राजस्थान के इतिहास में चर्चित महिलाएँ
1.हाड़ीरानी – बूँदी की राजकुमारी, सलुम्बर (उदयपुर) के सरदार चुड़ावत की नवेली पत्नी, जिसने युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय सरदार चुड़ावत को अपना सिर काटकर (निशानी के रूप मे) भेज दिया था। हाड़ीरानी का वास्तविक नाम सलह कंवर था।
2.पन्नाधाय (गुर्जर महिला) – मेवाड़ के राजकुमार विक्रमादित्य व उदयसिंह की धाय। जब सरदार बनवीर विक्रमादित्य की हत्या कर उदयसिंह की हत्या के लिए महल में गया तो पन्नाधाय ने उदयसिंह की जगह अपने पुत्र चंदन को सुला दिया। बनवीर ने उदयसिंह समझकर चन्दन की हत्या कर दी। स्वामीभक्ति एवं बलिदान हेतु विख्यात।
3.मीराबाई – मेड़ता के राव दूदा की पौत्री, रतनसिंह राठौड़ की पुत्री जिसका विवाह राणा सांगा के पुत्र भोजराज (मेवाड़) के साथ हुआ। भोजराज की मृत्यु के उपरान्त कृष्ण भक्ति में लीन, मीरा के भजन (पदावली) प्रसिद्ध।
4.कमलावती (कर्णावती) – चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी व विक्रमादित्य की संरक्षिका। जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तो मुगल शासक हुमायुं को राखी भेजकर सहायता की माँग की। 1535 ई. में बहादुरशाह के आक्रमण के पश्चात जौहर कर प्राण त्यागे।
5.रूठीरानी – जैसलमेर के शासक लूणकर्ण की पुत्री, मारवाड़ के राव मालदेव की पत्नी, मूलनाम – उमादे। मालदेव से रूठकर अलग रहने लगी। अजमेर में रुठीरानी का महल बना हुआ है। तारागढ़ में आजीवन ब्रह्मचारिन के रुप में बिताया।
6.पद्मिनी – चित्तौड़ के शासक रतनसिंह की सुन्दर पत्नी, जिसे प्राप्त करने हेतु दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण किया। रतनसिंह की हार के पश्चात रानी पद्मिनी ने जौहर किया।
7.संयोगिता – कन्नौज के शासक जयचंद की पुत्री, जिसके स्वयंवर के अवसर पर जयचंद के शत्रु पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने उसका अपहरण कर विवाह किया। संयोगिता भी उससे विवाह करना चाहती थी।
8.कृष्णाकुमारी – उदयपुर के महाराणा भीमसिंह की पुत्री, जिसकी सगाई जोधपुर के राजा भीमसिंह के साथ तय, किन्तु भीमसिंह की मृत्यु के पश्चात सगाई जयपुर के राजा जगतसिंह के साथ की गई। जिसके कारण जोधपुर के राजा मानसिंह व जयपुर के राजा जगतसिंह के मध्य 1807 ई. में गिंगोली का युद्ध हुआ। अंत में कृष्णाकुमारी ने विषपान कर जीवन समाप्त किया।
9.श्रीमती रमा देवी– बिजौलिया आंदोलन के समय पंडित लादूलाल जोशी की पत्नी श्रीमती रमा देवी 1931 में बजौलिया गयीं, जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनहें वहां से निकल जाने को कहा किन्तु उनका जवाब था, “जब तक किसानों पर अत्याचार बन्द नहीं होंगे, वे यहां आती रहेंगी।“ इन्हें वहां के कोतवाल ने अपमानित किया, पिटाई की किन्तु वे दृढ़ रही। 1930 व 1932 में सत्याग्रह एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने भाग लिया और जेल भी गयीं।
