उत्सर्जन तंत्र
- हानिकारक अपशिष्ट पदार्थ की अधिक मात्रा को शरीर से निष्कासित करने की जैविक प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं।
- मनुष्य में उत्सर्जन तंत्र में प्रमुख अंग हैं- वृक्क, फेफड़ा, त्वचा, यकृत, आंत इत्यादि।
- वृक्क(Kidney) : वृक्क परासरण नियंत्रण द्वारा जल की निश्चित मात्रा बनाये रखता है।
- यह रूधिर से सभी उत्सर्जी पदार्थों को हटाना और आवश्यक पोषक तत्वों को बनाए रखने का कार्य करता है। प्रमुख उत्सर्जन अंग है।
- इसका भार लगभग 140 ग्राम होता है।
- नेफ्रॉन वृक्क की कार्यात्मक इकाई होती है। वृक्क में मूत्र का निर्माण होता है।
- नेफ्रॉन या वृक्क नलिका में रूधिर से छनकर आए जल एवं शेष उत्सर्जी पदार्थ़ों के मिश्रण को मूत्र कहते हैं।
- इसका पीला रंग यूरोक्रोम नामक वर्णक के कारण होता है।
- एक सामान्य व्यक्ति 24 घण्टे में 5 लीटर मूत्र त्यागता है। मूत्र की प्रकृति अम्लीय होती है।
- मूत्र में जल (85%), यूरिया (2%), यूरिक अम्ल (5%), प्रोटीन, वसा, शर्करा आदि (1.3%) होते हैं।
- फेफड़े कार्बनडाऑक्साइड व जलवाष्प का उत्सर्जन करते हैं।
- यकृत अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित करता है।
- आंत अपचयन भोजन को शरीर से बाहर निकालकर उत्सर्जन में मदद करती है।
- त्वचा द्वारा पसीने की ग्रन्थियों से पानी तथा लवणों का विसर्जन होता है।
- मूत्र स्राव की मात्रा बढ़ जाने कोडाईयूरेसिस कहते हैं।
- मूत्र स्राव की मात्रा कम होने को ओलिगोयूरिया कहते हैं।
- मूत्र स्राव बन्द (पूर्ण) होने को एन्यूरिया कहते हैं।
- पक्षियों, सरीसर्प तथा कीटों में उत्सर्जन आहारनाल द्वारा होता है।
अपशिष्ट पदार्थ | उत्सर्जन अंग |
मल | मलाशय |
CO2 | फुफ्फुस |
अमोनिया | यकृत |
पसीना | त्वचा |
यूरिया | वृक्क |
- रक्त में यूरिया नेफ्रॉन द्वारा छाना जाता है।
- बोमन सम्पुट में मूत्र छानने की क्रिया होती है।