका प्रमुख ग्रंथ है।
विनयसिंह- प्रसिद्ध शासक, इनके शासनकाल में गुलामअली, आगामिर्जादेहलवी एव नत्थासिंह दरबेश प्रमुख चित्रकार थे।
बलवंत सिंह- कला प्रेमी शासक, इनके शासनकाल में जमनादास, छोटेलाल, बकसाराम, नन्दराम प्रमुख कलाकार थे।
हाथीदांत- इस शैली में हाथीदांत पर चित्रण किया गया है। मूलचंद- हाथीदांत पर चित्र बनाने के सिद्धहस्त कलाकार।
बसलो चित्रण (बोर्डर पर चित्रण) के लिए अलवर चित्रशैली प्रसिद्ध है। इस शैली में गणिकाओं (वेश्याओं) के चित्र अधिक मिलते हैं।
योगासन- यह इस शैली का प्रमुख विषय रहा है।
तिजारा गांव के कलाकार बहुत विख्यात थे जिन्होंने अलवर के राज महलों की दीवारों पर विख्यात चित्रों का संग्रह किया।
प्रमुख चित्रकार- यहां के विख्यता कलाकारों में डालचन्द एवं सालिगराम प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त बलदेव, गुलामगली, सालगा का नाम भी उल्लेखनीय है।
कामशास्त्र- महाराजा शिवदान सिंह के समय चित्रित।
इस शैली में लाल, हरे एवं सुनहरी रंग का प्रयोग होता है।
राजस्थानी चित्रकला : विविध
आधुनिक काल में राजस्थानी चित्रकला के नमूने जयपुर म्यूजियम में भित्ति चित्रों के रूप में उपलब्ध होते हैं।
जर्मन चित्रकार मूलर ने 1920-1945 ई. तक जोधपुर, बीकानेर और जयपुर में रहकर यथार्थवादी पद्धति के चित्र बनाए।
भित्ति तैयार करने हेतु राहोली का चूना अरायशी चित्रण के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
जहांगीर के समय में आराईश पद्धति इटली से भारत लाई गई।
चित्रकला के विकास हेतु कार्यतर संस्थाए :
जोधपुर चितेरा, धोरां
जयपुर आयाम, पैग, कलावृत्त, क्रिएटिव आर्टिस्ट ग्रुप
उदयपुर तूलिका कलाकार परिषद
कुंदरलाल मिस्त्री- इन्हें राजस्थान में आधुनिक चित्रकला को प्रारंभ करने का श्रेय दिया जाता है।