10.श्रीमती रतन शास्त्री– जब जयपुर राज्य प्रजामण्डल के सत्याग्रह में मुख्य कार्यकर्त्ता गिरफ्तार हो गये, तब अन्य व्यवस्था का जिम्मा संभालने वालों में ये भी शािमल थीं। वे वनस्थली विद्यापीठ में अपने पति की सहभागी थी। अगस्त, 1942 में इन्होंने विद्यापीठ के कार्यकर्त्ताओं और छात्राओं को आंदोलन में भाग लेने की खुली छूट दे दी थी।
11.श्रीमती दुर्गादेवीशर्मा– नमक सत्याग्रह के दिनों में इन्होंने अपने विवाह तक के महंगे वस्त्रों की चौंमू में होली जला दी। बाद में अजमेर, ब्यावर की महिलाओं के साथ प्रभातफेरी आदि काम में लग गयीं। 1931-32 में दो बार जेल गयीं।
12.श्रीमती भारती देवी– 1939 में इन्होंने जयपुर प्रजामण्डल के सत्याग्रह में महिलाओं के जत्थे के साथ रहीं, गिरफ्तार हुइऔ तथा 3 महीने की सजा हुई।
13.श्रीमती सरस्वती देवी पांडे– ये भी 1939 में प्रजामण्डल के आंदोलन में गिरफ्तार हुई तथा जेल गई।
14.श्रीमती दुर्गावती देवी–ये शिक्षित महिला थीं। शेखावटी किसान आंदोलन में इन्होंने अपने पति पंडित ताड़केश्वर का साथ दिया था। 1939 में वे जयपुर प्रजामण्डल आंदोलन में झुन्झुनूँ से महिलाओं का जत्था लेकर सत्याग्रह करने गयी थी। इन्हें चार माह की कारवास की सजा हुई थी।
15.श्रीमती किशोरी देवी– जागीर प्रथा के विरोध में इन्होंने अपने पति हरलाल सिंह के साथ मिलकर किसान आंदोलन को आगे बढ़ाया। अनेक बार सामंती एवं पुलिस व्यवस्था से टक्कर लेनी पड़ी।
16.श्रीमती रामलोरी देवी, मांडासी– 1930 से 1947 तक इन्होंने प्रत्येक आंदोलन, सभा, जुलुस और राजनीतिक समारोह में भाग लिया। ये शेखावटी किसान आंदोलन से सम्बद्ध रही और अपने 6 माह के पुत्र के साथ जेल गयीं।
17.श्रीमती अंजना देवी– अपने पति रामनारायण चौधरी की प्रेरणा से 20 वर्ष की आयु से ही कांग्रेस के कार्य़ों में लग गयी। चाहे हरिजनोद्वार का कार्य रहा हो अथवा अन्य रचनात्मक कार्य, इन्होंने पति का भरपूर साथ दिया। ये समस्त रियासती जनता में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थी। इन्होंने 1921 से 1924 तक मेवाड़ व बूंदी राज्यों की स्त्रियों में राष्ट्रीयता, समाज सुधार और सत्याग्रह की ज्योति जलाई। इन्हें बूंदी राज्य से निर्वासित भी होना पड़ा।
18.श्रीमती मेहता– राजनारायण मेहता की पत्नी व बूंदी राज्य के भूतपूर्व प्रधान सेनापति पंडित निरंजनदास नागर की पुत्रवधु श्रीमती मेहता ने अजमेर-मेरवाड़ा प्रान्त में कांग्रेस के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। वे ब्यावर कांग्रेस कमेटी से सम्बद्ध रही। महिलाओं में जन चेतना को बढ़ाने का दायित्व आपने बखूबी से निभाया।
19.श्रीमती कोकिला देवी– नमक सत्याग्रह में अन्य महिलाओं के साथ कोकिला देवी ने अजमेर में सत्याग्रह किया और गिरफ्तार हुई।
