- सिक्के –
- सिक्कों के अध्ययन को ‘न्यूमिसमेटिक्स’ कहते हैं।
- सिक्कों से राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती है।
- सिक्कों से साम्राज्य की सीमा का भी बोध होता है।
- विम कडफिसस के द्वारा भारत में सर्वप्रथम सोने के सिक्कों का प्रचलन कराया गया।
- रेंढ(टोंक) से खुदाई के दौरान चाँदी के पंचमार्क/आहत सिक्के प्राप्त हुए हैं। इन्हें भारत के प्राचीनतम सिक्कों में रखा गया। इन सिक्कों पर विशेष प्रकार का चिह्न अंकित है। भरतपुर के बयाना से गुप्तकालीन सिक्के मिले हैं।
- राजपूताना रियासत के सिक्कों पर 1893 ई. में केब के द्वारा ‘द करेंसीज ऑफ द हिंदू स्टेट्स ऑफ राजपूताना’ नामक पुस्तक लिखी गई। राजपूत कालीन सिक्कों पर गधे के सम्मान आकृति होने के कारण इन्हें ‘गधिमा सिक्के’ कहा गया। 1562 ई. में आमेर के द्वारा मुगलों की अधीनता स्वीकार की गई। अत: कच्छवाहा शासकों ने सर्वप्रथम टकसाल(Mint) का निर्माण कराया।
जयपुर के सिक्के — झाड़शाही, मुहम्मदशाही
जोधपुर के सिक्के — विजयशाही, गजशाही, भीमशाही, ढब्बूशाही
बीकानेर के सिक्के — आलमशाही, गंगाशाही
मेवाड़ के सिक्के — स्वरूपशाही, चित्तौड़ी, चाँदोड़ी
झालावाड़ के सिक्के — मदनशाही
बाँसवाड़ा के सिक्के — सालिमशाही, लक्ष्मणशाही
जैसलमेर के सिक्के — अखयशाही, डोडिया
कोटा के सिक्के — गुमानशाही
- ब्रिटिश सत्ता की स्थापना के बाद कलदार का प्रचलन हुआ और राजपूत राज्यों में ढलने वाले सिक्कों का प्रचलन बंद हो गया।
- साहित्य – समाज का दर्पण
राजस्थान की कृतियाँ गद्य एवं पद्य दोनों में मिलती हैं, राजस्थानी परंपरा में इतिहास के लिए ‘ख्यात’ शब्द का प्रयोग किया गया है। वात में किसी व्यक्ति व घटना का संक्षिप्त इतिहास होता है, जबकि ख्यात बड़ी होती है, जिसमें पुरे वंश का वर्णन मिलता है।
राजस्थान में 16वीं शताब्दी के आस-पास ख्यात की रचना हुई।
ख्यात संस्कृत के शब्द प्रख्यात का अपभ्रंश है।
प्रमुख ख्यात – मुहणोत नैणसी री ख्यात।
जोधपुर राज्य री ख्यात।
बांकीदास री ख्यात।
मुण्डियार री ख्यात।
मुहणोत नैणसी, जोधपुर के शासक जसवंत सिंह के काल में थे। इनके द्वारा नैणसी री ख्यात व मारवाड़ रा परगना री विगत नामक पुस्तकों की रचना की गयी। ख्यात से मारवाड़ के अलावा गुजरात व मध्यप्रदेश के शासकों की भी जानकारी मिलती है। ख्यात में चौहान व भाटी शासकों के अलावा विभिन्न रियासतों की भौगोलिक जानकारी प्राप्त होती है। नैणसी री ख्यात 1643 ई. से 1666 ई. के मध्य लिखी गई।
मारवाड़ रा परगना री विगत –
इस पुस्तक से मारवाड़ के किलों की आबादी, वहाँ के जन-जीवन, सामाजिक, धार्मिक व अर्थव्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।
मुंशी देवी प्रसाद ने मुहणौत नैणसी को राजस्थान का अबुल फजल कहा है।
मुहणौत नैणसी का वर्णन अबुल-फजल से अधिक वैज्ञानिक, स्पष्ट व निष्पक्ष माना जाता है।
बांकीदास आशिया –
जोधपुर शासक मानसिंह के काल में बांकीदास को लाख पसाव के सम्मान से सम्मानित किया गया था। बांकीदास डिंगल, पिंगल, संस्कृत व फारसी भाषा के जानकार थे। इनके वर्णन से तत्कालीन भौगोलिक अवस्था, रीति-रिवाज व वाणिज्य व्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।
बांकीदास के वर्णन में क्रमबद्धता का अभाव दिखाई पड़ता है।
दयालदास सिंढ़ायच –
ये बीकानेर के महाराजा रतन सिंह के दरबारी विद्वान थे। इनकी प्रसिद्ध रचना बीकानेर री राठौड़ा री ख्यात मानी जाती है, जो कि “दयाल दास री ख्यात’ के नाम से भी जानी जाती है।
बीकानेर राज्य का क्रमबद्ध इतिहास इस पुस्तक से प्राप्त होता है।
रासौ –
जब किसी व्यक्ति या वंश की उपलब्धियों का वर्णन महाकाव्य के रूप में किया जाए, तब उसे ‘रासो’ कहा जाता है। रासो साहित्य से राजपूतकालीन राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक जानकारी प्राप्त होती है।