कलीला-दमना
अरबी-फारसी ग्रंथों में कलीला-दमना एवं मुल्ला दो प्याजा के लतीफे उल्लेखनीय हैं।
‘कलीला दमना‘ पंचतंत्र का अनुवाद है।
करटक तथा दमनक का बदलता हुआ रूप कलीला-दमना है।
कलीलादमना एक रूपात्मक कहानी है जिसमें एक ब्राह्मण ‘राजपुत्रों‘ को उपदेशात्मक कहानियां सुनाता है।
ब्राह्मण अपनी शिक्षा को जानवरों के प्रतीक स्वरूप प्रस्तुत करता है।
सुरयानी- सन् 570 में इस भाषा में पंचतंत्र का अनुवाद हुआ व करटक आर दमनक क्रमशः कलीलाक और दमनाक हो गए।
अब्दुला इब्ने मुकफा- 15वीं शताब्दी में इन्होंने फारसी भाषा में पंचतंत्र का अनुवाद ‘अन्वारे सुहैली‘ शीर्षक से किया।
बगदाद- कलीला-दमना के आधार पर सर्वप्रथम सचित्र पुस्तक 1258 ई. में यहां तैयार की गई।
अबुल-फजल- मुगल सम्राट अकबर के काल में इन्होंने इसका अनुवाद फारसी में ‘आयरे दानिश‘ के नाम से किया।
नाथद्वारा शैली
यहां की चित्रकारी में भक्तों ने अनेक अवतारों की लीलाओं का रोचक वर्णन किया है।
नाथद्वारा में मुख्यतः कृष्ण यशोदा के चित्र हैं।
कृष्ण की लीला का जितना मोहक रूप यहां बताया गया है उतना अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। कृष्ण लीला के चित्रों में मौलिकता और कल्पना की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। यहाँ की चित्रकला शैली ‘पिछवाई’ कहलाती है।
जोधपुर (मारवाड़) शैली
जोधपुर के अतिरिक्त नागौर, जालौर, मेड़ता व कुचामन इत्यादि भी कला के उत्तम केन्द्र थे। इसीलिए इसे जोधपुर शैली न कहकर मारवाड़ी शैली कहना अधिक उचित होगा।
मारवाड़ चित्रकला में अजन्ता शैली की परम्परा का निर्वाह किया है।
मारवाड़ शैली के पूर्ण विकास का काल 16वीं से 17वीं सदी रहा।
मारवाड़ शैली के चित्र राजकीय विषयों को लेकर बनाये गये।
यह शैली मुगल शैली सेइतनी प्रभावित हुई कि अपनी स्वतंत्र सत्ता ही खो बैठी।
– मुगल कला के प्रभाव के कारण इस शैली में अंतःपुर के विलासितापूर्ण दृश्य भी बनाये गये। स्त्रियों का अंकन लावण्यपूर्ण है। यह शैली बाद में सामाजिक जीवन के अधिक निकट आई।
राव मालदेव- मारवाड़ में कला एवं संस्कृति को नवीन परिवेश देने का श्रेय इन्हें दिया जाता है। मालदेव से पूर्व मारवाड़ की चित्रकला शैली पर मेवाड़ का पूर्ण प्रभाव था।
– इनके समय चोखेलाव महल में मार्शल टाइप के चित्र बनाये गये। इसमें बल्लियों पर राम-रावण युद्ध का भावपूर्ण चित्रण किया गया है। इनका मूल उद्देश्य प्राचीन पौराणिक गाथाओं का यशोगान करना था।
– मालदेव के समय में (1531-1562 ई. के मध्य) मारवाड़ में स्वतंत्र चित्र शैली का जन्म व विकास हुआ।
प्रमुख चित्र- मूमल निहालदे, ढ़ोला मारू, कल्याण रागिनी, रूपमति बाज बहादुर, जंगल में कैम्प, दरबारी जीवन, राजसी ठाठ, उत्तराध्यान सूत्र (1591 ई. में चित्रित), मरु के टीलें, छोटी-छोटी झाड़ियों व पौधों के चित्र।
इस शैली में पीले व लाल रंग की प्रधानता है।
प्रमुख चित्रकार- किशनदास भाटी, शिवदास भाटी एवं देवदास भाटी, वीरजी, नारायनदा, भाटी अमरदास, छज्जू भाटी, जीतमल, काला, रामू।
जोधपुर शैली में बादाम की तरह आंखों तथा पशु-पक्षियों में प्रमुखतः ऊंट व कौए को चित्रित किया गया है। इस शैली में आम के वृक्ष को प्रमुख रूप से चित्रित किया गया है।
द महाराजा ऑफ जोधपुर द ग्लेक्सी लिव्स आन- प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक अनु मल्होत्रा ने बप्पाजी के नाम से लोकप्रिय जोधपुर राजघराने के महाराज गजसिंह द्वितीय के ऊपर यह एक वृत्त चित्र बनाया है जिसमें राजघराने की परम्परागत जीवनशैली में तेजी से आ रही गिरावट को दर्शाने का प्रयास किया गया है।
– फिल्म समारोहों में पहले ही प्रदर्शित हो चुका यह वृत्तचित्र डिस्कवरी चैनल पर भी दो भागों में दिखाया गया। यह वृत्तचित्र जोधपुर के महाराज के एक साल के दौरान के क्रियाकलापों पर आधारित है।
महाराजा अजीतसिंह- मारवाड़ शैली का स्वतंत्र रूप से उदय इनके शासनकाल में हुआ। इनके शासनकाल के चित्र सम्भवतः मारवाड़ शैली के सबसे अधिक सुन्दर एवं प्राणवान चित्र हैं।
विजयसिंह- इनके समय में भक्ति और शृंगार रस के चित्रों का निर्माण हुआ। इस समय चित्रों में मुगल प्रभाव समाप्त हो गया।
महाराजा मानसिंह- इनके शासनकाल में मारवाड़ शैली का अंतिम महत्वपूर्ण चरण प्रारम्भ हुआ। इन्होंने कर्नल टॉड को मारवाड़ का इतिहास लिखने में मदद प्रदान की।