20.सुशीला त्रिपाठी– ये अलवर के लोक जागरण के अग्रदूत लक्ष्मण स्वरूप त्रिपाठी की पत्नी थी। अपने पति के साथ हिन्दी प्रचार का कार्य मद्रास में किया, हिन्दुस्तानी सेवा दल की शाखा को सहयोग दिया। 1933 में दिल्ली के चांदनी चौक में सत्याग्रह किया तथा 6 महीने की कारावास का दण्ड मिला।
21.श्रीमती सत्यभामा– बूंदी के नित्यानंद नागर की पुत्रवधु सत्यभामा ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भारी कष्ट उठाये। इन्हें अपने दो बच्चों के साथ जेल भी जाना पड़ा। ब्यावर-अजमेर आंदोलन (1932) का भार इन्हीं के कंधों पर आ पड़ा था। गांधीजी की मानस पुत्री होने का इन्हें सौभाग्य मिला। 1942 में भी इन्हें जेल की सजा काटनी पड़ी।
22.नगेन्द्रबाला–1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। 1945-46 में प्रेस एक्ट का विरोध किया।
23.रामप्यारी शास्त्री– काशी नागरी प्रचारिणी सभा से सम्बद्ध रहीं तथा अपने ओजस्वी भाषणों से राष्ट्रीय भावना को उभारने में सफल रहा करती थीं।
24.श्रीमती रामदुलारी शर्मा–कोटा के रामपुरा क्षेत्र में 13 अगस्त, 1942 को क्रोधित होकर महिलाओं की भीड़ ने रामप्यारी के नेतृत्व में कोतवाली को घेर लिया।
25.इन्दुमती गोयनका– जोधपुर की 15 वर्षीय इन्दुमती जी का त्याग अपूर्व था। ये धनी परिवार की बड़े लाड-प्यार में पर्दे में पली हुई थी, किन्तु विवाह के 6 माह बाद ही माता-पिता, पति, सास, ससुर का मोह छोड़कर उनका विरोध करके हँसते-हँसते जेल चली गई। इन्होंने मारवाड़ी समुदाय की विदेशी कपड़े की दुकानों पर पिकेटिंग की, कुछ महिलाओं को लेकर राष्ट्रीय महिला समिति की स्थापना 1930 में की।
26.श्रीमती सावित्री देवी भाटी– 1942 में जब मारवाड़ लोक परिषद् ने उत्तरदायी शासन के लिए आंदोलन शुरू किया, तब वे सार्वजनिक क्षेत्र में कूद गयीं। गिरफ्तार हुई; जेल गयीं। इन्होंने महिलाओं को जागृत करने के लिए कठोर परिश्रम किया।
27.श्रीमती खेतुबाई– बीकानेर की महिलाओं में राष्ट्रीय भावनाओं का प्रसार करके अत्याचारों का मुकाबला करने को प्रेरित करना इनका मुख्य लक्ष्य रहा था।
28.श्रीमती लक्ष्मीदेवी आचार्य– ये बीकानेर की श्रीराम आचार्य की पत्नी थी। इनके जीवन का अधिकांश समय कलकत्ता में बीता। 1930-31 में इन्होंने कलकत्ते में विदेशी कपड़ों के बहिष्कार आंदोलन में भाग लिया। 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में दोनों बार इन्हें 6-6 माह की सजा हुई। जेल से मुक्ति के बाद वे उस बंगाली संस्था की अध्यक्षा निर्वाचित हुई। ये बीकानेर प्रजामण्डल की संस्थापकों में एक थी। बीकानेर के जन आंदोलन के पक्ष में मारवाड़ी समाज में लोकमत जागृत किया। 1940 के बाद वे व्यक्तिगत सत्याग्रह में गिरफ्तार हुई तथा जेल में ही गोलोकवासी हो गई।
29.सत्यवती शर्मा– इनके नेतृत्व में महिलाओं का प्रथम जत्था मथुरा से भरतपुर सत्याग्रह करने पहुंचा। इस जुलूस में इन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया व इनके साथ इनकी दो बच्चियां भी थीं जिन्हें इनसे छीनकर अनाथाश्रम में भेज दिया। 1939 से 1947 तक ये भरतपुर के प्रजामण्डल आंदोलन में भाग लेती रहीं।
