राजस्थान सामान्य ज्ञान : गुप्त काल

गुप्तकालीन स्मारक

मंदिरस्थान
पार्वती मंदिरनचना कुठार (मध्यप्रदेश)
शिव मंदिरभूमरा (नागोद, मध्य प्रदेश)
दशावतार मंदिरदेवगढ़
विष्णु मंदिरतिगवां (जबलपुर, मधयप्रदेश)
  • गुप्तकाल में अनुदान में प्राप्त भूमि के गृहीता को सामंत कहा गया। धीरे-धीरे सामंत भूमि पर वास्तविक शासक बन गया।
  • गुप्त शासकों ने सर्वाधिक स्वर्ण के सिक्के जारी किये। सोने के सिक्कों को ‘दीनार’ कहा गया।
  • फाहयान के अनुसार विनिमय का साधान ‘कौड़ी’ था।
  • गुप्तकालीन समाज में स्त्रियों का स्थान गौण था। स्त्रियां व्यक्तिगत सम्पत्ति समझी जाती थीं। बाल – विवाह का प्रचलन था तथा पर्दाप्रथा केवल उच्च वर्ग में प्रचलित थी। सती प्रथा का प्रचलन था।
  • सती प्रथा का प्रथम उल्लेख 510 ई. के एरण अभिलेख से मिलता है।
  • गुप्तकाल में नारद ने 15 प्रकार के दासों का उल्लेख किया है। दासों की स्थिति दयनीय थी। दासत्व से मुक्ति का पहला प्रयास नारद ने किया।

गुप्तकालीन कला :

  • गुप्तकाल में कला की विविध विधाओं स्थापत्यकला, मूर्तिकला तथा चित्रकला में अभूतपूर्व विकास हुआ।
  • मंदिर निर्माण की शुरुआत गुप्तकाल में ही हुई।
  • गुप्तकालीन मंदिरों में सर्वोत्कृष्ट देवगढ़ का दशावतार मंदिर है। उत्तर भारत का यह पहला मंदिर है जिसमें शिखर का निर्माण किया गया।
  • सारनाथ के धामेख स्तूप का निर्माण गुप्तकाल में किया गया। इसका निर्माण धरातल पर ईंटों द्वारा किया गया है।

मूर्तिकला एवं चित्रकला :

  • गुप्तकालीन धातु मूर्तिकला में नालन्दा तथा सुल्तानगंज की बुद्ध की मूर्ति उल्लेखनीय है। गुप्तकाल की मूर्तियों में कुषाणकालीन नग्नता एवं कामुकता का पूर्णतः लोप हो गया था।
  • गुप्तकाल में चित्रकला के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई। इस काल की चित्रकला के अवशेष अजन्ता (महाराष्ट्र के औरंगाबाद में) तथा बाघ (मध्यप्रदेश) गुफाओं से प्राप्त होते हैं।
  • अजन्ता गुफा की चित्रकारी को सर्वप्रथम 1919 में सर जेम्स अलेक्जेण्डर ने देखा। अजन्ता की गुफायें बौद्ध धर्म के महायान शाखा से संबंधित है। कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही शेष है जिसमें गुफा संख्या 16 तथा 17 को गुप्तकालीन माना जाता है। गुफा संख्या 16 में ‘मरणासन्न राजकुमारी’ का चित्र प्रशंसनीय है। गुफा संख्या 17 के चित्र जिसे ‘चित्रशाला’ कहा गया है। इसमें बुद्ध के जन्म, जीवन, महाभिनिक्रमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओंं से सम्बन्धित चित्र उकेरे गये हैं।
  • बाघ की गुफायें ग्वालियर के समीप विंध्यपर्वत को काट कर बनाई गयी थी। 1818 ई. में डैजरफील्ड ने इन गुफाओं को खोजा, जहां से 9 गुफायें मिली है। बाघ गुफा के चित्र आम जन – जीवन से संबंधित है।

विज्ञान एवं तकनीकी विकास :

  • इस काल के आर्यभट्ट, वराहमिहिर एवं ब्रह्मगुप्त संसार के प्रसिद्ध नक्षत्र, वैज्ञानिक और गणितज्ञ थे।
  • आर्यभट् ने अपने ग्रंथ ‘आर्यभट्टीयान’ में सर्वप्रथम प्रस्तुत किया कि पृथ्वी गोल है, वह अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य का चक्कर लगाती है जिससे सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण होते हैं। आर्यभट्ट ने दशमलव प्रणाली का विकास किया।
  • वराहमिहिर की वृहत संहिता खगोलशात्र, वनस्पति विज्ञान तथा प्राकृतिक इतिहास का विश्वकोश है।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार का प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि था।

गुप्त साम्राज्य का पतन :

  • गुप्त साम्राज्य का पतन विभिन्न कारणों का परिणाम था। इसके पतन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
  • आनुवांशिक शासकीय पद
  • अयोग्य तथा दुर्बल अधिकारी
  • शासन व्यवस्था का सामंतीकरण
  • वाह्य आक्रमण
  • आर्थिक संकट

उत्तर गुप्त काल

वर्द्धन राजवंश

हर्षवर्धन :

  • वर्धन वंश के राजा पुष्यभुति वंश के थे। थानेश्वर (हरियाणा के अम्बाला जिले में) को इन्होंने राजधानी बनाया।
  • हर्षवर्धन लगभग 606 ई. में थानेश्वर की गद्दी पर बैठा। इसके विषय में हमें जानकारी बाणभट्ट के ‘हर्षचरित’ से मिलती है। हर्षवर्धन अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज ले आया था। समृद्धि एवं ऐश्वर्य के कारण इसे ‘महोदय नगर’ कहा गया।
  • एहोल प्रशस्ति (ऐहोल अभिलेख में महाभारत युद्ध का वर्णन मिलता है) के अनुसार हर्ष को बादामी के चालुक्यवंशी शासक पुलकेशिन द्वितीय से पराजय का सामना करना पड़ा।
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग ने हर्षवर्धन के समय ही भारत की यात्रा की थी। इसे ‘यात्रियों का राजकुमार’ तथा इसके यात्रा विवरण को ‘सी-यू-की’ कहा जाता है।
  • हर्ष प्रयाग में ‘मोक्षपरिषद’ का आयोजन करता था।
  • हर्षवर्धन उच्च कोटि का कवि एवं नाटककार था। इसने नागानंद, प्रियदर्शिका एवं रत्नावली नामक तीन नाटकों की रचना की है।
  • बाणभट्ट जो हर्ष का दरबारी कवि था, ने कादम्बरी तथा हर्षचरित की रचना की।
  • हर्षवर्धन के अधिकारियों में अवन्ति (युद्ध और शान्ति का मंत्री), सिंहनाद (सेनापति), कुन्तल (अश्वाध्यक्ष) तथा स्कन्दगुप्त (हस्ति सेना का प्रमुख) मुख्य था।

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