30.श्रीमती नारायणी देवी– माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी नारायणी देवी ने विविध ग्रंथों के अध्ययन से तथा अपने पति के साथ राष्ट्रीय आंदोलनों में कार्य करते-करते अपनी बौद्धिक क्षमता को धारदार बना लिया था। बिजौलिया में शिक्षा व समाज सुधार से प्रारम्भ किया गया आंदोलन सार्वजनिक जीवन किसान सत्याग्रह, प्रजामण्डल, सत्याग्रह व भारत छोड़ों आंदोलन तक गतिशील रहा। उन्हें जेल यातनाओं से गुजरना पड़ा। नवम्बर, 1944 में भीलवाड़ा में उन्होंने महिला आश्रम नाम की एक संस्था स्थापित कर महिलाओं के सर्वांगीण विकास का कार्य अपने हाथ में लिया। 1942 में वे अपने पुत्र व चारों पुत्रियों के साथ जेल गयीं।
31.श्रीमती शांता त्रिवेदी- राजस्थान महिला जागरण की दिशा में कार्य करने वाली अग्रणी महिलाओं में इनका नाम है। उदयपुर में प्रजामण्डल के आंदोलनों में स्वयंसेविका के रूप में इन्होंने भाग लिया और विद्यार्थियों में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया। सामंतवाद के विरूद्ध छिड़े संघर्ष में 4 अप्रैल, 1948 को महिलाओं का नेतृत्व करते हुए जब वे रंग निवास पहुँची तो सामंतवादियों की ओर से उन पर भयंकर हमला हुआ, जिसमें वे घायल हो गई।
32.श्रीमती भगवती देवी विश्नोई– इन्होंने 1933-34 में अजमेरी नरेली आश्रम में रहकर हरिजन जातियों में समाज सुधार और शिक्षा प्रसार का कार्य किया था। 1938 में प्रजामण्डल के आन्दोलनों में वे एक बार भीलवाड़ा में गिरफ्तार हुई। 1942 में भी ये 6 महिने उदयपुर सेंट्रेल जेल में नजरबंद रहीं।
33.श्रीमती गंगाबाई (कजोड़ देवी)– इन्होंने भी प्रजामण्डल के आंदोलन में भाग लिया। ये महिला वर्ग में प्रथम थीं, जो परिवार की सीमाओं को तोड़कर आयी। नाथद्वारा में रात-दिन की हड़ताल के समय पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर बहुत यातनायें दी।
34.श्रीमती शकुन्तला देवी– मेड़ता निवासी शकुन्तलादेवी ने रतलाम, बम्बई जयनारायण व्यास के साथ मारवाड़ तथा वापिस बम्बई जाकर राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान दिया। जोधपुर में ये गिरफ्तार हुई, जहां इन्हें जेल हुई। बाद में ये बांसवाड़ा आकर प्रजामण्डल आंदोलन में हिस्सा लेने लगीं।
35.डूंगरपुर की कालीबाई– डूंगरपुर राज्य द्वारा सेवा संघ द्वारा संचालित पाठशालाओं को बंद करने के अभियान के दौरान कालीबाई ने अपने शिक्षक सेंगाभाई को पुलिस बल से छुड़ाने पर सामन्ती जुल्मों का प्रतिकार करने में जो अदम्य साहस का परिचय दिया वह राष्ट्र प्रेम की दृष्टि से अतुलनीय है। ट्रक से बंधे अध्यापक रेंगाभाई को मुक्त कराने पर काली बाई को पुलिस ने गोलियों से भून दिया। 19 जून, 1947 को हुई उसकी शहादत ने इस नन्हीं वीरबाला को अमर कर दिया।